Tuesday, December 26, 2017

What To Eat And What Not

*क्या खायें, क्या न खायें*
भोजन के बारे में सभी बातें बताना यहाँ सम्भव नहीं है। यदि आपने पिछली कड़ियों को ध्यानपूर्वक पढ़ा है, तो आप समझ गये होंगे कि आपको क्या खाना-पीना चाहिए और क्या नहीं खाना-पीना चाहिए। यहाँ हम एक तालिका के रूप में यह बता रहे हैं है कि कौन सी वस्तुएँ हमें लेनी चाहिए, कौन सी कम लेनी चाहिए और कौन सी बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए।
*पूर्णतः त्यागने योग्य वस्तुएँ-* चाय, काॅफी, कोल्ड ड्रिंक, चीनी, समुद्री नमक, माँस, मछली, अंडा, शराब, सिगरेट, तम्बाकू, पान मसाला, डिब्बाबन्द खाद्य, बिस्कुट आदि।

*न्यूनतम मात्रा में लेने योग्य वस्तुएँ-* सेंधा नमक, गुड़, मिर्च-मसाले, तेल, खटाई, मिठाई, पकवान, अचार, तली-भुनी चीजें।
*पर्याप्त मात्रा में लेने योग्य वस्तुएँ-* सलाद, अंकुरित अन्न, हरी सब्जी, फल, दही, मठा।
कई बार हमें लोक व्यवहार के कारण अथवा मजबूरी में ऐसी वस्तुएँ खानी पड़ती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। ऐसी स्थिति आने पर उनको कम मात्रा में ही खाया जाय और अच्छा हो कि अगले दिन एक बार का भोजन छोड़ दिया जाय। यदि अधिक कष्ट हो तो पूरे दिन का उपवास कर लेना उत्तम रहेगा। भोजन के सम्बन्ध में एक सुनहरा नियम यह है कि कड़ी भूख लगने पर ही खाना चाहिए। यों ही बिना भूख के खाना या बीच-बीच में अनावश्यक वस्तुएँ खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है।
*आदर्श आहार क्रम*
यहाँ एक सामान्य स्वस्थ वयस्क व्यक्ति के लिए आदर्श भोजन तालिका दी गयी है। आवश्यकता एवं वस्तुओं की उपलब्धता के अनुसार इसमें परिवर्तन भी किया जा सकता है।
*नाश्ता (प्रातः 7-8 बजे)*
एक गिलास दूध के साथ दो सौ ग्राम फल या 100 ग्राम अंकुरित अन्न या काॅर्नफ्लेक या दो ब्रेड-बटर या दो ब्रेड-जैम। दूध के स्थान पर मौसम और अपनी रुचि के अनुसार मठा या दही या लस्सी भी ली जा सकती है। यदि शरीर में बहुत कमजोरी हो तो रात को भिगोये हुए कुछ दाने मुनक्का, किशमिश और मूँगफली का सेवन प्रातः जलपान के साथ किया जा सकता है।
*दोपहर का भोजन (दोपहर 12-1 बजे)*
रोटी, चावल, हरी सब्जी, दाल, सलाद, दही। इन वस्तुओं की मात्रा अपनी पाचन शक्ति और भूख के अनुसार रखें। कोई वस्तु उपलब्ध न होने पर उसकी जगह अन्य वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। हरी सब्जी मौसम के अनुसार हो। आलू, अरबी और फूलगोभी की गिनती हरी सब्जियों में नहीं होती। इनको कम मात्रा में लेना चाहिए।
*रसाहार (तीसरे पहर 3-4 बजे)*
गाजर या खीरा या तरबूज या अनन्नास या किसी मौसमी फल का 1 गिलास जूस। आम और केले की गिनती ऐसे फलों में नहीं की जाती।
*सायंकाल का भोजन (सायं 7-8 बजे)*
रोटी, चावल, हरी सब्जी, दाल, सलाद। गर्मियों में दही सायंकाल भी लिया जा सकता है।
सब्जियों में मिर्च-मसालों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। केवल थोड़ा सा घी डालकर जरा से जीरे और हींग से छोंक लगाना चाहिए और न्यूनतम मात्रा में नमक, हल्दी और धनिया डालना चाहिए। इससे आपको सब्जी के प्राकृतिक स्वाद का अनुभव होगा, जो प्रायः मसालों के स्वाद में दब जाता है। सब्जी का स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें कुछ बूँदें नीबू निचोड़ा जा सकता है।
दो भोजनों के बीच में कोई अनावश्यक वस्तु न लें, क्योंकि इनसे पेट पर बहुत बोझ पड़ता है और पाचन खराब होता है। यदि किसी समय भूख न हो तो केवल सलाद या फल खाकर रहा जा सकता है या उस समय भोजन पूरी तरह छोड़ा जा सकता है।
भोजन की चर्चा कर लेने के बाद अगली कड़ी में हम स्वास्थ्य के लिए दूसरे सबसे अधिक महत्वपूर्ण वस्तु व्यायाम की चर्चा करेंगे।
-- *विजय कुमार सिंघल*

*सुखमय जीवन
*पहला सुख निरोगी काया (ग)*
*स्वास्थ्य के लिए भोजन*
भोजन का स्वास्थ्य से बहुत गहरा सम्बंध है। भोजन करना एक अनिवार्य कार्य है। यह प्रकृति माता की कृपा है कि इस अनिवार्य कार्य में भी उसने स्वाद का समावेश कर दिया है, जिससे भोजन करना हमें बोझ नहीं लगता, बल्कि आनन्ददायक अनुभव होता है। लेकिन अधिकांश लोग प्रकृति की इस कृपा का अनुचित उपयोग करते हैं और स्वाद के वशीभूत होकर ऐसी वस्तुएँ खाते-पीते हैं, जो शरीर के लिए लेशमात्र भी आवश्यक नहीं हैं, बल्कि हानिकारक ही सिद्ध होती हैं। भोजन का उद्देश्य शरीर को क्रियाशील बनाए रखना होना चाहिए। परन्तु अधिकांश लोग जीने के लिए नहीं खाते, बल्कि खाने के लिए ही जीते हैं। ऐसी प्रवृत्ति वाले लोग ही प्रायः बीमार रहते हैं।
हमारे अस्वस्थ रहने का सबसे बड़ा कारण गलत खानपान होता है। यदि हम अपने भोजन को स्वास्थ्य की दृष्टि से संतुलित करें और हानिकारक वस्तुओं का सेवन न करें, तो बीमार होने का कोई कारण नहीं रहेगा। हानिकारक वस्तुओं का सेवन करने पर ही रोग उत्पन्न होते हैं और उनका सेवन बन्द कर देने पर रोगों से छुटकारा पाना सरल हो जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान में तो खान-पान का सबसे अधिक महत्व है। इसमें किसी दवा आदि का सेवन नहीं किया जाता, बल्कि भोजन को ही दवा के रूप में ग्रहण किया जाता है और इतने से ही व्यक्ति स्वास्थ्य के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है।
पिछली कड़ी में स्वास्थ्य की कुंजी दी गई है- *हित भुक्, ऋत भुक्, मित भुक्* अर्थात् ”हितकारी भोजन करना, ऋतु अनुकूल तथा न्यायपूर्वक प्राप्त किया हुआ भोजन करना और अल्प मात्रा में भोजन करना“ यह स्वास्थ्य की कुंजी है। ये तीनों ही शर्तें बराबर महत्व की हैं। यदि हम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं का सेवन करेंगे, तो अवश्य ही हानि उठायेंगे। इसलिए भोजन में स्वास्थ्य के लिए हितकारी वस्तुएँ ही होनी चाहिए। अब यदि वस्तु हितकारी है, परन्तु ऋतु के अनुकूल नहीं है, तो भी हानिकारक होगी। इसलिए भोजन ऋतु के अनुकूल होना चाहिए। हितकारी और ऋतु अनुकूल भोजन भी यदि अधिक मात्रा में किया जाय, तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है, क्योंकि उसके पाचन में शरीर असमर्थ और कमजोर हो जाता है। इसलिए हितकारी और ऋतु अनुकूल वस्तुएँ भी अल्प मात्रा में ही सेवन करना चाहिए, तभी हम स्वस्थ रह सकेंगे।
कई विद्वानों ने सही कहा है कि *हम जो खाते हैं, उसके एक तिहाई से हमारा पेट भरता है और दो तिहाई से डाक्टरों का।* इसका तात्पर्य यही है कि हमारे जीवन के लिए अल्प मात्रा में भोजन ही पर्याप्त है और उससे अधिक खाने पर विकार ही उत्पन्न होते हैं। उनके इलाज में धन व्यय होता है, जिससे डाक्टरों को अच्छी आमदनी होती है। इसलिए यह बात गाँठ बाँध लीजिए कि कोई वस्तु चाहे कितनी भी स्वादिष्ट क्यों न हो और भले ही मुफ्त क्यों न हो, उतनी ही मात्रा में खानी चाहिए, जितनी हम सरलता से पचा सकें। अधिक खाना ही बीमारियों का सबसे बड़ा कारण है। किसी ने सही कहा है कि खाने के अभाव से उतने लोग नहीं मरते, जितने ज्यादा खाने से मरते हैं।
भोजन के सम्बंध में अंतिम और अति महत्वपूर्ण बात यह है कि हम जो भी खा रहे हों उसे खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए। अधिक चबाने से उसमें कई ऐसे रस मिल जाते हैं, जो पाचन में बहुत सहायक होते हैं। कुछ विद्वानों ने तो यहाँ तक कहा है कि प्रकृति ने हमारे मुँह में बत्तीस दाँत इसलिए दिये हैं कि हम प्रत्येक कौर को 32 बार चबायें। अच्छी तरह चबाये बिना भोजन निगल जाने पर उसे पचाने का कार्य आँतों को करना पड़ता है, जिससे हमारी पाचन शक्ति धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है और मलनिष्कासक अंग भी ठीक प्रकार कार्य नहीं करते। इससे कब्ज पैदा होता है और उससे तमाम बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। इसलिए दाँतों का कार्य आँतों से लेना गलत है।
कई लोग दिन में कई बार कुछ-न-कुछ खाते ही रहते हैं। यह भी बीमारियों को निमंत्रण देने के समान है। सामान्यतया हमें दिन में केवल दो बार भोजन करना चाहिए। सामान्यतया मैं नाश्ता करने के पक्ष में नहीं हूँ। मेरा विचार यह है कि दोपहर भोजन से पूर्व जहाँ तक सम्भव हो, कोई ठोस वस्तु नहीं लेनी चाहिए। यदि नाश्ता करना आवश्यक ही हो, तो हल्का और सुपाच्य तरल आहार लेना चाहिए, जैसे दूध, मठा, दलिया, अंकुरित अन्न आदि। कहावत है कि ‘एक बार खाये योगी, दो बार खाये भोगी और तीन बार खाये रोगी’। इसका तात्पर्य यही है कि दो बार से अधिक भोजन करने वाला प्रायः रोगी बना रहता है। इसलिए जहाँ तक सम्भव हो, हमें केवल दो बार ही पूर्ण आहार करना चाहिए। दो भोजनों के बीच में कम से कम 6 घंटों का अन्तर अवश्य होना चाहिए। इस सम्बंध में सबसे सुनहरा नियम यह है कि जब तक कड़ी भूख न लगे, तब तक कुछ भी मत खाइये। बिना भूख के खाना या कम भूख में खाना मुसीबत बुलाने के समान है।
भोजन के साथ-साथ जल की चर्चा करना अति आवश्यक है। प्रायः लोग पानी को पीने लायक वस्तु नहीं मानते और बहुत प्यास लगने पर ही पानी पीते हैं। इसके स्थान पर वे तरह-तरह की तरल वस्तुएँ चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक आदि पीते रहते हैं। ऐसे लोग बहुत गलतियाँ कर रहे हैं, जिसका बुरा फल उन्हें आगे चलकर चखना पड़ता है। इसलिए हमें हर मौसम में हर जगह नियमित अन्तराल पर साधारण ठंडा जल पीने का ध्यान रखना चाहिए। हमें कम से कम तीन-चार लीटर पानी प्रतिदिन अवश्य पीना चाहिए। पीने के लिए जल हमेशा साधारण ठंडा होना चाहिए। अति शीतल और अति गर्म वस्तुएँ खाना या पीना पाचन शक्ति के लिए हानिकारक होता है।
यहाँ यह जानना आवश्यक है कि भोजन के तुरन्त पहले और तुरन्त बाद जल पीना हानिकारक होता है। खाने के ठीक पहले पानी पीने से भूख कम होती है और ठीक बाद पीने से पाचन शक्ति खराब होती है और गैस बनती है। इसके बजाय भोजन के एक घंटे पहले और डेढ़ घंटे बाद इच्छानुसार जल पीना चाहिए। खाने के बीच में प्यास लगने पर एक-दो घूँट पानी पिया जा सकता है। वैसे पानी पीने के सम्बंध में सबसे सुनहरा नियम यह है कि जब भी प्यास लगे पानी अवश्य पीना चाहिए।
भोजन में क्या लें, क्या न लें, इसके बारे में बहुत सी बातें कही जा सकती हैं। इनकी चर्चा अगली कड़ी में की जाएगी।
-- *विजय कुमार सिंघल*

शालीन वृद्धावस्था* के भाग ७ क का सार
मूल श्री जगमोहन गौतम द्वारा अंग्रेजी में लिखित एवम इसका हिंदी अनुवाद श्री विजय कुमार सिंघल द्वारा।
(Hindi Translation of Gist of "Ageing Gracefully" part 7 A) यह पाया गया है कि अधिकांश लोग खाने के इन महत्वपूर्ण पक्षों के बारे में जो इन भागों में दिये गये थे के दिशानिर्देशों का पालन नहीं करते हैं, यद्यपि इनका पालन हमारे पूर्वजों द्वारा कड़ाई से किया जाता था और ये युगों से परीक्षित भी हैं।
आप अपने शरीर को व्रद्ध होने से रोक नहीं सकते, लेकिन एक प्रकार से आप इसकी गति को कम कर सकते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए पहला चरण है- *क्या खायें। जब हमारी उम्र बढ़ती है, तो हमारा शरीर केवल देखने में ही नहीं, अपितु कार्य करने में भी बदलता है। कुछ खाद्य वस्तुयें विशेष रूप से वरिष्ठों के लिए सहायक हैं। जो स्वास्थ्यप्रद भोजन करना चाहते हैं, उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण नियम यह है- कैलोरी के बजाय पोषक तत्वों की ओर देखो और साथ में इस मुख्य नियम को हमेशा याद रखना चाहिए- *स्थानीय तौर पर उगाये गये मौसमी खाद्य ही खायें* मुख्यरूप से फल, सब्ज़ियाँ, तेल आदि जो सभी जानते हैं, क्योंकि यह नियम अनेक पीढ़ियों से हमारे परिवार में व्यवहार में लाया जाता है।
*अधिक उम्र वाले लोगों के लिए स्वस्थ और संतुलित भोजन* को निम्न श्रेणियों में रखा जा सकता है-
1. *ऊर्जा दायक भोजन (Energy giving food):* अन्न (जिनमें गेहूँ और चावल के अलावा ज्वार, बाजरा, मक्का इत्यादि शामिल हैं), घी (देशी गाय के घी को प्राथमिकता), तेल (स्थानीय तौर पर उगाये गये कच्ची घानी के तेल, पर वनस्पति तेल कभी नहीं), मक्खन (देशी), गुड़, शक्कर (सफेद चीनी का प्रयोग न करें), आलू, मीठा आलू तथा रतालू।
2. *शरीर निर्माणकारी भोजन (Body building food):* मूँगफली, सूखे मेवा (3 से 5 प्रत्येक की संख्या में रात को भिगोये गये बादाम, मुनक्का, अखरोट, अंजीर, खजूर/छुआरा), दालें (बिना पोलिश की छिलके वाली), दूध (गाय का), दही (दही अत्यधिक आवश्यक रोज लेकिन छाछ/मट्ठा/तक्र को प्राथमिकता) आदि जिनमें प्रोटीन होती है।
3. *रक्षाकारी भोजन (Protecting food):* दूध, दही, पनीर, फल, सब्ज़ियाँ।
*वरिष्ठों के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण भोजन* है जल (क्या यह भोजन है? *जी हां*) यह सर्वाधिक वृद्धत्वरोधक क्षमता वाला तत्व है। मूत्र बनने की चिन्ता किये बिना इसको भाग ५ में बताये गये फ़ार्मूले के अनुसार उचित मात्रा में प्रतिदिन अवश्य लेना चाहिए और रात्रि में सोते समय केवल आधा गिलास पीना चाहिए।
*"शरीर को जानिये एवं भोजन को पहचानिये"* यह सन्दर्भित वाक्य प्रसिद्ध चिकित्सक वागभट्ट द्वारा लगभग तीन हज़ार वर्ष पहले कहा गया था, जब वे यह बता रहे थे कि क्या खाना चाहिए। शरीर का भोजन से सीधा सह-सम्बंध है। कोई भी व्यक्ति सरलता से यह निश्चित कर सकता है कि उसके शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कौन सा खाद्य सहायक है। मूल बात है कि इस दिशा मेंअपने इस नैसर्गिक गुण को हमेशा सक्रिय रखा जाये।

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