Friday, July 13, 2018

Some Important Health Related Information

*रोगानुसार गाय के घी के उपयोग* :
१. गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है ।
२. गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है
३. गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है ।
४. 20-25 ग्राम गाय का घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांजे का नशा कम हो जाता है ।
५. गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है ।
६. नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाता है ।
७. गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है
८. गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है ।
९. गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है ।
१०. हाथ-पॉँव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है ।
११. हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी ।
१२. गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है ।
१३. गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है ।
१४. गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है ।
१५. अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें ।
१६. हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा ।
१७. गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है ।
१८. जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाई खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, इससे ह्रदय मज़बूत होता है ।
१९. देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है ।
२०. गाय का घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर या बूरा या देसी खाण्ड, तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें । प्रतिदिन प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है ।
२१. फफोलों पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है ।
२२. गाय के घी की छाती पर मालिश करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायता मिलती है ।
२३. सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम गाय का घी पिलायें, उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें, जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष भी कम हो जायेगा ।
२४. दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है ।
२५. सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, इससे सिरदर्द दर्द ठीक हो जायेगा ।
२६. यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है । वजन भी नही बढ़ता, बल्कि यह वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है तथा मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है ।
२७. एक चम्मच गाय के शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है ।
२८. गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें । इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं । यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है ।
२९. गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए । यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है ।
३०. अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को सन्तुलित करता है ।



🔥 *हवन का महत्व* 🔥
_____________________
फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः 👇

आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है।जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है ।तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।
गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।
टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।
हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की । क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है ?अथवा नही ? उन्होंने ग्रंथों  में वर्णिंत हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए । पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर ९४ % कम हो गया।
यही नहीं  उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।
यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है। रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों एवं फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का भी नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है ।
अगर चाहें तो अपने परिजनों को इस जानकारी से अवगत कराए । भगवान सभी परिजनों को सुरक्षा एवं समृद्धि  प्रदान करें ।

सबका जीवन मंगलमय हो।


*प्राकृतिक चिकित्सा का एक कटु अनुभव*

मेरे पास अभी एक ऐसा मामला आया है जिसमें पीड़ित व्यक्ति मोटापा, डायबिटीज़ और गठिया से ६ साल से परेशान है। वर्षों तक अनेक प्रकार की दवायें खाने के बाद भी जब उनको कोई लाभ नहीं हुआ, तो किसी परिचित के कहने पर वे प्राकृतिक चिकित्सा कराने को प्रेरित हुए।

इसके लिए वे बंगलौर के एक नामी संस्थान में केवल १५ दिन रहे। इस अवधि में उनका वजन जरूर ५ किलो कम हो गया लेकिन डायबिटीज़ और गठिया में कोई लाभ नजर नहीं आया। सबसे बुरी बात यह रही कि उनको वहाँ पर सर्वाइकल की नई शिकायत हो गयी। इस चिकित्सा में उनके कुल ५० हज़ार खर्च हुए। परेशान होकर वे वापस आ गये।

जब वे मुझसे मिले और सारा हाल बताया, तो मैंने पूछा कि वहाँ क्या क्या कराया गया था, तो उन्होंने बताया कि योगासन, मुद्रायें और भोजन सुधार मुख्य रूप से कराया गया।

यह जानकर मैं उनके सर्वाइकल के कष्ट का कारण समझ गया। वहाँ उनको किसी अनाड़ी योगाचार्य ने ऐसे आसन ज़बर्दस्ती कराये होंगे, जो यदि ठीक से न किये जायें, तो स्पौंडलाइटिस और सर्वाइकल जैसे कष्ट पैदा कर देते हैं। इसलिए मैं वे आसन किसी को नहीं बताता।

दूसरी बात, इन बीमारियों के इलाज के लिए छुट्टी लेकर संस्थान में रहने की कोई आवश्यकता नहीं है, बल्कि सही मार्गदर्शन देकर घर पर सभी कार्य करते हुए ही उनकी चिकित्सा भली प्रकार की जा सकती है। जैसा कि मैं सबको कराता हूँ। केवल धन कमाने के लिए पीड़ित को भर्ती कर लेना अनुचित है। ऐसे मामलों से प्राकृतिक चिकित्सा बदनाम होती है।

— *विजय कुमार सिंघल*
आषाढ़ अमावस्या, सं २०७५ वि (१३ जुलाई, २०१८)


*ध्यान की शक्ति*

थाईलैंड की गुफा में स्कूली बच्चों की फ़ुटबॉल टीम के १२ खिलाड़ियों और उनके प्रशिक्षक (कोच) के फँसने और फिर लगभग १५-२० दिन बाद निकाले जाने का समाचार आपने पढ़ा/सुना होगा। इस टीम का २५ वर्षीय कोच, जो भूमिगत गुफ़ाओं में लड़कों के साथ फँस गया था, लगभग १० वर्ष तक बौद्ध भिक्षु रहा था और प्रतिदिन एक घंटे तक ध्यान किया करता था।

सामान्य लोग और मनोवैज्ञानिक यह सोचकर आश्चर्यचकित थे कि पहाड़ों में ज़मीन के एक किमी नीचे उस बन्द गुफा में जहाँ घुप अँधेरा था और चारों ओर पानी ही पानी था किस वस्तु ने शान्त रहने में बच्चों की सहायता की थी।

वास्तव में उन बच्चों को उनके प्रशिक्षक ने उस समय ध्यान करना सिखाया था, जिस समय वे बचाव टीमों के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब थाई कोच से पूछा गया कि वह बच्चों को गुफा में किस प्रकार जीवित रख सका, तो उसने बताया कि जब वह भिक्षु था तो एक गुफा में महीनों तक प्रतिदिन गहरे ध्यान का अभ्यास किया करता था। अत: वह जानता था कि गुफा में किस प्रकार किसी व्यक्ति को शान्त और जीवित रखा जा सकता है, जहाँ बहुत अधिक असामान्य परिस्थितियाँ थीं, जैसे- घोर अन्धकार, चारों ओर जल, और बहुत कम प्राणवायु (ऑक्सीजन)।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि सभी आध्यात्मिक क्रियाओं में ध्यान सर्वोपरि है, कोई जप, तप और अन्य योग क्रियायें इसकी बराबरी नहीं कर सकतीं। लेकिन दुर्भाग्य से भारत में अधिकांश संगठनों में प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास करने पर बहुत कम ज़ोर दिया जाता है, जिसको पश्चिमी देशों में अब तेज़ी से अपनाया जा रहा है।

जहाँ तक मेरी जानकारी है बौद्ध धर्मानुयायी अन्य आध्यात्मिक क्रियाओं की तुलना में ध्यान पर बहुत ज़ोर देते हैं और वह भी गहरा ध्यान करने पर। जब वे कहते हैं कि हम एक घंटा ध्यान करते हैं, तो भले ही वे अपने मस्तिष्क को शान्त रख पाते हों या नहीं, परन्तु निश्चित रूप से वे एक घंटे तक विचारशून्यता की स्थिति में किसी आसन पर अवश्य बैठते हैं, जो अपने आप में हमारी नाड़ियों को उत्तेजक और असामान्य परिस्थितियों में शान्त रखने में बहुत सहायक होता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि हम चाहे कितने भी व्यस्त हों और चाहे हमारे पास समय का कितना भी अभाव हो, फिर भी हमें प्रतिदिन कुछ मिनट का समय ध्यान के लिए अवश्य निकालना चाहिए। यह हमें अनेक संकटों और व्याधियों से बचाता है।

— *विजय कुमार सिंघल*
आषाढ़ अमावस्या, सं २०७५ वि (१३ जुलाई २०१८)

*अधोवायु (पादना) का सरल उपचार*

पेट के भीतर बनने वाली वायु अर्थात् गैस को अधोवायु कहा जाता है। पेट के भीतर वायु बनना स्वाभाविक क्रिया है और चूँकि यह वायु नीचे के तरफ यानी गुदा से निकलती है इसलिए इसे अधोवायु कहा जाता है। इस प्रकार यह पेट में गैस बनने का एक रूप है।

यदि अधोवायु शब्द करते हुए छूटती है, तो जहाँ अन्य लोगों को अनायास ही हँसी आ जाती है, वहीं इसे छोड़ने वाला बड़ा अटपटा सा अनुभव करने लगता है।अधोवायु का पेट के बाहर निकल जाना बहुत आवश्यक  है। इसे पेट के भीतर रोककर रखने से पेटदर्द, सिरदर्द, कब्ज, एसिडिटी, जी मिचलाना, बेचैनी और यौन रोग जैसी व्याधियाँ से हो जाने की पूरी सम्भावना रहती है।

अधोवायु कई प्रकार से आवाज़ें करके हुए या बिना आवाज किये भी निकल सकती है। यह कई बार में थोड़ी-थोड़ी या एक-दो बार में अधिक मात्रा में निकल सकती है। इसकी दुर्गन्ध आस-पास बैठे लोगों को अप्रिय हो सकती है, जिससे पीड़ित को अपमानित भी होना पड़ सकता है। इसलिए अधोवायु का बनना किसी भी तरह उचित नहीं है।

यदि किसी को बहुत अधोवायु बनती है, तो उससे पता चलता है कि उस व्यक्ति की पाचन क्रिया तो सही है, परन्तु मल निष्कासन तंत्र सही कार्य नहीं कर रहा है। इसलिए उसे अपनी मलनिष्कासन क्रिया को सुचारु बनाने में लग जाना चाहिए।

इसका सरल उपाय है अधिक से अधिक जल पीना और पेडू पर ठंडे पानी की पट्टी रखने या पौंछना लगाने के बाद तेज़ी से टहलना। इससे कुछ ही दिनों में मल निष्कासन सही हो जाएगा। इसके साथ हल्का और सात्विक भोजन करना आवश्यक है।

अधोवायु होने पर तात्कालिक उपाय के रूप में दो गिलास सादा या गुनगुना जल पी लीजिए और पाँच-दस मिनट टहलकर शौच विसर्जन के लिए चले जाइए। इससे मलाशय में एकत्र मल निकल जाएगा और अधोवायु निकलना बन्द हो जाएगा।

-- *विजय कुमार सिंघल*
आषाढ़ शु 1, सं 2075 वि. (15 जुलाई, 2018)



No comments:

Post a Comment