प्राकृतिक चिकित्सा - 22
वमन या कुंजल
पानी पीकर मुँह से निकाल देने की क्रिया को कुंजल कहा जाता है। (कुछ लोग इसे कुंजर कहते हैं।) यह क्रिया एनीमा की पूरक क्रिया है। एनीमा से बड़ी आँतों और गुदा की सफाई होती है, तो कुंजल क्रिया से आमाशय और छोटी आँतों की सफाई हो जाती है। जब किसी कारणवश अपचन हो गयी हो या उल्टी के कारण बेचैनी अनुभव हो रही हो, तो यह क्रिया कर लेनी चाहिए। इससे तुरन्त आराम मिलता है।
सामान्य स्वस्थ व्यक्ति भी यदि सप्ताह में एक बार यह क्रिया कर ले, तो बहुत लाभ होता है। इस क्रिया से आँखों और दाँतों को भी काफी लाभ होता है। यदि कभी फूड पाॅइजनिंग हो जाये या कोई जहरीला पदार्थ खा लिया हो, तो तत्काल यह क्रिया कर लेनी चाहिए। सामान्यतया यह क्रिया प्रातः खाली पेट शौच के बाद ही करनी चाहिए और यदि एनीमा लेना हो, तो वह भी पहले ही ले लेना चाहिए।
कुंजल करने के लिए एक छोटे भगौने में एक-डेढ़ लीटर गुनगुना पेय जल लीजिए। उसमें बहुत थोड़ा-सा सैंधा या सादा नमक मिला लीजिए। अब कागासन में अर्थात् दोनों पंजों के बल बैठकर किसी गिलास से उस पानी को गटागट पीते जाइये। तीन, चार, पाँच... जितने गिलास पानी आप पी सकें, पी जाइये। जब पानी और न पिया जाये तथा उल्टी होने लगे, तो रुक जाइये।
अब बाथरूम में या खुले मैदान में किनारे पर जाकर सीधे खड़े हो जाइये और कमर से आगे की ओर झुक जाइये। फिर बायें हाथ से पेट को हल्का सा दबाते हुए दायें हाथ की बीच की तीनों उँगलियों को मिलाकर गले में डालिए और गले के काग को हिलाइए। इससे उल्टी होने लगेगी। जब तक पानी निकले तब तक निकलने दीजिए। पानी निकलना रुक जाने पर फिर उँगलियों से काग को हिलाइए। इस प्रकार बार-बार करते हुए सारा पानी निकाल दीजिए। यदि अन्त में काफी खट्टा पानी निकल रहा हो, तो दो गिलास पानी और पीकर फिर से कुंजल करना चाहिए। यदि थोड़ा-बहुत पानी पेट में छूट भी गया हो, तो चिन्ता न करें, वह पेशाब के रूप में अपने आप निकल जाएगा।
कुंजल क्रिया करने के बाद ठंडी हवा में नहीं निकलना चाहिए और न तत्काल स्नान करना चाहिए। सबसे अच्छा यह है कि कुंजल के बाद थोड़ा आराम करें या चादर ओढ़कर लेट जायें। कुंजल के बाद कम से कम एक घंटे तक कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए।
सावधानी- अम्लता (एसिडिटी) के रोगियों को कुंजल के लिए गुनगुने के बजाय सादा पानी लेना चाहिए और नमक भी नहीं मिलाना चाहिए।
प्राकृतिक चिकित्सा - 23
भाप स्नान
पूरे शरीर पर भाप लगाकर पसीना निकालने को भाप स्नान या वाष्प स्नान (स्पा) कहा जाता है। यह आयुर्वेद की स्वेदन क्रिया का आधुनिक रूप है। इसका उद्देश्य शरीर विशेषकर त्वचा और खून की सफाई करना है। इससे त्वचा के रोम छिद्र खुल जाते हैं और पसीने के रूप में शरीर की बहुत सी गन्दगी बाहर निकल जाती है। अतः इस क्रिया से सभी रोगों में लाभ होता है। मोटापा घटाने का भी यह अच्छा सहायक साधन है।
भाप स्नान के लिए प्रायः एक विशेष प्रकार का बॉक्स बनवाया जाता है, जिसमें एक स्टूल पर मरीज सारे कपड़े उतारकर बैठ जाता है और बॉक्स का ढक्कन बन्द कर देने पर केवल उसका गले से ऊपर का भाग बॉक्स के बाहर रहता है, शेष भाग बॉक्स में रहता है। भाप स्नान लेने से पहले एक गिलास शीतल जल पी लेना चाहिए और सिर पर ठंडे पानी में भिगोयी हुई तौलिया रखनी चाहिए। अब किसी प्रकार से बॉक्स में भाप भेजी जाती है। जब यह भाप पूरे शरीर पर लगती है, तो शरीर गर्म हो जाता है और बहुत पसीना आता है। भाप स्नान लेते हुए भीतर ही भीतर शरीर की हल्की मालिश भी करते रहना चाहिए। आवश्यक समय तक भाप लगाने के बाद बाहर निकलकर ठंडे पानी से स्नान कर लिया जाता है। स्नान करते समय साबुन नहीं लगाना चाहिए।
भाप स्नान के लिए बॉक्स की व्यवस्था सभी जगह नहीं हो सकती। परन्तु इसके बिना भी भाप स्नान लिया जा सकता है। इसके लिए प्लास्टिक या मोटे कपड़े का एक पेटीकोट के आकार का कवर बनवाया जाता है, जिसमें ऊपर नाड़ा पड़ा होता है। यह कवर इतना बड़ा होना चाहिए कि रोगी स्टूल पर बैठकर उससे चारों तरफ से पूरी तरह ढक जाये और उसका कुछ भाग जमीन से छूता रहे। नाड़ा खींचकर रोगी के गले पर धीरे से कस दिया जाता है। इससे नीचे का सारा शरीर बॉक्स की तरह कवर में बंद हो जाता है। एक नली से भाप को उस कवर के अन्दर इस प्रकार पहुंचाया जाता है कि सीधे शरीर में न लगे, ताकि वह जले नहीं। शेष क्रिया बॉक्स वाले स्नान की तरह होती है।
भाप या तो बिजली की केतली से बनाई जा सकती है या गैस के चूल्हे पर कुकर रखकर उसकी सीटी की जगह रबड़ की नली लगाकर भाप को बॉक्स या कवर के अन्दर पहुंचाया जा सकता है। भाप स्नान लेने से बहुत पसीना निकलता है, जिससे शरीर की अच्छी सफाई हो जाती है। अधिक सफाई के लिए गीले तौलिये के टुकड़े से शरीर को अच्छी तरह रगड़ना चाहिए। भाप स्नान से खून की सफाई होती है, शरीर की फालतू चर्बी कम होती है और शरीर मजबूत होता है।
भाप स्नान सप्ताह में एक बार बेखटके लिया जा सकता है। आवश्यक होने पर दो बार भी ले सकते हैं। यदि भाप स्नान के अगले दिन शरीर पर सरसों के तेल की मालिश कर ली जाये, तो बहुत लाभ होता है।
प्राकृतिक चिकित्सा - 24
धूप स्नान
यह भाप स्नान की वैकल्पिक क्रिया है। जब भाप स्नान के लिए आवश्यक बॉक्स, कवर या भाप उत्पन्न करने के साधन की व्यवस्था न हो सके, तो उसके स्थान पर धूप स्नान लिया जा सकता है। धूप स्नान से भाप स्नान के सभी लाभ प्राप्त हो जाते हैं।
धूप स्नान किसी छत या बालकनी में ऐसी जगह लेना चाहिए, जहाँ दोपहर को सीधी धूप आती हो। इसका सबसे अच्छा समय दोपहर 12 बजे से 2 बजे के बीच है। धूप स्नान के लिए केवल अधोवस्त्र पहने रहिए। पहले एक गिलास ठंडा पानी पी लीजिए और सिर पर एक कपड़ा तीन-चार तह करके ठंडे पानी में भिगोकर रख लीजिए। अब धूप आने वाली जगह पर चटाई बिछाकर एक कम्बल ओढ़कर बैठिए। कम्बल को इस प्रकार ओढ़ना चाहिए कि पूरा शरीर अच्छी तरह ढक जाए और सांस लेने के लिए नाक खुली रहे।
इस तरह धूप में बैठने पर थोड़ी देर में शरीर गर्म हो जाएगा और पसीना आने लगेगा। खूब पसीना आ जाने पर उठ जाना चाहिए। इसके लिए आपको लगभग आधे घंटे तक धूप में बैठने की आवश्यकता हो सकती है। यदि धूप में बैठने पर चक्कर आने लगें, तो तत्काल उठ जाना चाहिए। इसके बाद तुरन्त बाथरूम में जाकर ठंडे जल से स्नान कर लेना चाहिए। गीले कपड़े से रगड़-रगड़कर नहाना चाहिए। साबुन, तेल आदि नहीं लगाने चाहिए।
धूप सेवन
यह भी शरीर को बहुत लाभ पहुँचाने वाली क्रिया है। इससे शरीर में विटामिन डी की उत्पत्ति होती है। गर्मियों में प्रातः 8 से 10 बजे तक और जाड़ों में दोपहर 10 से 2 बजे तक की सुहानी धूप इसके लिए सबसे अधिक उपयुक्त होती है। इसमें शरीर पर कम से कम वस्त्र पहनकर या नंगे बदन धूप की तरफ पीठ करके बैठा जाता है। इसका समय आपकी सुविधा के अनुसार आधे घंटे से लेकर डेढ़ घंटे तक हो सकता है। आप स्नान करके भी धूप सेवन कर सकते हैं या धूप सेवन के बाद स्नान कर सकते हैं।
यदि शरीर में विटामिन डी की बहुत कमी हो, तो धूप सेवन के समय पहले पूरे शरीर पर सरसों के तेल की मालिश करनी चाहिए। फिर उसके बाद आवश्यक समय तक पीठ पर धूप का सेवन करना चाहिए। उसके बाद गीले कपड़े से रगड़कर स्नान करना चाहिए। यह क्रिया सप्ताह में एक बार कर ली जाये, तो शरीर को बहुत लाभ होता है। विटामिन डी की कमी पूरी हो जाती है, त्वचा के रोग दूर होते हैं और हड्डियाँ मजबूत हो जाती हैं। यदि आपके पास धूप सेवन की सुविधा हो, तो अवश्य इसका लाभ उठाना चाहिए।
प्राकृतिक चिकित्सा - 25
जुकाम की सरल चिकित्सा
सर्दी के मौसम में होने वाले जुकाम का पूरा और पक्का इलाज आप स्वयं सरलता से कर सकते हैं। आप जानते होंगे कि हमारे शरीर में तीन दोष होते हैं- कफ, वात और पित्त। जब तक ये तीनों दोष संतुलन की अवस्था में रहते हैं, तब तक शरीर स्वस्थ रहता है और किसी एक या दो की अधिकता या कमी हो जाने पर शरीर में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। आम तौर पर होने वाला जुकाम कफ की अधिकता के कारण होता है।
हम जो खाते हैं, उसे अच्छी तरह पचा नहीं पाते, क्योंकि हम पर्याप्त शारीरिक श्रम या व्यायाम नहीं करते। अतः हमारे शरीर में कफ एकत्र हो जाता है। जब तक शरीर उसको संभाले रहता है, तब तक हम स्वस्थ रहते हैं या स्वस्थ मालूम पड़ते हैं, लेकिन कफ एक सीमा से अधिक हो जाने पर शरीर अचानक ठण्ड लगने पर या किसी अन्य बहाने से उसको नाक और गले के रास्ते निकालना शुरू कर देता है। उसी को हम जुकाम कहते हैं।
इससे स्पष्ट है कि जुकाम वास्तव में कोई बीमारी नहीं है, बल्कि हमारे शरीर को अनावश्यक कफ से मुक्त करने का प्रकृति का प्रयास है। हम उस कफ को निकालने में प्रकृति की सहायता करके अति शीघ्र जुकाम से मुक्ति पा सकते हैं और पहले से अधिक स्वस्थ हो सकते हैं। यह एक भ्रम है कि जुकाम किसी रोगाणु के कारण होता है।
इसलिए जुकाम होते ही सबसे पहले तो हमें कफ पैदा करने वाली सभी चीजों जैसे चिकनाई, मैदा, तली हुई चीजें, बाजारू फास्ट फूड आदि को खाना-पीना बंद कर देना चाहिए। इसके साथ ही नाक या गले से निकलने वाले कफ को रूमाल से पोंछकर साफ करते रहना चाहिए। भूलकर भी कफ को वापस अन्दर न खींचें। जितना अधिक कफ बाहर निकलेगा, उतनी ही जल्दी आप स्वस्थ होंगे। अनावश्यक कफ निकल जाने पर जुकाम अपने आप बंद हो जाता है और शरीर बहुत स्वस्थ हो जाता है। यदि आप दवाएं खाकर कफ का निकलना रोक देंगे तो वही कफ आगे चलकर ब्रोंकाइटिस, दमा, एलर्जी जैसे अनेक रोग पैदा करेगा। इसलिए भूलकर भी जुकाम में कोई दवा नहीं लेनी चाहिए।
कफ सरलता से निकले इसके लिए गुनगुना पानी पीना लाभदायक होता है। जब भी प्यास लगे या नियमित अंतरालों पर एक गिलास गुनगुना पानी दिनभर पीते रहिए और उतनी ही बार मूत्र विसर्जन भी कीजिए। इससे शरीर में आवश्यक गर्मी बनी रहेगी और सफाई भी होती रहेगी। गुनगुने पानी में आप नीबू भी डाल सकते हैं। नीबू से कफ निकलने में सहायता मिलती है। हल्का व्यायाम भी कीजिए और गीले कपड़े से रगड़ते हुए नहाइए। नहाने के बाद थोड़ी देर धूप अवश्य खानी चाहिए। इससे कफ को निकलने में बहुत सहायता मिलेगी। यदि भाप स्नान या धूप स्नान की सुविधा हो तो वह भी कर सकते हैं।
3-4 दिन इतना करने से शरीर का समस्त फालतू कफ प्राकृतिक रूप से निकल जाता है। इस समय आप पहले से अधिक हल्का और स्वस्थ अनुभव करते हैं तथा बड़ी बीमारियों से भी बचे रहते हैं। जिन लोगों को लगातार जुकाम बना रहता है, वे प्रारम्भ में दो-तीन दिन का उपवास भी केवल जल पीकर कर लें, तो बहुत जल्दी इससे छुटकारा पा सकते हैं।
-- डॉ विजय कुमार सिंघल
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
प्राकृतिक चिकित्सा - 26
खाँसी की सरल चिकित्सा
खाँसी जुकाम का ही दूसरा रूप है। जब कफ या बलगम नाक से निकलता है, तब हम उसे जुकाम कहते हैं और जब वह गले से निकलता है, तब हम उसे खाँसी कहते हैं। खाँसी में अतिरिक्त बुरी बात यह है कि यह बिगड़े हुए कब्ज और फेंफड़ों में विकार एकत्र होने का भी परिचायक है। गले से बार-बार जो खाँसी उठती है, उससे पता चलता है कि आँतों में बहुत-सा मल सड़ रहा है, जो निकलने के लिए व्यग्र है, मगर गुदा के रास्ते नहीं निकल पा रहा है और इसीलिए उसका उफान ऊपर की ओर हो रहा है। खास तौर से सूखी खाँसी का तो यही मुख्य कारण होता है। कई बार खाँसी शरीर में अम्लता (एसिडिटी) के कारण भी आती है।
खाँसी चाहे सूखी हो या गीली, वह इस बात का प्रतीक है कि शरीर में विजातीय द्रव्यों अर्थात् विकारों की मात्रा शरीर की सहन सीमा से बाहर होती जा रही है और यदि उनको तत्काल निकाला न गया, तो नये-नये रोग होने की पूरी सम्भावना है। हमारी अम्मा (दादी) प्रायः एक कहावत सुनाया करती थी- ‘लड़ाई कौ घर हाँसी, रोग कौ घर खाँसी’ अर्थात् ”हँसी-मजाक करना लड़ाई-झगड़े का मूल होता है और खाँसी रोगों का मूल होता है।“ यह कहावत सवा सोलह आने सत्य है। यदि हमें लड़ाई-झगड़े से बचे रहना है, तो लोगों का मजाक उड़ाने से बचना चाहिए और यदि अनेक रोगों से बचना है, तो खाँसी से बचना चाहिए।
खाँसी की चिकित्सा में कब्ज और जुकाम की सम्मिलित चिकित्सा करनी चाहिए। कब्ज दूर करने के लिए मिट्टी की पट्टी, एनीमा और कटिस्नान लेना चाहिए तथा जुकाम दूर करने के लिए गुनगुना पानी पीना चाहिए और पर्याप्त व्यायाम करना चाहिए। अच्छा तो यह हो कि इलाज की शुरुआत एक-दो दिन के उपवास या रसाहार से की जाये। खाँसी का इलाज तब तक करते रहना चाहिए जब तक इससे पूर्ण मुक्ति न मिल जाये। सामान्य खाँसी के इलाज में एक सप्ताह लग जाता है। अधिक पुरानी खाँसी होने पर अधिक समय भी लग सकता है। फेंफड़ों की सफाई के लिए प्रतिदिन 5 मिनट तक भस्त्रिका प्राणायाम करना आवश्यक है। यदि अम्लता (एसिडिटी) भी हो, तो कपालभाति और नाड़ीशोधन प्राणायाम का अभ्यास भी करना चाहिए। अम्लता के रोगियों को गुनगुने पानी की जगह साधारण जल पीना चाहिए।
यदि खाँसी अधिक परेशान करने वाली हो और लगातार खाँसना पड़ रहा हो, तो अदरक के रस में बराबर मात्रा में शहद मिलाकर चाटिए। इससे आराम मिलेगा, परन्तु भूलकर भी कभी कफ सिरप जैसी दवाएँ नहीं लेनी चाहिए।
-- डॉ विजय कुमार सिंघल
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
No comments:
Post a Comment