Sunday, April 13, 2014

Why Supporters Of Kejriwal Became Haters and Opponents Of Kejriwal

Sunday, 13 April 2014

Anna Hazare concluded,

 " It is simple Murder of People's ( common men) Pious Aspirations .(Source: India Honest)

Anna Hazare, the former mentor of the AAP convener, said "it was Kejriwal's hunger to be prime minister that had led him to quit", only hours after Arvind Kejriwal himself accepted that his decision to make the Aam Aadmi Party government in Delhi resign from office was a poorly conceived strategy. 

Speaking to news media at his office in Ralegan Siddhi, his native village in Maharashtra's Ahmednagar district, Hazare said he had declared at the time of the AAP government's resignation in Delhi that this was a major mis-step. But Kejriwal was seized by the idea that he could be prime minister, Hazare said, "I had said so at the time that he resigned -- this was a mistake. Uska kaaran yeh hai ki pant-pradhan dimaag mein baith gaya. (The reason for that is that the idea of prime ministership had occupied his mind.) That led him to field candidates across the country," .

The social activist Hazare said that he had declared that Kejriwal should not attempt to break into national politics until he had shown results in Delhi. Anna Hazare said at his office,"I had said make Delhi a model. If Delhi becomes a model, then in the next general election the country would have been in the hands of AAP,".  

INDIA HONEST regrets, if Arvind has understood in time the silent message of Annaji, his one time  mentor ? Annaji with his many decades old experience has clearly fixed the road of a real social activist , and has justified his theory that social activism can be effected better, while staying away from power politics . 

Power politics is easily invaded by greed, that pushes for more higher power seat target and ultimately misses the original  goal, being forgotten. It is simple murder of people's ( common men) pious aspirations.

"हमारी आवाज़- आम आदमी की आवाज़ "......................
“अगर हम खामोश हैं, तो आप ये मत समझिए,
कि हमें बोलना नहीं आता, कि हमें सोचना नहीं आता,

हकीकत तो यह है कि खुद हमने, अपने सोचने और बोलने का हक,
बहुत पहले सौंप दिया था, कुछ उन चुनिन्दा लोगों के हाथों में,
जिन्हें हमने चुना था अपना जन-प्रतिनिधि,
ताकि वो सोच सकें हमारें बारे में,
ताकि वो सोच कर बोल सकें संसद में देश के बारे में,
इसलिए हमने सोचना और बोलना, छोड़ दिया था कुछ समय के लिए,

पर अब हम खुद को ठगा सा महसूस करने लगे हैं,
शायद इसलिए कि हमारे चुने हुए जन-प्रतिनिधियों ने,
सोचने और बोलने का हमारा दिया हुआ अधिकार,
सिमित कर लिया है सिर्फ लालच और फायदे के लिए,
अपने परिवार,रिश्तेदार और चमचों के भले के लिए,
पर अब सहा नहीं जाता, अब और रहा नहीं जाता,
भूख,मंहगाई,भरष्टाचार,बेरोज़गारी और आतंकवाद का,
पल पल बढ़ता नासूर, अब और देखा नहीं जाता,
पर अब हमें अपनी सोच और आवाज़ वापिस चाहिए,
ताकि हम ले सकें जरुरी फैसले अपनी जिंदगी के,
हमारी भूखी, बेहाल, बेसहारा रेंगती जिन्दगी के,
आपके, हमारे और आम आदमी की जिन्दगी के"
अगर हम खामोश हैं, तो आप ये मत समझिए,
कि हमें बोलना नहीं आता, कि हमें सोचना नहीं आता " !!!!!!!!!!!
इस बार आपको तय करना है कि चुप रहेंगे या अपनी आवाज़ उठाएंगे....
कोई मसीहा नहीं आएगा आपकी मदद को...आपको खुद को आवाज़ उठानी होगी...एक साथ- मिलकर......
डॉ राजेश गर्ग.

By Sri Amit Kumar Agrawal
अरविंद केजरीवाल भारतीयों को इतना मूर्ख समझते है ये तो किसी भी भारतीय ने नही सोचा होगा | वो हर भारतीय की भावनाओं से खेल रहे हैं और कुछ नही!!!!!!!!!!
केजरीवाल ने अपनी बेशभूषा,पहनावा,मीडिया में चर्चा में बने रहना चाहे वो झूठे ही तथ्य क्यों ना हों सब कुछ बेहतरीन तरीके से प्लान कर रखा है | जो लोग यह सोचते है कि उन्होने आइ. आर. एस. की नौकरी को देश सेवा के लिए छोड़ा तो वो ग़लतफहमी में हैं,नौकरी छोड़ना तो उनकी दूरगामी राजनीतिक रणनीति का ही एक हिस्सा है ,क्योंकि नौकरी से इस्तीफ़ा तो इस से पहले कई आइ. ए. एस. अधिकारियों ने भी दिया है बस फ़र्क इतना है की केजरीवाल की तरह से वो अधिकारी इतना नीचे नही गिरे जितने की केजरीवाल गिर गये हैं | केजरीवाल हम भारतीयों की मानसिकता को जानते है जो " कौऊ नृिप हमहि का हानि" पर आधारित है मतलब कोई भी राजा हो हमें क्या दिक्कत है | और इसी मानसिकता को आधार बनाकर वो भारतीय जनता को लगातार अपने ज़ूठे तथ्यों से बहका रहे है | कभी गाँधी को ले आते है कभी भागर्सिंह को तो कभी राम को | वो एक तरह से इन सभी को मिलकर एक बाबर्चि की तरह राजनीतिक मिक्स-वेज बना रहे हैं |
जो लोग यह समझ रहे हैं की अरविंद केजरीवाल लोकपाल के लिए या भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं तो वो सत्य से अनजान ही हैं क्योंकि भ्रष्टाचार से लड़ाई को लेकर उन्हें कोई लेना देना नही है | वो सिर्फ़ प्रधानमंत्री की कुर्सी पर निगाहें लगाए हुए हैं क्योंकि उन्हे लग रहा है की जैसे दिल्ली में उन्‍होनें 28 सीट्स जीत ली वैसे ही पूरे भारत में उनकी लहर है लेकिन वो यह नही जानते की दिल्ली में स्थिति अलग है | एक तो दिल्ली का छेत्रफल कम हैं जिस से उन्हें प्रचार करने में आसानी हुई,दूसरे दिल्ली में संचार और यातायात व्यवस्था बेहतर है जिस से वो लोगों तक अपनी बात पहुचा पाए और तीसरे केंद्र सरकार के जो घोटाले सामने आए + सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा जो सरकार की किरकिरी की गयी उस से दिल्ली के लोग ज़्यादा जागरूक और परिचित थे जिस से उन्होने आम आदमी पार्टी को उन्होनें वोट दिया पर अब दिल्ली के लोग भी केजरीवाल के कारनामो से परिचित हो चुके है और अन्य राज्यों में अब भी अधिकतर जातिगत और धार्मिक समीकरण चलते हैं जिस से उनकी पार्टी को ज़्यादा सीट मिलना मुश्किल ही है|
जहाँ तक केजरीवाल के बारे में यह कहा जा रहा है की वो भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल लाने के लिए लड़ाई लड़ रहे है तो इसमें रत्ती भर भी सच्चाई नही है | जब आप उनसे प्रश्न करोगे कि लोकपाल भ्रष्टाचार को कैसे समाप्त करेगा तो उनका जबाब होगा की लोकपाल भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करेगा और उन्हे सज़ा देगा | जब आप कहोगे की भ्रष्टाचार से निबटने के लिए अन्य संस्थायें भारत में मौजूद है वो भ्रष्टाचार को समाप्त नही कर पा रही है तो लोकपाल कैसे ख़त्म कर पाएगा तो इस पर उनका यही जबाब होगा की वो सारी संस्थायें भी भ्रष्ट है | अब उनसे आप कहोगे की भ्रष्टाचार ख़त्म कैसे हो सकता है क्योंकि भ्रष्टाचारी तो हम सभी हैं और भ्रष्टाचार की जाँच करने वाला आता तो उसी समाज से है जिस समाज में भ्रष्टाचार होता है | अब अगर लोकपाल में बैठा हुआ व्यक्ति भी आएगा तो उसी समाज से या उसे आप किसी और ग्रह से लेकर आएँगे | और लोकपाल में बैठा हुआ व्यक्ति भ्रष्ट नही होगा इस बात की क्या गारंटी है तब क्या आप उसके उपर फिर कोई लोकपाल बिठाएगें और इस तरह से एक के उपर एक लोकपाल बिठाते जायेंगे हम ? |
भ्रष्टाचार तो चीन में भी होता है जहा भ्रष्टाचार करने वाले के पैसे से ही गोली ख़रीदकर उड़ा दिया जाता है | मौत की सज़ा होने पर भी चीन में भ्रष्टाचार बना हुआ है क्योंकि भ्रष्टाचार को ख़त्म किया ही नही जा सकता इसे कम किया जा सकता है |और रही बात पूजिपतियों की राजनीति में हस्तक्षेप की तो वो हस्तक्षेप तो राजनीति में हमेशा रहेगा | अगर किसी को विश्वास ना हो तो देखिए अमेरिका की तरफ जहाँ अधिकतर नीतियों का निर्धारण पूंजीपति ही करते हैं | केजरीवाल को अंबानी से इसलिए समस्या है क्योंकि उन्होने उनकी पार्टी को चंदा नही दिया | अंबानी किस-किस को चंदा दे | वो अपना बिजिनेस करे ये सभी को चंदा देता फिरे | चंदा भी दे,30 से 40 प्रतिशत कॉर्पोरेट टेक्स(कर) भी दे | आख़िर क्यों दे हर किसी को चंदा आप करते रहिए विरोध उसका वो तो भारत छोड़कर किसी और देश में सेट्ल हो जाएँगें | उनके पास तो पूंजी है चाहे जो देश उन्हें अपने यहाँ नागरिकता दे देगा | फिर आप क्या करोगे जब बेरोज़गारी और आर्थिक चुनौतियाँ सामने आएगी,धरना देकर इन समस्याओं को हाल करेंगें |
केजरीवाल लोगों की भावनाओं से ही खेल रहे हैं | कैसे???????????????
अब केजरीवाल के आम आदमी वाली बात पर आता हूँ | आम आदमी वाली उनकी बहुत सोची समझी और वैज्ञानिक रणनीति है | वो हमेशा आपको ऐसे कपड़ों में दिखेंगें जिसमें आम आदमी नज़र आयें जैसे की दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद ऑटो वालों से मिलने के लिए स्वीटर के रूप में उन्होने वही पहना जो आजकल स्कूल के बच्चों की ड्रेस है और ऊपर से मफ्लर भी लपेट लिया ताकि आम आदमी दिखें | केजरीवाल से जब आप कहोगे की आम आदमी तो रेल में धक्के खाते हुए जनरल डिब्बे में सफ़र करता है जबकि आप तो रेल के एसी डिब्बे में और प्लेन में सफ़र करते हो फिर आप कैसे आम आदमी हुए? | आपने इस सफ़र में लोगों के चंदे की राशि खर्च की इस यात्रा में क्या वो भ्रष्टाचार नही है क्योंकि इस राशि को आप जनरल में सफ़र करके भी तो बचा सकते थे तब इनके पास कोई जबाब नही होगा सिवाय इसके कि आप भ्रष्टाचारी हो |
अब में केजरीवाल के धार्मिक समीकरण पर आता हूँ | उन्होनें मुस्लिम समुदाय के वोटों को एकत्रित करने के लिए कहा कि" मेरा राम किसी की मस्जिद तोड़कर नही रह सकता" | यहा उन्होने मेरा राम और तेरा राम में भी अंतर कर दिया? | ना तो राम ने कहा था की मेरे लिए मंदिर बनाओ ना ही किसी अल्लाह ने कहा था की मेरे लिए मस्जिद बनाओ और तोड़कर बनाने का तो सवाल ही पैदा नही होता | राम और अल्लाह तो कभी भी बुरे नही होते | बुरे होते हैं हम लोग जो मंदिर-मस्जिद बनाने के लिए लड़ते हैं क्योकि धर्म कभी भी यह नही सिखाता की मेरे लिया जान दो या जान लो | राम ने तो खुद रामचरितमानस में कहा है कि "में तुमें ना दे सकूँ ऐसा मेरे पास कुछ भी नही है" | इसका सीधा सा मतलब है कि मैं लोगों के लिए सभी कुछ त्याग सकता हूँ मंदिर-मस्जिद की तो बात ही क्या है और इसका उन्होने परिचय भी दिया जब एक धोबी के कहने मात्र से अपनी पत्नी सीता को भी त्याग दिया था जबकि वो जानते थे की सीताजी पूरी तरह पवित्र और निर्दोष हैं | यही रामचरितमानस एक बार और कहती है कि "दूसरों को सुख देने वाले को क्या कभी कोई दुख हो सकता है?" जिसका सीधा सा अर्थ है की दूसरों को दुख दोगे तो दुख पाओगे और दूसरो को सुख दोगे या दूसरों के काम आओगे तो तुमें भी सुख मिलेगा | लेकिन अफ़सोस तो तब होता है जब केजरीवाल ने यह कहकर की "मेरा राम किसी की मस्जिद तोड़कर नही रह सकता" मुस्लिम समुदाय को बहकाने का प्रयास किया ताकि वो उसके बहकावे में आकर उसे वोट दें | अब ये तो हम हिंदू और मुस्लिम समुदाय को सोचना चाहिए कि हम कब तक धर्म की राजनीति में फसते रहेंगें | जब केजरीवाल भी धर्म की राजनीति पर उतर आए तो अन्य पार्टीयों से उनकी पार्टी का अंतर ही क्या रह गया |
अब में आता हूँ इस बात पर कि केजरीवाल भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार और लोकपाल-लोकपाल ही क्यो पूरे भारत में चिल्ला रहे हैं? | केजरीवाल जानते है कि यही एक़ मुद्दा है जिस पर भारतीयों को पागल बनाया जा सकता है और उन सभी को एकत्रित किया जा सकता है | इस से पहले उहोने दिल्ली के विधानसभा चुनाव के समय दिल्ली की जनता से बिजली-पानी से लेकर कई मुद्दों पर पूरे ना किए जाने वाले वादे कर दिए थे जबकि वो जानते थे की उन वादों को पूरा नही किया जा सकता | इसीलिए उन्होने लोकपाल के बिल को पास करवाने की जल्दबाज़ी दिखलाई(जबकि इस समय 4-5 और भी महत्वपूर्ण बिल उनके सामने पड़े हुए थे जो लोकपाल से भी ज़्यादा ज़रूरी थे उन्हे पास करवाने में उन्होने कोई रूचि नही दिखायी) ताकि मौका देखकर भाग सके और जनता की नज़रों में हीरो बन सके जबकि वास्तविकता यह थी कि उन्हें लोकसभा चुनाव दिख रहे थे |और रही बात महिलाओं की सुरक्षा की तो वो खुद कितने बलात्कार रोक पाए और कितनी सुरक्षा महिलाओं को दे पाए |ये वही केजरीवाल हैं जिन्होने दिल्ली विधानसभा चुनावों में लगभग हर ऑटो पर ये ये दुष्प्रचार करवाना शुरू कर दिया था की "अगर महिलाओं को सुरक्षित रहना है और बलात्कार का शिकार नही होना है तो शीला दीक्षित को हराए" क्या दिल्ली की मुख्यमंत्री किसी का बलात्कार करने जाती थी?|
केजरीवाल बात करते हैं लोकतंत्र की लेकिन खुद अपनी पार्टी में लोकतंत्र नही रखते | वो खुद तो मीडिया में बने रहते है लेकिन अपने सदस्यों को मीडिया में नही आने देते क्योंकि वो जानते हैं कि कहीं वो सदस्य भी लोकप्रिय होकर पार्टी में उन्हे टक्कर ना देने लगे जबकि लोकतंत्र का मतलब होता है हर व्यक्ति को समान महत्व देना और अपने विचार रखने का अवसर देना | इस तरह से तो यही मालूम होता है की वो पार्टी में तानाशाह की भूमिका निभाते हैं और किसी से कोई सलाह-मशविरा नहीं करते | क्या अपनी पार्टी में वो ही एक ईमानदार प्रत्याशी हैं प्रधानमंत्री के पद के लिए?
आप अगर केजरीवाल जी से या उनके समर्थकों या उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं से प्रश्न करोगे कि भारत के विकास के लिए आपके पास कोई योजना या कार्यक्रम है क्या तो वो उल्टा आपसे ही तोते की तरह रटा हुआ सवाल पूछेंगे कि क्या आप नही चाहते की भ्रष्टाचार ख़त्म हो | और जब आप कहोगे की हाँ हम चाहते है कि भ्रष्टाचार ख़त्म हो तब वो कहेंगें की फिर आप कोई सवाल मत पूछिए क्योंकि क्या यह काफ़ी नही है कि हमने भ्रष्टाचार के मुद्दे को केंद्र में ला दिया और इस प्रकार वो आपकी बोलती बंद कर देंगें |
अगर आप केजरीवाल से कुछ निम्न सवाल करोगे तो आपको कोई जबाब नही मिलेगा सिवाय इसके के आप भ्रष्टाचार के समर्थक हो.......
(1) भारत की गिरती हुई आर्थिक व्रद्दि दर और विकास दर को कैसे बढ़ाएँगें?
(2)रोज़गार किस प्रकार देंगें ?
(3)विज्ञान,रक्षा,शिक्षा आदि के छेत्रों में भारत की सोचनीय स्थिति को आप कैसे सुधारेंगें?
(4)भारत को पड़ोसी देशो जैसे चीन,पाकिस्तान,बांग्लादेश आदि के द्वारा जो सामरिक चुनौती दी जा रही है उसके बारे में आपकी क्या योजना है?
(5)पाकिस्तान के द्वारा जो आतंकवाद को बढ़ाबा दिया जा रहा है उसको कैसे समाप्त करेंगें?
(6)बांग्लादेश के जो अवैध 3 करोड़ लोग (यू.एन. के मुतविक 3 करोड़ वास्तविक संख्या इस से ज़्यादा ही हो सकती है कम नही ) भारत में रह रहे हैं उन्हे बापिस कैसे भेजोगे?
(7)अमेरिका के द्वारा हमेशा भारत के साथ यथार्थवादी नीति का पालन किया जाता है उस पर आपकी क्या राय है?
(8)भारत को विश्व शक्ति कैसे बनाएँगें और इसकी क्या योजना है?
इन सवालों का वो कोई जबाब आपको नही देंगें बस उल्टे आप पर दोस लगाने लगेंगें की आप नही चाहते की भ्रष्टाचार ख़त्म हो |
अगर फ़ेसबुक पर ही देखा जाए तो उनके पेज को लाखों लोगों ने लाइक कर रखा है | इनमें से अधिकांश लोग वो है जो आम आदमी पार्टी के बनते समय उनसे जुड़े थे | वो इस आशा से जुड़े थे की भाजपा और कॉंग्रेस से उनका मोहभंग हो गया था और उन्हे आशा थी कि केजरीवाल की पार्टी कुछ काम करके दिखाएगी | लेकिन जब उन्होने देखा की ये कहते है करते नही और फिर दिल्ली में जो किया उस पर भी निगाह डालते है तब उन्हे केजरीवाल की हक़ीकत मालूम पड़ती है | अब वही लोग फ़ेसबुक पर केजरीवाल के पोस्टों पर उनकी पोल अपने कॉमेंट के मध्यम से खोलते है और तब आम आदमी पार्टी वालों को ये पोस्ट डिलीट करके अपनी पोस्ट को एडिट करके फिर से डाला जाता है ताकि जो बचे खुचे समर्थक है कही वो ना उनसे अलग हो जाए सच्चाई को देखकर |
अब कुछ लोग कहेंगें की केजरीवाल में बुराइयाँ ही बुराइयाँ है या कुछ अच्छाइयाँ भी है | तो मेरा जबाब है कि नही उनका योगदान भी है | एक तो उन्होने सोते हुए भारतीयों को जगा दिया और राजनेताओं को काम करने के लिए प्रेरित किया,दूसरे उन्होने हर पार्टी को अपनी रणनीति पर विचार करने के लिए प्रेरित किया और सबसे बढ़कर लोगों की जो दिलचस्पी राजनीति में से ख़त्म हो गयी थी उसको जगाया लेकिन इसका यह मतलब नही है कि केजरीवाल को प्रधानमंत्री बना दिया जाए | यह तो वही बात हुई की एक खजाने के चौकीदार ने खजाने के चोर को पकड़ लिया तब उस चौकीदार ने कहा की मुझे ही खजाने का मलिक बना दो तो में एक भी चोरी नही होने दूँगा | ऐसी ही बात केजरीवाल कह रहे हैं | उनका कहना है कि मुझे प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो एक भी भ्रष्टाचार नही होने दूँगा | एक चौकीदार को प्रधानमंत्री तो नही बनाया जा सकता | केजरीवाल को भारत की समस्याओं की कोई जानकारी नही है और न ही कोई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीति का कोई अनुभव | क्या ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है जो केवल धरना,प्रदर्शन और हर समय झूठ बोलने में ही यकीन रखता हो?
मुझे तो उन लोगों पर तरस आता है जो अपना काम-धंधा छोड़कर केजरीवाल के लिए इस आशा से काम कर रहे हैं कि ये भारत के विकास के लिए कोई काम करेगा | लेकिन जब उन लोगों को केजरीवाल की इस हक़ीकत के बारे में पता चलेगा कि वो स्वार्थवश उनका उपयोग कर रहा है और भ्रष्टाचार से उसका दूर दूर तक कोई लेना देना नही है तब उनके दिल को कितनी ठेस पहुचेगी ये केजरीवाल ने सोचा भी नही होगा | केजरीवाल शायद यह भूल गये है की हम भारतीय सब कुछ सह सकते है पर भावनाओं के साथ खिलबाड़ मंजूर नही कर सकते और तब जो भगतसिंघ पैदा होगा वो ज़रूरी नही हिंदू ,सिक्ख हो,मुस्लिम धर्म में भी भगतसिंघ जन्म ले सकता है और फिर जो हाल वो केजरीवाल का करेगा उस से केजरीवाल परिचित नही हैं |
(जिस भी व्यक्ति को यह लगता है की मैने कुछ ग़लत लिखा है तो वो कमेंट के माध्यम से अपने विचार और प्रश्न रख सकता है | में उसके प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास अवश्य करूँगा )
धन्यबाद
अमित कुमार अग्रवाल



Why popularity graph of Mr. Arvind Kejriwal has sharply come down. People who used to love him and who had great expectation from Arvind Kejriwal and his Aam Admi party AAP are now annoyed with Mr. Kejriwal and hate AK and AAP.

Why?

Kejriwal promised to fight against corruption and corrupt leaders. But he after becoming Chief Minister of Delhi did nothing to punish corrupt leaders named by him before he became CM of Delhi.

He said that he is representative of common men and he will act as per wishes of common men. He took the opinion of common men of Delhi (it was also a dramatic act) to form the government in Delhi. But he did not seek the opinion of Common men when he decided to resign from the post of CM of Delhi.

When He became CM of Delhi He could not fulfill the promises made by him before election. He blamed Congress Party on all issues including high water bill and higher electricity charges but did nothing to modify the rate after becoming CM. He did nothing positive to change corrupt culture of Delhi Administrative and political system.

He published a list of corrupt leaders but did nothing to institute real inquiry against corrupt leaders and did nothing to punish those who had proven or undoubtedly clear charges of involvement in corrupt deeds.

He promised that he will not import or export candidate for any constituency, he will not impose any person as a candidate for any constituency as other political parties are usually doing. He promised that local people will choose their candidate for their constituency. But he did opposite to what he had said during movement against misrule of Congress Party in Delhi. He and his four or five followers decided name of person for 426 seats sitting in a room at Delhi.

He said that his target will be first to defeat all candidates who were involved in corruption and who were facing criminal charges. But he did not do so.

  • Against Sonia Gandhi there is no AAP candidate
  • Against the hero of 2G scandal no AAP candidate
  • Against the son of our great finance minister P Chidambaram - no AAP candidate
  • Against Mr Salman Khursid who ate d money of poor handicapped ppl - no AAP candidate
  • Against Adarsh scam legend Ashok Chavan - no AAP candidate
  • Against Owais Siddique who is popular for his hatred speech against Hindus - no AAP candidate
  • And so on
  • Hats off Mr Kejriwal.
  • Now one should assess and ascertain carefully whether  Mr Kejriwal and his AAP group is fighting against corruption and anti national elements or not.


He resigned from the post of Delhi and started dreaming for the post of Prime Minister of India. Without making any preparation or any scrutiny,  he allowed all Tom Dick and Harry to become member of Aam Admi Party .He neither checked the ability , honesty and capacity of the person he picked up for MP candidate.

He did not make proper verification of even persons chosen for candidate for election and only focused on who contributed and donated money for the party.

It is due to total chaos in his party that many persons who were given Party ticket for fighting election against Congress Party or BJP leaders returned the ticket to AAP supremo only because of the fact they were not taken into confidence before taking any decision.

Kejriwal could not keep his 28 MLA united and devoted to party and to common cause of fight against corruption.His own men and his supporters became his opponents in short span of two to three months only. He by his wisdom and experience could not prevail upon MLAs of other parties in Delhi State Assembly. He only accuses Congress party and BJP for all his faults and never tries to introspect why he and his party are turning their supporters into their opponents. He thinks that merely by blaming Congress party and BJP for all miseries of Indians ,he will become Hero no. 1 .Unfortunately he has been proved as Zero No. 1 as a result of their own faulty actions and faulty decisions.

When he is unable to manage his own men, his own MLAs in Delhi, his own candidates for Parliamentary election, how he can he manage successfully a big country like India? His own MLA , his own supporters left him .

He is his party was created for fighting against corruption and for making fully devoted efforts for the welfare of common men but unfortunately he and his party has now fully discarded their fight against corruption and now fully targeted against Mr. Narendra Modi and BJP.

God knows only how he assessed and declared Mr. Modi as his main target in 2014 election.He does not believe what opinion poll says. He believes in what he says only and in what his few supporters in his room speak to him.His party with support of hardly five percent voters is trying to challenge a person who is liked by as much as 50% of voters. Mr. Kejriwal tries to challenge the liking of voters who prefer Mr. Modi and impose full faith on those who willingly or unwillingly supports or appear to support AAP and AK. 

He and his party are now appeasing Muslim votes in the same way as other Non-BJP parties are doing for decades. He and his party ignored corrupt and criminal leaders and have not started blaming Modi and BJP and that too on only flimsy grounds as traditional Non- BJP parties have been doing since long.

Kejriwal filed his nomination for Parliamentary election from Varanasi and decided to fight against Mr. Narendra Modi as if he is the most corrupt leader of the country. He desired to become Hero by fighting against such a leader who is liked by majority of Indians, at least by 50% of population. He treats himself as ideally hundred percent perfect but not ready to accept a person who is likely by as many as 50 percent voters. Public perception that AK and AAP are crusaders against corruption is now changed and now it is evident that their fight is centered against Mr. Modi and BJP only.

Mr. Arvind Kejriwal after lapse of two months from the day he resigned from CM’s post has realized that he committed a blunder by resigning from CM’s post. Voters of Delhi who voted him to power felt cheated and defrauded by Kejriwal and his party AAP.

After his resignation from Delhi CM's post, a clear message has gone all over the country that persons like Kejriwal cannot be relied upon and hence it is  they who will definitely repose their faith on leaders of old parties and choose their leaders from old parties only , not from AAP.

Two to Three months ago , there was a clear wave in favour of Kejriwal and his party AAP . But now the direction of wave changed and now Mr. Kejriwal will have to reform him , his party and his strategy to win back the hearts of common men.  


Had Kejriwal and his party worked for six months in Delhi and had they performed without inviting controversy from members of opposing parties , they could win at least 100 seats in Parliament . But now they will win hardly five seats. Even after they resigned from Delhi Assembly, there was mad rush to get membership of AAP and to get ticket of AAP but as time passed on the love for AAP vanished. 

Obviously there is deficiency and shortcomings in the style of management and in the approach of Mr. Kejriwal and his close associates who are running the party AAP.

People of India who whole-heartedly participated in movement against corruption launched by Team Anna and Team Kejriwal are now disheartened to watch the downfall of AAP before it could reach the target.



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