Sunday, September 23, 2012

Democracy IS For Foreigners, Of Foreigners AND By Foreigners

Collected From Hindi Newspaper Prabhat Khabar

प्रधानमंत्री ने भारतीय लोकतंत्र की नई परिभाषा दी है


भुज : मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई की अनुमति देने के लिए मनमोहन सिंह पर निशाना साधते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि प्रधानमंत्री ने भारतीय लोकतंत्र की परिभाषा को बदलकर ‘‘विदेशियों का, विदेशियों के द्वारा और विदेशियों के लिए’’ कर दिया है.
मोदी ने कच्छ जिले में यहां विवेकानंद यूथ कन्वेंशन में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘अब से कलम, पेंसिल, नोटबुक आपके पडोस का दुकानदार नहीं बेचेगा बल्कि कोई गोरा (विदेशी) बेचेगा. इसलिए, स्थानीय व्यापारी रोजगार खोएंगे.’’उन्होंने कहा, ‘‘पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दुनिया को लोकतंत्र की प्रसिद्ध परिभाषा ‘जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए’ दी लेकिन हमारे मनमोहन सिंह जी ने हमें ‘विदेशियों का, विदेशियों के द्वारा और विदेशियों के लिए’ की नई परिभाषा दी है.’’
उन्होंने आरोप लगाया कि मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति का फैसला उस वक्त लिया गया जब वैश्विक निर्माताओं और घरेलू उत्पादकों के बीच कोई समान अवसर नहीं है.
मोदी ने कहा, ‘‘कांग्रेस नीत सरकार ने संसद को अंधेरे में रखकर रातोंरात खुदरा कारोबार में एफडीआई लागू कर दिया और संसद के भीतर किए गए वादे को तोडा है.’’ मोदी ने असम से राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने के बावजूद हिंसा को रोकने के लिए कारगर कदम नहीं उठाने के लिए प्रधानमंत्री पर दोषारोपण किया.
उन्होंने आरोप लगाया,‘‘बांग्लादेशियों (विदेशियों) ने असम में अपने अधिकार पर जोर देना शुरु कर दिया है और असम से निर्वाचित हमारे प्रधानमंत्री मौन हैं.’’उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘अगर आप इन दो मुद्दों असम में विदेशियों द्वारा हिंसा और खुदरा कारोबार में एफडीआई की अनुमति को एक साथ रखें तो यह विदेशियों के प्रति केंद्र सरकार के प्रेम को साफ तौर पर दर्शाता है.’’मोदी के साथ कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी मौजूद थे.

अमेरिका में प्रदर्शन, भारत में स्वागत


नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने बहु ब्रांड खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश की मंजूरी देने के फैसले के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आलोचना की है. उन्होंने आज कहा कि वालमार्ट का भारत में लाल कालीन बिछाकर स्वागत किया जा रहा है जबकि अमेरिका में ही उसे विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
आडवाणी ने अपने आधिकारिक ब्लॉग पर लिखा है कि जब राजग सत्ता में था तो भाजपा ने इस तरह के कदम का विरोध किया था.
अमेरिका की सबसे बडी खुदरा कंपनी वॉलमार्ट के खिलाफ अनेक अमेरिकी शहरों में जारी विरोध की ओर संकेत करते हुए आडवाणी ने कहा है कि इसी समय यहां सरकार उसके स्वागत के लिए लाल कालीन बिछा रही है. अपने ब्लॉग में आडवाणी ने लेखक तथा वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ एस गुरुमूर्ति को उदृधत किया है. उन्होंने कहा है कि 14 सितंबर को जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वालमार्ट के लिए लालकालीन बिछाया, उसी दिन न्यूयार्क शहर में वालमार्ट को बंद करने के लिए आंदोलन हुआ.


मुलायम से मुलाकात का कोई राजनीतिक मकसद नहीं : सुखबीर


बुंडाला (जालंधर): दिल्ली में समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के साथ हुई मुलाकात को ‘पारिवारिक और औपचारिक’ करार देते हुए पंजाब में सत्तारुढ शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने आज यहां कहा कि सपा नेता के साथ हुई मुलाकात का कोई राजनीतिक मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए.
इसके साथ ही सुखबीर ने तीसरे मोर्चे में शामिल होने की संभावना से इंकार करते हुए कहा है कि कांग्रेस सरकार अब चंद दिनों की मेहमान है और आगामी चुनावों में राजग की सरकार बनेगी.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत की चौथी पुण्यतिथि के मौके पर यहां आये सुखबीर ने संवादाताओं से बातचीत में कहा, ‘‘मुलायम सिंह यादव के साथ हुई मुलाकात का कोई राजनीतिक मकसद नहीं था. यह मुलाकात पारिवारिक थी. शिरोमणि अकाली दल पहले भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में था और अब भी है.’’ देश में तीसरे मोर्चे की किसी प्रकार की संभावना से इंकार करते हुए उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार के दिन अब पूरे हो चुके हैं. यह सरकार कब चली जाएगी इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है. इसके बाद राजग की सरकार बनेगी और इसी दिशा में काम करना होगा.’’ सुखबीर ने कहा कि कांग्रेस अब देश में ज्यादा समय तक सरकार में नहीं रह सकेगी. इसकी जनविरोधी नीतियों से आम आदमी दुखी है. हालांकि, इसके साथ ही सुखबीर ने यह भी कहा कि देश में तीसरे मोर्चे की संभावना नहीं है.
http://www.prabhatkhabar.com/node/210279

भाजपा नेता शौरी और खंडुरी मनमोहन के प्रशंसक

नयी दिल्ली : एफडीआई और डीजल मूल्यवृद्धि का भाजपा जमकर विरोध कर रही है. इन मुद्दों की आड में वह सरकार से इस्तीफा भी मांग रही है. लेकिन भाजपा के ही अरुण शौरी और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री खंडूरी सरकार के इन फैसलों का समर्थन कर रहे हैं. शौरी का कहना है कि डीजल के दाम में बढ़ोतरी,गैस पर दी जा रही सब्सिडी में कटौती और रिटेल में एफडीआई का फैसला देशहित में है. यह वक्त की जरूरत है. यहीं नहीं शौरी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भी जमकर तारीफ की है.
शौरी ने यहां एक सेमीनार में कहा कि प्रधानमंत्री ने पहली बार अपनी ताकत दिखाई है. शौरी ने कहा कि रिटेल में एफडीआई को लेकर किया जा रहा विरोध बेमानी है. इससे न तो किसी को फायदा होगा और न ही किसी को नुकसान. एनडीए सरकार में मंत्री रह चुके शौरी अपनी बेबाकी बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं. उनको आर्थिक सुधारों का प्रबल समर्थक माना जाता है. शौरी इससे पहले भी कई मौकों पर पार्टी की राय से अगल अपने विचार रख चुके हैं.
घोटालों के आरोपों में घिरी संप्रग सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह के इस्तीफे पर अडी विपक्षी भाजपा से अलग राय व्यक्त करते हुए उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने कहा कि प्रधानमंत्री का त्यागपत्र भ्रष्टाचार को मिटाने का कोई समाधान नहीं है.
खंडूरी ने बातचीत में कहा, ‘प्रधानमंत्री का इस्तीफा भ्रष्टाचार को मिटाने का कोई समाधान नहीं है. उनके बाद फिर कोई और आयेगा, और फिर यही सब होगा। हम समस्या का तुरंत हल चाहते है और राजनीतिक तंत्र में सुधार लाकर समस्याओं को जड से समाप्त करने की कोशिश नहीं करते.
इस संबंध में भाजपा नेता खंडूरी ने केंद्र सरकार से एक बार फिर आग्रह किया कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास लंबित पडे उत्तराखंड के लोकायुक्त अधिनियम को अंतिम मंजूरी दे दें.
गौरतलब है कि खंडूरी ने पिछले साल राज्य के दोबारा मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद एक सशक्त लोकायुक्त अधिनियम विधानसभा से पारित कराया था, जिसके लिये उन्हें भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंदोलन कर रहे प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे से भी प्रशंसा हासिल हुई थी.
गत नवंबर में पारित हुए इस अधिनियम को उत्तराखंड की तत्कालीन राज्यपाल माग्रेट आल्वा ने तुरंत हस्ताक्षर करके अंतिम मंजूरी के लिये केंद्र को भेज दिया था. खंडूरी ने प्रधानमंत्री को एक अच्छा ‘अर्थशास्त्री’ बताया और कहा कि वह अत्यधिक दबाव के कारण सहज रुप से काम नहीं कर पा रहे हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में केंद्रीय सडक और राजमार्ग मंत्री रहे खंडूरी ने कहा, ‘गठबंधन राजनीति का दबाव सुधारों के रास्ते में अडंगे लगाता है, लेकिन हमें समस्याओं को जड से समाप्त करने पर ध्यान देना चाहिये.
राजनीतिक सुधारों की बात करते हुए खंडूरी ने कहा कि अब जरुरत आ चुकी है कि देश को ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिये, जहां सरकारों के कार्यकाल निश्चित हों.
उन्होंने कहा, ‘सरकारों के कार्यकाल निश्चित होने चाहिये, क्योंकि अस्थिर सरकारें अपने कार्यक्रमों को गंभीरता से लागू नहीं कर पाती.
यह पूछे जाने पर कि क्या भ्रष्ट व्यक्ति के प्रधानमंत्री बन जाना देश के लिये घातक हो सकता है, खंडूरी ने कहा कि हमारे देश में भी सरकार के मुखिया के लिए अमेरिका की तरह महाभियोग का प्रावधान होना चाहिये. खंडूरी ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय को बदनाम होने से बचाने के लिये कुछ कदम उठाये जा सकते हैं, लेकिन जबावदेही तो सबकी होनी चाहिये.
अन्ना हजारे के बारे में खंडूरी ने कहा कि उन्होंने ईमानदारी से भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया है. उन्होंने कहा, ‘यद्यपि भ्रष्टाचार को मिटाने का समाधान फिलहाल नहीं दिखाई दे रहा है, लेकिन कम से कम देश में लोग इसके बारे में बात तो कर रहे हैं.

ये सब तो होना ही था

।।रविभूषण।।
वरिष्ठ साहित्यकार
वित्तीय पूंजी के रूप-स्वरूप, चाल-चलन से अपरिचित अनजान व्यक्ति ही आज की राजनीति से किसी सार्थक उम्मीद की आशा कर सकता है. अब राजनीति नव उदारवादी अर्थ व्यवस्था के मातहत है. जिसे ‘शिकागो स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स’ कहा जाता है, वह अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन की आर्थिक दृष्टि और नीति के बाद ही प्रमुख रूप से अस्तित्व में आया. मिल्टन फ्रीडमैन नव उदारवादी अर्थशास्त्र के प्रमुख प्रणोता हैं. मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्र जन से नहीं अभिजन से, गांव से नहीं बाजार से, लघु उद्योगों से नहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों से, देशी पूंजी से नहीं विदेशी पूंजी से, कॉरपोरेट से जुड़ा है.
उनकी अर्थशास्त्रीय दृष्टि मिल्टन फ्रीडमैन से जुड़ी है. भारत की नव उदारवादी अर्थव्यवस्था को, जो 1991 से शुरू हुई और जिसे ‘टर्निग प्वाइंट’ माना जाता है, अभी तक मिल्टन फ्रीडमैन की आर्थिकी से जोड़ कर अधिक नहीं देखा गया है. अगर देखा गया होता तो फ्रीडमैन की जन्मशती की चर्चा अर्थशास्त्रियों के बीच अवश्य होती. निजीकरण, उन्मुक्त व्यापार और विदेशी पूंजी के प्रभुत्व ने मिल कर समाज की संरचना को प्रभावित किया है. हम उसकी जद में आ चुके हैंऔर हमारी संतानें, चंद अपवादों को छोड़ दें तो, हमसे दूर हो रही हैं.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कई बार यह कहा है कि उन्हें जो करना है, वे करके रहेंगे. ऐसा अटल विश्वास कहां से आता है? 1991 के पहले भारतीय राजनीति में आने का उनका एक मकसद था. गिरती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उनका आगमन हुआ. वे अर्थशास्त्री हैं और बदलते भारत व विश्व की समझ रखने वालों ने पहले यह अवश्य सोचा होगा कि वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने जो आर्थिक सुधार कायम किये हैं, उसे ध्यान में रख कर भविष्य में वे प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होंगे. उनका अर्थशास्त्र एक निश्चित तबके के लिए महत्वपूर्ण है. यह ध्यान देना चाहिए कि पिछले बीस वर्षो में भारतीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले कितनी कमजोर हुई है.
मनमोहन सिंह ने अब तक दो अवसरों पर सख्त रवैया अपनाया है, परमाणु करार और अभी विदेशी पूंजी निवेश को लेकर. दोनों बार समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह ने सरकार बचायी. आज के विश्व पूंजीवाद का समाजवाद से दूर-दूर का कोई रिश्ता नहीं. मुलायम सिंह का ‘समाजवाद’ मनमोहन सिंह के ‘स्वतंत्र पूंजीवाद’ में विलीन हो चुका है.
आज की अर्थव्यवस्था हमारे मानस को प्रभावित करती है. वह हमें अस्थिर करती है. झटके देती है. मनौवैज्ञानिक रूप से हमारी संघर्ष-शक्ति को कुंद करती है. राजनीतिक दल ही नहीं, सामान्य जन भी अपने को इस स्थिति में ‘एडजस्ट’ करते हैं. आर्थिक सुधार को, जिसका डंका पीटा जाता है, जबरन लागू किया जाता है. इसका केवल मतलब उन आर्थिक शक्तियों से होता है जो विश्व स्तर पर सक्रिय और प्रभावशाली हैं. संसद में बहसें कम होती हैं. वालमार्ट प्रमुख हो जाता है. सरकार गौण हो जाती है, कंपनियां ताकतवर. बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में सरकार बाजार के अधीन हो जाती है. रूस के राष्ट्रपति बोरिस निकोलयविच येल्तसिन ने रूस की समाजवादी अर्थव्यवस्था को नष्ट किया और भारत में नेहरू की मिश्रित अर्थव्यवस्था समाप्त की गयी. यह मात्र संयोग नहीं है कि रूस और भारत में लगभग एक ही समय 1990-91 में पुरानी अर्थव्यवस्था समाप्त हुई.
अपने देश में आर्थिक सुधारों से जुड़े सभी निर्णय लागू किये गये हैं. सभी दलों ने इसी अर्थनीति को महत्व दिया है. यह आर्थिक सुधार कभी भी साधारण जन को रास नहीं आया. नरसिंह राव की सरकार की ही नहीं, संयुक्त मोर्चा और भाजपा सरकार की भी विदाई इसी कारण हुई. विडंबना यह है कि 2004 में ‘इंडिया शाइनिंग’ के विरोध में भारतीय मतदाताओं ने कांग्रेस को प्राथमिकता दी थी. वह फिर ठगा गया. भाजपा ने वाजपेयी के समय अलग से एक विनिवेश मंत्रलय ही खोल दिया था, जिसके मंत्री अरुण शौरी थे. भाजपा ने अपने कार्यकाल में सरकारी कंपनियों को जिस तरह बेचना आरंभ किया था, वह लोगों को याद होगा. पश्चिम बंगाल में लंबे समय से सत्ता में रही वाम सरकार को आर्थिक सुधार की नीतियों को स्वीकार करने के कारण विदा होना पड़ा. सच्चई यह है कि मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम और मोंटेक सिंह अहलूवालिया नव उदारवादी अर्थव्यवस्था के पक्षधर हैं.
तृणमूल कांग्रेस के यूपीए से अलग होने के बाद सरकार अल्पमत में भले आ गयी हो, लेकिन उस पर कोई खतरा नहीं है. मुलायम सिंह अपने 22 सांसदों सहित खड़े हैं. फिर बसपा के 21 सांसदों का भी बाहर से समर्थन है. संसद के शीतसत्र में भी सरकार बहुमत में रहेगी. सपा और बसपा की बैसाखियां उसे गिरने का मौका नहीं देंगी. दो साल का समय कट जाएगा. मुलायम सिंह का तर्क सांप्रदायिक शक्तियों से दूरी का है. भारत में विदेशी पूंजी प्रवाह के बाद सांप्रदायिक शक्तियां बढ़ी हैं, ताकतवर हुई हैं. 1989 के पहले भाजपा के सांसदों की संख्या कितनी थी? 1980 के पहले विश्व हिंदू परिषद कितनी शक्तिशाली थी? बाबरी मसजिद ध्वंस, गुजरात नरसंहार, सब विदेशी पूंजी निवेश के बाद ही हुआ है.
http://www.prabhatkhabar.com/node/210301
Lastly You must read an interesting article captioned as Panchayatnama in the same newspaper Prabhat Khabar dated 21.09.2012 dealing with role of
spokesmen  called as 'Pravakta  Vahi Jo Rat Ko Din Sabit Kar DE ' which means in English -- A successful spokeman is one who can prove Night as Day  and Day as NIght ---------in Hindi -------------

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http://epaper.prabhatkhabar.com/epapermain.aspx?pppp=8&queryed=9&eddate=9/21/2012%2012:00:00%20AM

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