प्राकृतिक चिकित्सा - 34
भस्त्रिका प्राणायाम
भस्त्रिका का अर्थ है धोंकनी। इसमें साँस किसी लोहार की धोंकनी की तरह चलती है, इसलिए इसे भस्त्रिका प्राणायाम कहा जाता हैं। यह हठयोग के षट्कर्मों में से एक है। सामान्यतया हम जो साँस लेते हैं, उसमें हमारे फेंफड़ों का बहुत कम भाग क्रियाशील रहता है। अधिकांश भाग में से हवा पूरी तरह नहीं निकलती और इसीलिए उनमें ताजी हवा नहीं भरती। इस कारण फेंफड़े अपना कार्य पूरी तरह नहीं कर पाते। फेंफड़ों के निष्क्रिय भागों में रोगों के कीटाणु पलते रहते हैं। भस्त्रिका प्राणायाम का उद्देश्य है फेंफड़ों को पूरी तरह खाली करना और भरना। इसके लिए लगातार गहरी साँसें ली और छोड़ी जाती हैं।
भस्त्रिका प्राणायाम कई प्रकार से किया जाता है। आचार्य रजनीश (ओशो) अपने शिष्यों को यह प्राणायाम लगातार 10-12 मिनट तक कराते थे। इससे पूरे शरीर का अच्छा व्यायाम भी हो जाता है। परन्तु इस पद्धति में एक खतरा भी है कि शरीर बुरी तरह थक जाता है और कभी-कभी दिमाग पर बहुत जोर पड़ जाने के कारण सिर चकराने लगता है। इसलिए यह प्राणायाम इतनी देर तक लगातार न करके बीच-बीच में विश्राम देते हुए करना अधिक लाभदायक है। स्वामी शिवानन्द जी महाराज की पद्धति इसमें सबसे अधिक उपयुक्त है। इससे प्राणायाम की मात्रा पर अपने आप नियंत्रण हो जाता है, थकान भी नहीं होती और इसका पूरा लाभ भी मिल जाता है। यहाँ मैं इसी पद्धति को बता रहा हूँ।
उचित आसन में बैठकर पहले साँस पूरी तरह निकाल दीजिए। साँस छोड़ते हुए पेट पिचकना चाहिए। अब गहरी साँस बलपूर्वक खींचिए, इतनी कि फेंफड़ों में अच्छी तरह हवा भर जाये। अब बिना रोके तत्काल ही साँस बलपूर्वक पूरी तरह निकाल दीजिए। इस प्रकार तीन से पाँच बार साँस छोड़ने और भरने से एक चक्र पूरा होता है। प्रत्येक चक्र के बाद दो-तीन साँसें साधारण तरीके से लेकर विश्राम कर लेना चाहिए। प्रारम्भ में ऐसे केवल तीन चक्र कीजिए। फिर हर सप्ताह एक चक्र बढ़ाते हुए अपनी शक्ति के अनुसार 7 से 11 चक्रों तक पहुँचना चाहिए। इसके बाद उतने ही चक्र रोज करते रहना चाहिए।
वैसे इसकी एक सरल विधि और है। इसमें पहले एक मिनट तक धीरे-धीरे गहरी साँसें ली और छोड़ी जाती हैं। फिर एक मिनट तक थोड़ी तेजी से गहरी साँसें ली और छोड़ी जाती हैं। इसके बाद जितने भी समय करना हो उतने समय तक खूब तेजी से गहरी साँसें ली और छोड़ी जाती हैं। यह प्राणायाम करते समय यदि आप थक जायें या समय पूरा हो जाये या सिर में चक्कर आने लगें, तो तत्काल रुक जाना चाहिए और विश्राम करना चाहिए।
इस प्राणायाम से बहुत लाभ होता है। सबसे बड़ा लाभ यह है कि खून बहुत जल्दी शुद्ध होता है और सभी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ यदि निष्क्रिय या कमजोर हों तो अति सबल और सक्रिय हो जाती हैं। श्वाँस नली पूरी तरह साफ हो जाती है। इससे खर्राटे भी बन्द हो जाते हैं। यह प्राणायाम जल नेति के बाद नाक में भरा हुआ जल सुखाने के लिए भी किया जाता है। इस प्राणायाम का लाभ लगभग 1 माह बाद दृष्टिगोचर होता है। इसलिए धैर्यपूर्वक करते रहना चाहिए। इसमें मनमानी नहीं करनी चाहिए।
-- डाॅ विजय कुमार सिंघल
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
मो. 9919997596
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प्राकृतिक चिकित्सा - 35
आँखें ठीक करने और चश्मा उतारने का रामवाण उपाय: त्राटक
आँखों का कमजोर होना एक आम शिकायत है। आजकल बहुत छोटे-छोटे बच्चों की आँखों पर भी चश्मा चढ़ा हुआ दिखायी देता है। देर तक टीवी देखना, कम्प्यूटर पर गेम खेलना और फास्ट फूड खाना इसके प्रमुख कारण हैं। आँखें ठीक करने के लिए आँखों के विशेष व्यायाम दिन में कम से कम एक बार नियमित रूप से करने चाहिए, जो नीचे बताये गये हैं।
आंखों के व्यायाम-
(1) आंखों की पुतलियों को दायें से बायें और बायें से दायें धीरे-धीरे 10-10 बार ले जाइए।
(2) इसी तरह ऊपर-नीचे 10-10 बार कीजिए।
(3) ऊपर-दायें-नीचे-बायें इस प्रकार 10 बार घुमाइए। इसी प्रकार 10 बार उल्टी दिशा में घुमाइए।
(4) पुतलियों को गोलाई में घड़ी की सुई की दिशा में 10 बार और उसकी उल्टी दिशा में 10 बार घुमाइए।
(5) पहले सामने किसी दूर की चीज को देखिए, फिर उसी रेखा में पास की चीज को देखिए। इस प्रकार 10-10 बार कीजिए।
(6) अन्त में दोनों हथेलियों को आपस में रगड़कर हलका गर्म कर लीजिए और आँखों को धीरे से दबाइए।
आंखों को धोना-
व्यायामों के साथ ही आँखों को दिन में तीन-चार बार ठंडे पानी से धोना चाहिए। ठंडा पानी आँखों के लिए अमृत के समान है। आंखों को धोने के लिए एक विशेष प्रकार का छोटा सा ‘आई वाश कप’ आता है, जो मेडीकल की बड़ी दुकानों पर मिल जाता है। यह शराब के गिलास की आकृति का होता है। उसमें खूब ठंडा पानी भरकर एक आंख को उस पर जमाकर रखिए और फिर कप उसी तरह लगाये हुए सिर को पीछे की तरफ उल्टा कर दीजिए। इससे आंख पानी में डूब जाएगी। अब पलकों को झपकाइए। लगभग एक मिनट तक ऐसा कीजिए। फिर उस पानी को फेंककर फिर से पानी भरकर दूसरी आंख को भी धो लीजिए। यदि आई वाश कप न मिले, तो आप अपने एक हाथ की अंजुली में ठंडा पानी भरकर उसमें आंख को डुबोकर भी धो सकते हैं।
त्राटक-
आँखों की कमजोरी दूर करने और चश्मा उतारने के लिए त्राटक की क्रिया रामवाण है। यह बहुत सरल है। इसकी विधि यह है कि किसी साफ सफेद कागज पर कमीज के बटन के बराबर वृत्त बनाकर उसमें काला रंग भर लें। ऐसा बिन्दु काले स्केच पेन से भी बनाया जा सकता है। अब उस कागज को किसी साफ दीवार पर इतनी ऊँचाई पर चिपकायें कि जमीन या कुर्सी पर बैठने पर काला बिन्दु आँखों के ठीक सामने आये।
अब किसी सुविधाजनक आसन पर दीवार से लगभग 5 फीट दूर बैठकर बिना पलक झपकाये इस काले बिन्दु को लगातार टकटकी लगाकर देखिए। आँखें थक जाने पर या उनमें पानी आ जाने पर आँखें बन्द कर लीजिए। प्रारम्भ में आँखें जल्दी थक जायेंगी, लेकिन अभ्यास बढ़ाने पर 5-10 मिनट में भी नहीं थकेंगी। यह क्रिया प्रतिदिन एक या दो बार करनी चाहिए। इससे आँखें ठीक होती हैं और एक-दो माह में नजर का चश्मा भी छूट जाता है। त्राटक से पहले और बाद में आँखों को ठंडे पानी से धो लेना और भी अच्छा रहता है।
मैंने अनुभव किया है कि निरंतर 15 दिन लगातार सुबह-शाम त्राटक करने से चश्मे का नम्बर 0.5 तक कम हो जाता है। इस तरह यदि आपके चश्मे का नम्बर 2 है अर्थात् ़2 या -2, तो केवल दो महीने में वह छूट जाएगा। हर 15 दिन बाद आपको कम नम्बर का चश्मा लगाने की आवश्यकता हो सकती है।
आंखें प्रायः विटामिन ए की कमी के कारण भी कमजोर हो जाती हैं। इसलिए विटामिन ए की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ, जैसे- गाय का दूध, गाजर, पालक आदि का सेवन पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए।
-- डाॅ विजय कुमार सिंघल
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
मो. 9919997596
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सर्दी में किन्नु खाइए स्वस्थ रहिए.
किन्नु फल दिखने में संतरे जैसा होता है. किंतु पोषक तत्त्व संतरे की अपेक्षा कहीं अधिक होते हैं. कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले रोगी यदि किन्नु फल प्रतिदिन खाएँ तो अत्यधिक लाभ प्राप्त हो सकता है. नज़ले के रोग में किन्नु खाने से नजला रोग काफ़ी कम हो जाता है एवं नज़ले की दवाएँ भी ज़्यादा अच्छे से प्रभाव दिखा पाती हैं.
किन्नु खाने से शरीर में पानी की कमी पूरी हो जाती है. सर्दियों में कम पानी पीने के कारण शरीर में जो कमी आती है उनको किन्नु खाने से दूर किया जा सकता है. इसके अतिरिक्तभी इसके अनेकों लाभ हैं -
डायजेशन में करता है सुधार
किन्नू के सबसे अच्छे गुणों में से एक यह है कि यह पेट में घुल जाता है और डायजेशन सिस्टम पर कोई दबाव डाले बिना पाचन में मदद करता है. इसलिए, यदि आपका पेट कमजोर है या बदहजमी की समस्या है, तो आप दूध पीना छोड़कर अपने नाश्ते में किन्नू के जूस को शामिल कर सकते हैं. प्रभावी परिणामों के लिए एक्स्पर्ट दिन में दो बार ताजा फलों के सेवन का सुझाव देते हैं.
एलर्जी और सीने में जलन करता है कम
अगर आप एसीडिटी या सीने में जलन से पीड़ित हैं, तो किन्नू आपके लिए सर्वोत्तम फल है. किन्नू खनिज लवण में समृद्ध होते हैं, इसलिए, यह एसिडिटी को कम करने में सक्षम हैं. ऐसा माना जाता है कि रोज किन्नू का सेवन उन लोगों के लिए काफी प्रभावी है जो बैठकर ज्यादा काम करते हैं.
विटामिन सी और मिनरल से है भरपूर
किन्नू विटामिन सी से समृद्ध होता है. विटामिन सी एंटी एजिंग एजेंट की तरह काम करता है. किन्नू खाने या इसका जूस पीने से झुर्रियों से निपटने में मदद मिलती है. इसके अलावा, किन्नू में मौजूद खनिज न केवल हमारे समग्र चयापचय को बढ़ाते हैं बल्कि स्किन को शाइनी भी बनाते हैं.
कोलेस्ट्रॉल लेवल को करता है बैलेंस
हेल्थ एक्स्पर्ट के अनुसार, किन्नू को खराब कोलेस्ट्रॉल की उपस्थिति और प्रभाव को कम करने और हमारे शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा में वृद्धि के लिए जाना जाता है. रोजाना किन्नू का सेवन एथेरोस्क्लेरोसिस, हार्ट अटैक और स्ट्रोक की संभावनाओं को कम कर सकता है.
देता है नेचुरल एनर्जी
नियमित रूप से किन्नू का सेवन हमारे शरीर को सक्रिय करता है. कार्बोहाइड्रेट से भरपूर किन्नू में ग्लूकोज, फ्रक्टोज़ और सुक्रोज भी पाया हाता है. किन्नू को एनर्जी का सर्वोत्म स्रोत माना जाता है. किन्नू के जूस को आप वर्क आउट के बाद एनर्जी ड्रिंक के रूप में भी ले सकते हैं.
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