Thursday, August 16, 2018

Increase Power Of Immunity of Your Body

*मौसम बदलने पर स्वस्थ रहें*

पूरे संसार में हमारा भारत शायद इकलौता ऐसा देश है जहाँ वर्ष भर में 6 ऋतुएँ होती हैं- ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमन्त और बसन्त। इसका तात्पर्य है कि यहाँ औसतन हर दो महीने पर ऋतु बदल जाती है।

मौसम बदलने पर बहुत से लोगों को स्वास्थ्य सम्बंधी शिकायतें हो जाती हैं, जिनमें ज़ुकाम, खाँसी, बुखार आदि सामान्य हैं। कई लोग तो मौसम बदलने का समय आने पर ही घबरा जाते हैं कि अब तो बीमार पड़ना ही है। पर हम देखेंगे कि यह डर पूरी तरह निराधार है। मौसम तो सभी के लिए बदलता है, पर बीमार केवल गिने-चुने लोग ही पड़ते हैं।

मौसम बदलने पर हो जाने वाली शिकायतों को डाक्टर लोग एलर्जी कह देते हैं। परन्तु वास्तव में एलर्जी कोई स्वतंत्र रोग नहीं है, बल्कि हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने का एक लक्षण है। इसका उपचार दवाओं से नहीं किया जा सकता। दवाओं से केवल कुछ लक्षणों को कुछ समय के लिए दबा दिया जा सकता है, लेकिन शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति को नहीं बढ़ाया जा सकता।

इसलिए मौसम बदलने पर होने वाली शिकायतों का सरल और स्थायी समाधान यह है कि शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाया जाये। इसके लिए पहला उपाय तो यह है कि हम मौसम के साथ-साथ चलें अर्थात् जहाँ तक सम्भव हो गर्मियों में गर्मी सहन करें, जाड़ों में जाड़ा सहन करें और बरसात में कभी-कभी भीगें भी। इससे हमारा शरीर सभी मौसम परिवर्तनों के लिए सुरक्षित रहेगा। मौसम हमारी सहन शक्ति से बाहर होने पर ही कृत्रिम उपायों जैसे कूलर, एसी, हीटर, छाता आदि का सहारा लेना चाहिए।

दूसरा उपाय यह है कि ऐसी वस्तुओं का सेवन किया जाये जो शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाती हैं। नीबू, शहद, आँवला, लहसुन, अदरक, हरी मिर्च आदि ऐसी कुछ प्रभावशाली वस्तुएँ हैं। इनको सेवन करने की सरल विधि यह हो सकती है-
1. सुबह उठते ही एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू का रस और एक चम्मच शहद मिलाकर पियें। फिर पाँच मिनट टहलकर शौच जायें।
2. सुबह खाली पेट लहसुन की दो-तीन कली छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े करके सादा पानी से निगल लें।
3. रात्रि को सोने से पहले एक चम्मच त्रिफला चूर्ण एक चम्मच शहद में मिलाकर चाटें।
4. सात्विक भोजन करें और सब्ज़ियों में  अदरक तथा हरी मिर्च अवश्य डालें।
इनसे धीरे-धीरे आपके शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति का निर्माण हो जाएगा।

इन उपायों के बाद भी यदि आपको ऐसी शिकायत कभी हो ही जाती है, तो दवा खाने के बजाय केवल गुनगुना पानी पियें और शरीर से निकल रहे कफ को निकालते जायें। इससे कुछ ही दिनों में आप स्वस्थ हो जायेंगे।

— *विजय कुमार सिंघल*
श्रावण शु 5, सं 2075 वि (16 अगस्त, 2018)

*जल कब पियें, कब न पियें*

जल हमारे जीवन का आधार ही नहीं, सर्वश्रेष्ठ औषधि भी है। इसके समुचित प्रयोग से हम न केवल स्वस्थ रह सकते हैं बल्कि अधिकांश रोगों से भी सहज ही छुटकारा पा सकते हैं। लेकिन खेद है कि इतना महत्वपूर्ण तत्व होने के बाद भी अधिकांश लोग जल का उचित उपयोग नहीं करते और इसके परिणामस्वरूप बीमार रहते तथा कष्ट उठाते हैं।

सबसे पहले तो यह जानिये कि कैसा जल पीना चाहिए। इसका उत्तर यह है  कि जल जहाँ तक सम्भव हो प्राकृतिक रूप से शीतल हो। अधिक शीतल जल, जैसे फ्रिज या बर्फ से ठंडा किया हुआ, पीना कदापि उचित नहीं। यदि कभी ऐसा जल पीना ही पड़े तो उसमें कुछ मात्रा में साधारण जल मिलाकर उसकी शीतलता कम कर ली जाये। गर्मी के दिनों में घड़े या सुराही का और जाड़े के दिनों में साधारण धातु के बर्तन में रखा हुआ जल पीना सबसे अच्छा है। वैसे अधिक ठंड में गुनगुना जल भी पिया जा सकता है।

फिर हमें यह जानना चाहिए कि कब जल पीना चाहिए और कब नहीं। यहाँ मैं अधिक विस्तार में जाये बिना संक्षेप में बताऊँगा कि हमें कब जल पीना चाहिए और कब नहीं पीना चाहिए।

*जल कब पियें*
1. प्रातः उठते ही डेढ़-दो गिलास साधारण शीतल या गुनगुना जल पियें। यदि पेट साफ न होने की शिकायत हो तो उसमें आधा नीबू निचोड़ा और एक चम्मच शहद मिलाया जा सकता है।
2. इसके बाद दिन भर हर एक या सवा घंटे बाद एक गिलास जल पीते रहें। इस प्रकार आप दिन भर में तीन से साढ़े तीन लीटर जल सरलता से पी सकेंगे। हर बार जल पीने के 45 मिनट से 1 घंटे बाद मूत्र विसर्जन करना भी अच्छा रहता है।
3. भोजन से लगभग एक घंटा पहले जल अवश्य पियें।
4. भोजन के लगभग सवा-डेढ घंटा बाद जल पियें।
5. रात्रि को सोने से पहले आधा गिलास जल पियें।
6. गर्मियों में घर से बाहर निकलने से पहले जल अवश्य पियें। अन्य दिनों में भी ऐसा किया जा सकता है।
7. टहलने या योग-व्यायाम करने से पहले जल पियें और व्यायाम के बाद भी एक गिलास जल अवश्य पियें।
8. सबसे सुनहरा नियम यह है कि जब भी आपको प्यास लगी तो तब जल अवश्य पियें।

*जल कब न पियें*
1. भोजन के तत्काल बाद जल पीना बहुत हानिकारक है। उस समय केवल कुल्ला करके मुँह साफ कर लें और बस एक या दो घूँट जल पी लें। इस समय जल अधिक पीने से पाचनशक्ति बिगड़ जाती है और  पेट लटकने लगता है।
2. शौच करके लौटने के तत्काल बाद जल न पियें। इस समय जल पीने से पाचन शक्ति बहुत कमजोर हो जाती है। शौच के 15-20 मिनट बाद जल पिया जा सकता है।
3. यदि बाहर से लौटे हों और बहुत पसीना आ रहा हो, तो तत्काल जल न पियें, बल्कि कम से कम 10 मिनट विश्राम करने के बाद ही पियें।
4. कोई रसीला फल खाने या दूध पीने के तत्काल बाद भी जल न पियें. इसके 10-15 मिनट बाद जल पिया जा सकता है.

यदि आप इन नियमों का पालन करेंगे, तो जल का पूरा लाभ आपको मिलेगा और सदा स्वस्थ रहेंगे।

-- *विजय कुमार सिंघल*
भाद्रपद कृ 3, सं 2075 वि (29 अगस्त 2018)


*व्रत-उपवास*

व्रत का शाब्दिक अर्थ है- संकल्प लेना या प्रण करना। किसी कार्य को करने या न करने का संकल्प लेने पर कहा जाता है कि उसने ऐसा व्रत लिया है। जैसे कोई आजीवन समाजसेवा करने का व्रत लेता है, या वनवास का व्रत लेता है या जीवन भर फलाहार करने का व्रत लेता है। इसी तरह कोई किसी विशेष अवसर पर उपवास करने का व्रत लेता है। उसको भी व्रत कहा जाता है।

यह हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता थी कि उन्होंने धार्मिक पर्वों पर उपवास करने का प्रावधान किया। जिस प्रकार हमें सप्ताह में एक दिन कार्य से अवकाश लेने की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार हमारी पाचन प्रणाली को भी समय-समय पर आराम चाहिए। इसलिए हमारे पूर्वजों ने प्रत्येक एकादशी के दिन उपवास करने की परम्परा चलायी, ताकि पन्द्रह दिन में कम से कम एक बार हमारी पाचन प्रणाली को पूरा आराम मिल जाये। इससे हमें अनेक शारीरिक और मानसिक लाभ होते हैं।

आजकल व्रत का प्रचलित अर्थ हो गया है किसी धार्मिक अवसर पर फलाहार करना। अगर लोग इस दिन उपवास न करके केवल प्राकृतिक फलों या उनके रस के सेवन तक सीमित रहते तो बहुत अच्छा होता। परन्तु आजकल यह जिस प्रकार किया जाता है वह बहुत भयंकर है और अपनी गौरवशाली परम्परा का घोर विकृत रूप है। इस दिन लोग प्रातः काल से ही भूखे रहकर खाली पेट चाय, शीतल पेय आदि तामसिक चीजें पीते रहते हैं, फिर दोपहर बाद या शाम को फलाहार के नाम पर कूटू और सिंघाड़े के आटे से बनी तली हुई चीजें तथा दूध से बनी मिठाई ठूँस-ठूँसकर खा लेते हैं।  इससे पाचन प्रणाली को आराम तो मिलता ही नहीं, शरीर में तामसी चीजों की अधिकता और हो जाती है, जिससे स्वास्थ्य बहुत बिगड़ जाता है।

ऐसा तथाकथित व्रत करने वाले लोग प्रायः बीमार ही बने रहते हैं और डाॅक्टरों के पास जाकर दवाइयाँ लिखवाकर खाते रहते हैं। ऐसे व्रत से शारीरिक हानि के साथ-साथ मानसिक हानि भी होती है, क्योंकि लोग ऐसे व्रत के अहंकार में डूबे रहते हैं। ऐसे व्रत करने से तो कुछ न करना और साधारण भोजन करना अधिक अच्छा है।

व्रत या उपवास करने की सही विधि यह है कि हम उस दिन केवल साधारण जल या उबला हुआ जल ठंडा करके ग्रहण करें। प्रत्येक घंटे पर एक गिलास जल लेना आवश्यक है। इसके कारण जितनी बार भी मल-मूत्र विसर्जन करना हो, करते रहना चाहिए। इससे हमारे शरीर की अच्छी सफाई हो जाती है। पाचन प्रणाली को आवश्यक आराम मिल जाता है और मल निष्कासन प्रणाली भी सुचारु रूप से चलती रहती है। यदि पूरे दिन केवल जल का ही सेवन किया जाये, तो सर्वश्रेष्ठ है। यदि सायंकाल भूख अधिक लगे, तो या तो किसी प्राकृतिक फल या उसके रस का सेवन करना चाहिए, वह भी सीमित मात्रा में।

इस प्रकार का उपवास हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है। सप्ताह में एक दिन ऐसा उपवास करने वाला व्यक्ति कभी बीमार पड़ ही नहीं सकता। यदि सप्ताह में नहीं तो पन्द्रह दिन में एक बार ऐसा उपवास अवश्य कर लेना चाहिए। इसके लिए आप एकादशी या प्रतिपदा या अन्य कोई भी दिन निर्धारित कर सकते हैं।

-- *विजय कुमार सिंघल*
आश्विन शु. 6, सं. 2073 वि. (7 अक्तूबर, 2016)

No comments:

Post a Comment