।। दक्षा वैदकर ।।
पिछले दिनों मेरा अपनी दीदी के पास मुंबई जाना हुआ. मैं उनके दो साल के बेटे ओम से मिलने के लिए बेहद उत्सुक थी, क्योंकि पहली बार मैं उसे तब मिली थी, जब वह महज पांच महीने का था. ओम के व्यवहार को देख मैं आश्चर्य में पड़ गयी. दरअसल, पूरे घर के माहौल ने मुङो आश्चर्य में डाला. घर में टीवी नहीं के बराबर चलता. यदि कभी चालू होता भी, तो केवल तभी जब ओम सो जाता. बस कमरे के एक कोने में रखा कंप्यूटर लगातार चलता रहता.
उसमें चलते सिर्फ बालगीत, आरती, भजन. नन्हा ओम उन बालगीतों व भजनों को इतनी बार सुन चुका था कि उसे वे शब्दों के साथ याद थे. चुन-चुन करती आयी चिड़िया, बच्चे मन के सच्चे, नानी तेरी मोरनी को.. जैसे मधुर गीत वह बड़े चाव से सुन रहा था और झूमते हुए उन्हें गा रहा था. ओम का ध्यान बीच-बीच में मेरे मोबाइल पर पड़ रहा था, जिसे देखने की वह कोशिश कर रहा था. बाल मन को शांत करने के लिए मैंने उसे हाथ में मोबाइल दिया और टॉकिंग टॉम एप्प शुरू कर दिया. इसमें बिल्ली हमारे शब्दों को दोहराती है.
मैंने उसे कहा कि वह अपने गीत बिल्ली के सामने कहे, ताकि वह उसे दोहराये. ओम ने यही किया. बिल्ली को बोलता देख वह खिलखिला कर हंसने लगा. मैंने उसे गेम के अन्य फीचर बताते हुए दिखाया कि किस तरह बार-बार बिल्ली को मारने पर वह गिर जाती है. ओम को यह फीचर ज्यादा पसंद आया और उसने बार-बार बिल्ली को मार कर गिराना शुरू कर दिया.
मेरी दीदी के ससुर जो यह सारी चीजें देख रहे थे, चुपके से मेरे पास आये. उन्होंने कहा, ‘बेटा, बच्चों को हमें जानवरों को मारना नहीं, बल्कि प्रेम करना सिखाना चाहिए. यही वजह है कि हम अपने घर में ¨हसा का कोई भी सीरियल या फिल्म नहीं देखते हैं. ऐसा नहीं है कि हमें फिल्में देखना पसंद नहीं. लेकिन ओम को अच्छी बातें ही सिखानी हैं, इसलिए हमने भी टीवी देखना छोड़ दिया है.’ अंकल की बात मुङो समझ में आ गयी, मैंने तुरंत ओम को समझाया कि बेचारी बिल्ली को चोट लगी है, उसे प्यार की जरूरत है. अब वह भी बिल्ली को प्रेम से सहलाने
लगा.
बात पते की..
आप बच्चों को जिस माहौल में रखेंगे, बच्चे वैसे ही बनेंगे. यदि आप चाहते हैं कि बच्चे टीवी से दूर रहें, तो आपको भी इसका त्याग करना पड़ेगा.
हमारे आसपास की चीजें हमारे दिमाग में बहुत असर डालती हैं. बच्च यदि मार-धाड़ की फिल्में देखेगा, तो निश्चित रूप से वह लडा़कू बन जायेगा.
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