Tuesday, November 5, 2019

घुटने_क्यों_दुखते_हैं_

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#घुटने_क्यों_दुखते_हैं_
आज तक मैंने कोई दुबला पतला कीड़ीकांप व्यक्ति घुटनों के दर्द से रोते हुए नहीं देखा...अक्सर बेडौल शरीरों वाले खाते पीते घर के लोग ही अधेड़ावस्था से लड़खड़ाते हुए बुढ़ापे तक लंगड़ाते दिखाई देते हैं...?

घुटनों की समस्या आज विकट स्थिति में आ गई है हर ४५ + व्यक्ति को भय लगा रहता है कि कभी भी घुटने टैं बोल सकते हैं...इस विषय पर शोध करते हुए कुछ विचित्र तथ्य हाथ आए हैं आवश्यक नहीं कि चिकित्सा विज्ञान के मापदंड पर ये खरे उतरते हों किन्तु विचारणीय तो हैं...

१) #एल्यूमीनियम_रसोईघर - विगत दो दशकों में हमारे रसोईघर में भोजन पकाने के बर्तनों में एल्यूमीनियम के बर्तन प्रमुख हो गए हैं इससे हमारे शरीर में धीमा जहर जा रहा है इसका प्रमाण है कि पिछले कुछ सालों में किडनी,घुटनों और कैंसर के रोगियों की संख्या में भारी बढ़ोतरी...पहले तांबा पीतल लोहे और मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल होता था चलो तांबा पीतल छोड़ो लोहे के बर्तन में पकाया अन्न लौह तत्व युक्त होता है पुराने समय में महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी कभी नहीं दिखाई दी किंतु आज अधिकांश महिलाएं इससे ग्रस्त हैं आप चाहें तो लोहे या स्टील में पकाना आरंभ कर सकते हैं पहले दाल चावल के लिए कुकर में अलग से डिब्बे आते थे आजकल आलस्य के मारे हम सीधे ही कुकर में उबाल या पका रहे हैं जो घातक है...आजकल स्टील के कुकर भी आ रहे हैं जो हानिकारक नहीं हैं...!

२) #आराम_का_जीवन- पहले हर मध्यमवर्गीय परिवार में जितनी सायकिलें होती थीं आज उतनी मोटरसाइकिलें हैं हम पैदल चलना छोड़ ही चुके हैं इससे शरीर जाम हो रहे हैं अभी घुटनों में दम है तो अधिक श्रम कीजिए इससे पानी ज्यादा पीने में आएगा और विजातीय तत्व जोड़ों में जमा नहीं होंगे जिनमें घुटने प्रमुख हैं...!

३) #ढांचे_की_क्षमता_और_वजन- हमारी हड्डियों की शक्ति उम्र के साथ कम होने लगती है और हमारे शरीर को ढोने का काम हड्डियों का ही है ऐसे में यदि वजन बढ़ता जाता है तो घुटनों के अंदर का लिगामेंट खत्म हो जाता है और स्थाई घुटनों के दर्द से पीड़ित होना पड़ता है

बुढ़ापे में चटोरापन बढ़ जाता है किन्तु उसे काबू में रखें भोजन में गलित अन्न,सलाद और गौदुग्ध भरपूर लें और हो सके तो एक ही समय भोजन करें बाकी समय सलाद या दूध ले सकते हैं नमक के पानी में गले हुए मूंगफली के दाने एक शक्तिशाली विकल्प है...!

४) #नकारात्मक_चिंतन_और_ऊब - घुटनों के दर्द से पाला जीवन के उत्तरार्ध में पड़ता है इस समय व्यक्ति जीवन में केंद्रीय भूमिका से दूर हो कर शनैः शनैः परिधि की ओर बढ़ रहा होता है ये स्वाभाविक रूप से वानप्रस्थ आश्रम की तैयारी है किंतु सांस्कृतिक अनपढ़ों के लिए यही नकारात्मक ऊर्जा बन जाता है

अपनी भूमिका निभाई जा चुकी है अब शरीर के बंधन शिथिल करने के लिए तैयार हो जाओ...ऊब या असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हो रुग्ण मानसिकता में जीने से अच्छा है बचे हुए समय का नियोजन...!

५) #साधक_जीवन और #तीर्थाटन- संत कहते हैं "भ्रम है तो भ्रमण कर" जीवन के मध्यकाल में ही तैयारी कर लें कि एक दिन सब छोड़ कर बस साधना में रहने और तीर्थ में निवास करने वाले जीवन का वरण करना है साधना के पथ पर यदि तीर्थ निवास मिलता है तो सोने पे सुहागा हो जाएगा तीर्थ पर्यटन स्थल नहीं होता है अपने गुरु के पास रहने के बराबर कोई तीर्थ नहीं है फिर जो एकांत स्थान और साधन के अनुकूल हो,साधक के लिए वही तीर्थ है...!

मूल स्वर ये है कि एक समय आता है जब #अपने_घर जैसी भावना को तिलांजलि देकर"करतल भिक्षा, तरुतल वासा" के भाव को जीवन का ध्येय वाक्य बना लेना है...घुटने शरीर के आधार हैं और मृत्यु के भय से हमारे आधार हिल जाते हैं...!!!

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