Wednesday, January 31, 2018

पौरुष ग्रन्थि (Prostate Glands)

Vijay Singhal: *पौरुष ग्रन्थि (Prostate Glands) एवं इसकी स्वास्थ्य प्रोन्नति यथा - इसके बारे में सूचना, विश्वास एवं कार्य योजना*

यहाँ मैं आपसे पौरुष (ग्रन्थि) के बारे में बात करूँगा। यह विषय भ्रमित करने वाला है। क्या पौरुष केवल पुरुषों में होता है? हाँ, केवल पुरुषों में पौरुष ग्रन्थि होती है और केवल ४० वर्ष से अधिक उम्र वालों में, लेकिन इसके स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता सभी के लिए आवश्यक है।

पौरुष ग्रन्थि पर चर्चा करने से पूर्व यह उचित रहेगा यदि हम पहले स्वास्थ्य प्रोन्नति के बारे में विचार कर लें। स्वास्थ्य प्रोन्नति के लिए तीन वस्तुएँ अवश्य होनी चाहिए-
1. सूचना
2. विश्वास
3. कार्य योजना

मैं पौरुष ग्रंथि के स्वास्थ्य की पृष्ठभूमि से प्रारम्भ करूँगा।

प्रत्येक व्यक्ति के दो गुर्दे (Kidneys) होते हैं। गुर्दो का कार्य कचरा निकालना होता है। यह आपके शरीर की लौमा (LAWMA) अर्थात् कचरा प्रबंधन कम्पनी है। प्रतिदिन आपका खून किडनी में होकर कई बार गुज़रता है और छनता है। जब खून को छाना जाता है, तो उसमें से पेशाब बनता है जो मूत्राशय (urinary bladder) में अस्थायी रूप से एकत्र किया जाता है। यदि मूत्राशय न होता, तो सड़क पर चलते समय मनुष्य का मूत्र गिर रहा होता।

अब अपने घर में प्लम्बर के काम के बारे में सोचिए। मूत्राशय को आप ऊपर लगी पानी की टंकी मानिए। इस टंकी से कोई अच्छा प्लम्बर पाइप निकालकर घर के रसोई सहित दूसरे भागों तक लगाएगा। बुद्धिमान ईश्वर ने हमारे मूत्राशय से पाइपों को लिंग की नोंक तक पहुँचाया है। इस पाइप को मूत्रनली (urethra) कहा जाता है। मूत्राशय के ठीक नीचे और मूत्रनली को घेरे हुए एक छोटा सा अंग है जिसे पौरुष ग्रंथि (Prostate gland) कहा जाता है।

पौरुष ग्रंथि का आकार एक अखरोट के बराबर और वजन लगभग २० ग्राम होता है। इसका कार्य है वीर्य का द्रव (seminal fluid) बनाना, जो वीर्य गुटिका (seminal vehicle) में एकत्र किया जाता है। यौन संभोग के समय यह द्रव मूत्रनली से उतरता है और अंडकोषों में बनने वाले शुक्राणुओं से मिलकर वीर्य बनाता है। इस प्रकार वीर्य तकनीकी तौर पर शुक्राणु नहीं होता। यह शुक्राणुओं और वीर्य के द्रव का मिश्रण होता है। वीर्य का द्रव शुक्राणुओं को चिकना कर देता है।

४० वर्ष की उम्र के बाद, शायद हार्मोनों के कारण, पौरुष ग्रंथि बढ़ना शुरू होती है। २० ग्राम से बढ़कर यह १०० ग्राम तक हो सकती है। जब यह बढ़ती है, तो मूत्रनली को संकुचित करती है और इसका प्रभाव पुरुष मूत्र त्याग करते समय अनुभव करता है।आपने अनुभव किया होगा कि एक 10-12 वर्ष के बच्चे के मूत्र की धार का वेग अधिक शक्तिशाली होता है अपेक्षया 50 वर्ष के वयस्क के। इस के निम्न लक्षण हो सकते हैं।

*अंतिम टपकाव (TERMINAL DRIPPLING)*

पुरुष का ध्यान इस बात पर जाने लगता है कि मूत्र त्याग और बटन बंद करने के बाद भी मूत्र कहीं उसकी पैंट पर तो नहीं गिर गया। यही कारण है कि अधिक उम्र के लोग मूत्र विसर्जन के बाद भी हिलाते हैं। नौजवान केवल सामान्य विधि से अंतिम बूँद तक मूत्र त्याग कर देता है और चला जाता है।

*संकोच (HESISTANCY)*

इस हालत में आपको मूत्र निकलना शुरू होने के लिए अधिक इंतज़ार करना पड़ता है। दो वाल्व हैं जो मूत्र विसर्जन के लिए अवश्य खुलने चाहिए- आंतरिक और बाह्य। दोनों खुले रहते हैं, लेकिन मूत्रनली में बाधा के कारण आपको प्रवाह शुरू होने के लिए अधिक देर प्रतीक्षा करनी पडती है।

*पूरी तरह खाली न होना*

मूत्र त्याग के तुरंत बाद आपको यह अनुभव होता है कि अभी भी कुछ मूत्र निकलने से बच गया है।

जब ये सभी लक्षण होते हैं, तो मूत्राशय को मूत्रनली में बाधा के कारण अधिक कड़ा कार्य करना पड़ता है। इससे मूत्र त्याग हेतु जाने की संख्या बढ़ जाती है। तत्काल जाने की आवश्यकता अनुभव होती है। कई बार आपको मूत्रालय की ओर दौड़ भी लगानी पडती है। रात में भी मूत्रत्याग के लिए जाना पड़ता है। आप दो से अधिक बार भी मूत्र त्याग के लिए रात में जाते हैं।

स्वाभाविक रूप से इस समस्या पर पुरुष किसी से बात नहीं करना चाहता। इससे समस्या और अधिक गम्भीर हो जाती है।

रुका हुआ मूत्र संक्रमित हो जाता है और मूत्र त्याग करते समय जलन हो सकती है। रुके हुए मूत्र से क्रिस्टल बन जाते हैं। क्रिस्टल आपस में मिलकर मूत्राशय या गुर्दे में पथरी बना देते हैं। पथरी से मूत्रनली बन्द हो सकती है।

यहाँ से मूत्र रुक जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। मूत्राशय अधिक से अधिक मूत्र एकत्र करने लगता है। मूत्राशय का आकार ४० से ६० सेंटीलीटर तक होता है। जब मूत्राशय मूत्र अधिक भंडारित करता है तो उसका आकार ३०० सेंटीलीटर तक बढ़ सकता है। अधिक भरे हुए मूत्राशय से मूत्र लीक हो सकता है और इससे रात में बिस्तर गीला करना या अनियमित मूत्रत्याग जैसा हो सकता है। इतना ही नहीं, मूत्र की अधिक मात्रा से गुर्दों पर बहुत दबाव पड़ता है, जिससे गुर्दे खराब हो सकते हैं।

मूत्राशय में अधिक मूत्र एकत्रीकरण से पुरुष अस्पताल जाने को बाध्य हो सकता है। वह एक दिन उठता है तो पाता है कि वह मूत्र त्याग करने में समर्थ नहीं है।

ऊपर जो भी मैंने लिखा है वह पौरुष ग्रंथि की वृद्धि से सम्बंधित है। इसे तकनीकी शब्दों में प्रोस्टेट हाइपरप्लासिया (prostate hyperplasia) कहा जाता है।

पौरुष ग्रंथि की अन्य बीमारियाँ भी हो सकती हैं, जैसे-

1. प्रोस्टेटाइटिस (Prostatitis): पौरुष ग्रंथि में जलन
2. प्रोस्टेट कैंसर (Prostate cancer): पौरुष ग्रंथि का कैंसर

पौरुष ग्रन्थि में वृद्धि (prostate enlargement), अधिक आयु तक जीने वालों में स्वतः हो जाती है तो वहीं इसको अपनी जीवन चर्या (life style) से स्वस्थ भी रखा जा सकता है। जीवन चर्या मैं निम्न बातों पर विशेष ध्यान रखना होगा -

*पोषण (NUTRITION)*

अपने भोजन को देखिए। अमेरिकी राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के अनुसार ३३% कैंसरों का सम्बंध हमारे भोजन से होता है। प्रतिदिन लाल माँस सेवन पौरुष के रोगों की संभावना तीन गुना बढ़ा देता है। प्रतिदिन दूध लेना आपके जोखिम को दोगुना कर देता है। प्रतिदिन फल और सब्ज़ी न खाने से आपका जोखिम चार गुना हो जाता है।

टमाटर पुरुषों के लिए बहुत अच्छे होते हैं। यदि आपकी पत्नी शाम को केवल टमाटर ही रख देती है तो उसे प्रसन्नता से खाइए। इसमें बहुत लाइकोपिन होता है। लाइकोपिन सबसे अच्छा एंटीऑक्सिडेंट है।

जिस भोजन में जस्ते (zinc) की मात्रा अधिक होती है, वे भी पुरुषों के लिए अच्छे होते हैं। इसके लिए हम कद्दू (काशीफल) के बीजों (ugbogulu) की संस्तुति करते हैं। जस्ता पुरुष यौनशक्ति और उपजाऊपन के लिए सबसे अधिक अनिवार्य तत्व है।

पुरुष को महिलाओं की अपेक्षा अधिक जस्ते की आवश्यकता होती है। हर बार जब पुरुष उत्तेजित होता है तब उसका १५ मिलीग्राम जस्ता कम हो जाता है। अल्कोहल के चयापचय (metabolism) के लिए भी जस्ता महत्वपूर्ण है। आपके लीवर को अल्कोहल पचाने के लिए जस्ते की आवश्यकता होती है।

*अल्कोहल सेवन (ALCOHOL CONSUMPTION)*

जब पुरुषों के पौरुष ग्रंथि वृद्धि से सम्बंधित मूत्र समस्यायें होना प्रारम्भ होती हैं, तो अल्कोहल सेवन पर ध्यान देना उनके लिए महत्वपूर्ण है। अधिक द्रव सेवन करने से अधिक द्रव बाहर निकलता है।

इसलिए कम पियो, धीरे पियो।

*व्यायाम (EXERCISE)*

व्यायाम से माँसपेशियों का सही निर्माण होने में सहायता मिलती है। प्रत्येक पुरुष को व्यायाम करना चाहिए। ४० वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों को जॉगिंग जैसे कड़े प्रभाव वाले व्यायामों से बचना चाहिए। इससे घुटनों पर बहुत दबाव पड़ता है। साइकिल चलाना पौरुष के लिए बुरा समाचार है। हम तेज चाल से टहलने की संस्तुति करते हैं।

*बैठना (SITTING)*

जब हम बैठते हैं तो हमारा दो-तिहाई वजन नितम्बों की हड्डियों (pelvic bones) पर आता है। जो पुरुष अधिक देर तक बैठे रहते हैं, उनको पौरुष की समस्यायें होने की संभावना अधिक होती है। इसलिए अधिक देर तक मत बैठे रहिए। जितना अधिक हो सके उतना आसपास टहलिए। आरामदायक कुर्सी पर बैठिए। यदि आपको लम्बे समय तक बैठना है, तो हम divided saddle chair की संस्तुति करते हैं।

*वस्त्र (DRESSING)*

पुरुषों को तंग अंडरवीयर से बचना चाहिए। इससे जननांग के आसपास रक्त के संचरण पर प्रभाव पड़ता है और कुछ गर्म भी कर देता है। हालाँकि हमारे शरीर का तापमान ३७ अंश होता है, जननांग क्षेत्र के लिए आदर्श तापमान ३३ अंश है। पुरुषों के लिए पैंट (पतलून) मना है। बॉक्सर पहनिए। ऐसे कपडे पहनिए कि आप साँस ले सकें।

*धूम्रपान (SMOKING)*

धूम्रपान से बचिए। इससे रक्त वाहिकाएँ प्रभावित होती हैं और जननांग क्षेत्र में रक्त संचरण पर प्रभाव पड़ता है।

*सेक्स (SEX)*

नियमित सेक्स करना पौरुष ग्रंथियों के लिए अच्छा रहता है।

कुँवारे व्यक्तियों को पौरुष के रोगों की संभावना अधिक होती है। हालाँकि कुंवारापन एक नैतिक निर्णय है, लेकिन जैविक रूप से इसे अपनाना उचित नहीं। आपकी प्रोस्टेट ग्रंथियों को इस प्रकार बनाया गया है कि इसकी सामग्री को नियमित रूप से खाली किया जाय।

*(अनुवादित)*
Vijay Singhal: *पौरुष ग्रन्थि के रोगों का सरल प्राकृतिक उपचार*

पौरुष ग्रन्थि केवल पुरुषों में होती है और वह भी केवल ४० वर्ष से अधिक उम्र वालों में, लेकिन इसके स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता सभी के लिए आवश्यक है।

आप जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के दो गुर्दे (Kidneys) होते हैं। गुर्दो का कार्य कचरा निकालना होता है। प्रतिदिन आपका खून गुर्दों में होकर कई बार गुज़रता है और छनता है। जब खून को छाना जाता है, तो उसमें से पेशाब बनता है, जो मूत्राशय (urinary bladder) में अस्थायी रूप से एकत्र किया जाता है।

प्रकृति ने हमारे मूत्राशय से एक पाइप को लिंग की नोंक तक पहुँचाया है। इस पाइप को मूत्रनली (urethra) कहा जाता है। मूत्राशय के ठीक नीचे और मूत्रनली को घेरे हुए एक छोटा सा अंग है जिसे पौरुष ग्रंथि (Prostate gland) कहा जाता है।

पौरुष ग्रंथि का आकार एक अखरोट के बराबर और वजन लगभग २० ग्राम होता है। इसका कार्य है वीर्य का द्रव (seminal fluid) बनाना, जो वीर्य गुटिका (seminal vehicle) में एकत्र किया जाता है। यौन संभोग के समय यह द्रव मूत्रनली से उतरता है और अंडकोषों में बनने वाले शुक्राणुओं से मिलकर वीर्य बनाता है।

४० वर्ष की उम्र के बाद, शायद हार्मोनों के कारण, पौरुष ग्रंथि बढ़ना शुरू होती है। २० ग्राम से बढ़कर यह १०० ग्राम तक हो सकती है। जब यह बढ़ती है, तो मूत्रनली को संकुचित करती है और इसका प्रभाव पुरुष मूत्र त्याग करते समय अनुभव करता है।

पौरुष ग्रंथि के बढ़ने से पुरुष को निम्नलिखित समस्यायें हो सकती हैं-
1. मूत्र का बूँद-बूँद टपकना
2. मूत्र निकलने में देरी होना
3. मूत्राशय पूरी तरह खाली न होना
4. बार-बार मूत्र त्याग करने की इच्छा होना
5. रात में बिस्तर गीला करना
6. मूत्रनली में जलन होना
7. मूत्र त्याग में कष्ट होना
8. मूत्र बंद हो जाना
9. मूत्र के साथ पस आना
10. मूत्र त्याग के बाद मूत्रांग के सिरे पर जलन होना
11. मूत्राशय में संक्रमण होना, जिससे पथरी बनना
12. गुर्दों पर दबाब पड़ना, जिससे पथरी बनना

ये सभी रोग पौरुष ग्रंथि में वृद्धि के कारण होते हैं। यदि इसकी रोकथाम न की जाये, तो आगे चलकर पौरुष ग्रंथियों का कैंसर होने का डर रहता है। गुर्दे भी खराब हो सकते हैं। पौरुष ग्रन्थि में वृद्धि को किसी भी दवा से रोका नहीं जा सकता। लेकिन सही जीवनशैली (life style) अपनाकर इसे स्वस्थ भी रखा जा सकता है। इतना ही नहीं, यदि आपको ऊपर लिखी शिकायतों में से एक या अधिक शिकायतें हो गयी हैं, तो सही जीवन शैली अपनाकर आप उनसे छुटकारा भी पा सकते हैं।

अपनी जीवन चर्या में आपको निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान रखना होगा -
1. पोषण : पौष्टिक भोजन करें। दूध का सेवन कम करके, फल और हरी सब्ज़ी की मात्रा बढ़ायें। कुछ सूखे मेवा भी सेवन करें।
2. प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में सादा जल का नियमित अन्तराल पर सेवन करें, ताकि मूत्र पर्याप्त मात्रा में बने और गुर्दे सही कार्य करें।
3. प्रतिदिन पर्याप्त दूरी तक पैदल चलें और अपनी उम्र के अनुसार उचित व्यायाम करें। यदि मूत्रनली में जलन या दर्द हो, तो टहलने जाने से पहले पाँच मिनट तक पेडू पर ठंडे पानी की पट्टी रखें।
4. एक ही स्थिति में देर तक न बैठें। बीच-बीच में खड़े होकर थोड़ा टहल लें।
5. हल्के और ढीले वस्त्र पहनें। तंग कपड़ों से दूर रहें।
6. मूत्र त्याग करते समय बिल्कुल भी ज़ोर न लगायें। उसे अपने आप निकलने दें।
7. पानी पीने के ४५ मिनट से एक घंटे बाद मूत्र त्याग करने जायें। मूत्र त्याग के १५ मिनट बाद ही जल पियें। मूत्र के वेग को अधिक देर तक न रोकें।
8. रात्रि को सोते समय एक चम्मच त्रिफलाचूर्ण आधा गिलास गुनगुने जल के साथ लें।
9. धूम्रपान से पूरी तरह दूर रहें।
10. यदि अल्कोहल सेवन करते हैं तो उसकी मात्रा न्यूनतम रखें और धीरे-धीरे पियें।

इस जीवनशैली का पालन करने वाला व्यक्ति पौरुष ग्रंथि के रोगों से बचा रहता है और यदि ये रोग हो गये हों तो स्वस्थ हो जाता है। बहुधा लोग अज्ञानतावश अथवा वृद्धावस्था का रोग मानने के कारण Urinary Track Infection पर ध्यान नहीं देते। अतः यदि उक्त जीवन शैली अपनाने पर भी मूत्र विसर्जन की समस्या बनी रहती है, तो Urinary Track Infection का परीक्षण अवश्य करा लें।

-- *विजय कुमार सिंघल*
भाद्रपद शु १०, सं २०७४ वि (३१ अगस्त २०१७)

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