Saturday, September 29, 2018

शरद ऋतु के स्वभाव and Preventive Action For Good Health

 Jagmohangautam writes: मित्रों, *शरद ऋतु* श्राद्ध पक्ष के प्रारम्भ होते ही दस्तक दे चुकी है। इस ऋतु के अनुसार हमको भी स्वस्थ रहने के लिये अपनी जीवन शैली मैं परिवर्तन करना होगा। इस विषय पर हमारे विशेषज्ञ गव्यसिद्ध विशाल जी ने एक लेख लिखा है जो कई पत्रिकाओं में भी छप चुका है। यह हम इस अनुरोध के साथ भेज रहें है कि स्वस्थ रहने की मुहिम में आप भी प्रतिभागी बनें। धन्यवाद- जगमोहन
 jagmohangautam: परिवर्तन ही संसार में शाश्वत है अर्थात यह संसार परिवर्तनशील है। दिन के बाद रात,रात के बाद दिन, दुःख के बाद सुख,सुख के बाद दुःख आना ही है उसी प्रकार ग्रीष्म ऋतू के बाद वर्षा और वर्षा ऋतू के बाद शरद का आना शाश्वत है। महर्षि चरक,वाग्भट्ट आदि समस्त ऋषियों ने ऋतू परिवर्तन पर समस्त प्रकृति, दोष एवं व्यवहार पर गहन अध्ययन करके अपने द्वारा लिखित महान ग्रन्थों चरक संहिता, अष्टांगहृदय के सूत्रस्थान में ऋतुचर्या पर पूरा अध्याय लिखकर प्रकृति सम्मत व्यवहार करके समस्त जगत के स्वास्थ्य की कामना और नियम बताये हैं।
अगर हम इन्ही नियमों का पालन करें तो ऋतू परिवर्तन से होने वाली छोटी-छोटी बीमारियां जो पिछले आठ-दस वर्षों से महामारियां बन गयी हैं उनको हराना बांये हाथ का खेल है।
किसी वर्ष डेंगू,किसी वर्ष चिकनगुनिया,किसी वर्ष वायरल,कभी मलेरिया,तो कभी दो-तीन मिली जुली,ऐसे उपरोक्त नाम वाली बीमारियां शरद ऋतू में देश में हाहाकार मचाती हैं।
करोड़ों रूपये का टर्नओवर,टैक्स,जीडीपी बढ़ाने वाली ये बीमारियां एलोपैथिक डॉक्टर्स,फार्मा कंपनियों,डायग्नोस्टिक लैब, हस्पतालों और सरकारों की एक ही सीजन में चांदी कटवा देती हैं और बेहाल जनता ना सिर्फ मेहनत की गाढ़ी कमाई लुटा देती है अपितु हज़ारों जानों से हाथ भी धोना पड़ता है।

जबकि इसके उलट आयुर्वेद में इसका बचाव और चिकित्सा बेहद सरल, घरेलु एवं निशुल्क जैसी है।

समस्त छह ऋतुओं(ग्रीष्म,वर्षा,शरद,हेमंत,शिशिर,बसंत) में शरद ऋतू में सबसे अधिक संक्रामक रोगों का खतरा प्राकृतिक रूप से बढ़ जाता है। इसलिए कहा भी गया है "रोगाणाम शारदी माताः" अर्थात शरद ऋतू रोगों की माता है। इसमें भी विशेषकर ऋतुसंधि अर्थात दो ऋतुओं की संधि  जब पहली ऋतू के अंत का एक सप्ताह और दूसरी ऋतू के आगमन का प्रथम सप्ताह को ऋतुसंधि कहते हैं। जैसे वर्षा ऋतू के अंत के सात दिन और शरद ऋतू के प्रारम्भ के सात दिन को मिलाकर ये चौदह दिन ऋतुसंधि हुई।
वर्षा ऋतू और शरद ऋतू का संधिकाल सबसे अधिक संक्रामक रोगों की जननी है।

किन्तु इससे घबराने,भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है अगर शरद ऋतू का स्वभाव समझकर अपने कर्मों,भोजन एवं चर्या में परिवर्तन कर लिया जाए तो ऋतू परिवर्तन का रोग नहीं आएगा और फिर भी अपनी गलती से आ जाए तो निदान भी सरल ही है।

शरद ऋतू के स्वभाव के बारे में महर्षि वाग्भट्ट अष्टांगहृदय के सूत्रस्थान के तृतीय अध्याय के उडंचसवे श्लोक में कहते हैं
"वर्षाशीतोचिताङ्ंगानां सहसैवार्करश्मिभि: ।
 तप्तानां संच्चितं वृष्टौ पित्तं शरदि कुप्यती ।।"
  अर्थात वर्षा ऋतुकी शीतलता अनुकूल हो चुकने पर शीघ्र ही शरद ऋतु की सूर्य की किरणों द्वारा तपायमान अंग होने से वर्षा में संचित हुआ पित्त शरद ऋतु में प्रकुपित हो जाता है।
  सरल शब्दों में कहें तो वर्षा ऋतु में इकट्ठा हुआ पित्त, शरद ऋतु की सूर्य की गर्मी पाकर प्रकुपित(भड़कना)  हो जाता है।
  इसलिए शरद ऋतु में बढ़े हुए पित्त को जीतने के उपाय करने चाहिए। 

आयुर्वेद में कारण (वात,पित्त, कफ) महत्व का है , कर्ता (जैसे वायरस,बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीवी) महत्व विहीन हैं। जबकि आधुनिक चिकित्सा जैसे एलोपैथी में कर्ता(बैक्टीरिया और वायरस) को नष्ट करने पर जोर है, कारण उनके लिए महत्व विहीन है।
सरल शब्दों में कहें तो बढ़े हुए पित्त(कारण जो बीमारी कर रहा है) को ठीक कर दो तो कर्ता(सूक्ष्म जीव) कभी शरीर में पनप ही नहीं पाएगा और बीमारी नहीं आएगी। और आ भी गई तो भी शरद ऋतु के बढ़े हुए पित्त को कम करने से रोग स्वतः ही चला जाएगा अर्थात पित्त घटने से चिकनगुनिया,डेंगू,मलेरिया का वायरस अपने आप मर जाएगा।

शरद ऋतु में पित्त बढ़ाने वाली समस्त वस्तुओं का उपभोग बंद कर दें या एकदम न्यून करने से ऋतु प्रदत कोई रोग नहीं आएगा जैसे
"अपथ्य आहार विहार":
१. दही: उष्ण गुण के कारण शरद ऋतु में दही एकदम वर्जित है।

२. तेल: समस्त खाद्य तेल जैसे सरसों,तिल,मूंगफली उष्ण गुण के कारण पित्तवर्धक हैं इसलिए शरद ऋतु में तेल में बनी दाल,सब्जी, पूड़ी पकवान बनाना निषिद्ध है।
(रिफाइंड तेल खाद्य तेलों की सूची में ही नहीं हैं इसलिए इन जहरीले तेलों को विकल्प के रूप में भी ना सोचें)

३. उष्ण प्रकृति वाला बैंगन और उसकी सब्जी भी शरद ऋतु में नहीं खानी चाहिए।

४. इस ऋतु में भर पेट भोजन करना भी अच्छा नहीं है।भूख से एक रोटी कम खाना हितकर है।

५. दिन में सोने से कफ और पित्त विकृत होते हैं इसलिए शरद ऋतु में दिन में नहीं सोना चाहिए।

६. दिन में धूप और रात्रि में खुले में सोने से एकदम बचना चाहिए क्यूंकि दिन की धूप से पित्त बढ़ता है और रात्रि की ओस सर्दी,बुखार की जननी है।

७. मैथुन क्रिया भी इस ऋतु में त्याज्य है क्यूंकि ओज रूपी स्निग्धता की  हानि से पित्त विकृत होता है।
८. पित्त वर्धक तीन रस: खट्टा,नमकीन और कटुक (तीखा) स्वाद वाली वस्तुएं कम से कम खानी चाहिए।

९. खट्टे रस वाले फल जैसे मौसमी, संतरा,इमली से बनी सांभर,गोल गप्पे,पित्त की वृद्धि करते हैं इसलिए इस ऋतु में ये सब त्याज्य हैं।
१०. ज्यादा नमक का प्रयोग करना भी पित्त की वृद्धि करता है।
११. कटूक (तीखा)  रस वाली औषधि(रसोई के मसाले): मिर्च(हरी,लाल,काली) ,सौंठ,हींग,लहसुन, तुलसी,गौमूत्र इत्यादि का प्रयोग बंद करना ही श्रेयस्कर है।

"पथ्य आहार विहार":
१. शरद ऋतु का प्रारंभ ही श्राद्धों से होता है और चावल दूध से  बनी खीर पित्त का क्षमन करके बीमारियों से बचाती है। श्राद्ध वाली खीर में शुद्ध गाय का दूध,प्राकृतिक चावल,देशी खांड और इलायची(शीतल तासीर) से ही बनानी चाहिए। इस खीर में उष्ण प्रकृति के बादाम,पिष्ता आदि ड्रायफ्रूट एवं विष से भरी अम्लीय चीनी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

२. भोजन बनाने के लिए शुद्ध घृत(देशी गाय के दूध से बना श्रेष्ठ) का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि घी शीतल होने के कारण पित्त का क्षमन करता है। श्राद्धों में ब्रह्म भोज की पूरी कचोरी भी शुद्ध घृत में बननी चाहिए। क्यूंकि तेल उष्ण होने के कारण पित्त वर्धक है।
३. शीतल प्रकृति वाली लौकी,तुरई, टिंडा, परमल आदि शाक सब्जी का प्रयोग अच्छा है।
४. शीतल प्रकृति वाले चावल, यव (जौं),गोधूम(गेहूं) आदि अनाजों का सेवन करना अच्छा है।
५. गुड के स्थान पर शीतल प्रकृति की खांड,खांड से बनी बूरा और मिश्री का प्रयोग करना अच्छा है।
६. पित्त शांत करने वाले तीन रस : मीठा, कड़वा एवं कसैला का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
७. देसी खांड और दूध से बनी घर की मिठाई खाना अर्थात पित्त को शांत करने का सबसे स्वादिष्ट तरीका है। इस ऋतु भोजन से पहले खीर, पेडा,बर्फी खाना श्रेष्ठ कर्म है।
८. कड़वी नीम की दातुन, ज्वर होने पर कड़वे रस प्रधान चिरायता,कुटकी,गिलोय,अदरक से बने काढों का प्रयोग अतीउत्तम है। कड़वे रस वाली औषधियां ना सिर्फ ज्वर,नजला,जुकाम को इस ऋतु में पित्त को जीत कर समाप्त कर देती हैं।
९. कसैले रस वाली सौंफ एवम् धनिए का सेवन प्रतिदिन करने से पित्त शांत रहता है और संक्रामक डेंगू,चिकनगुनिया, वायरल से हमें बचाता है।
१०. इस ऋतु में हल्का,सुपाच्य और घृत से भरपूर भोजन समस्त रोगों को हरने के लिए रामबाण उपाय है।

महर्षि वागभट्ट और महर्षि चरक द्वारा बताए शरद ऋतु के पथ्य-अपथ्य का पालन करने से कभी रोग आएगा नहीं और गलती से आ भी जाए तो कड़वी एवम् कसैली रसोई की औषधियां का प्रयोग करके बिना डॉक्टर हस्पताल जाए सहज रूप से निशुल्क ही ठीक किया जा सकता है।

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