Sunday, September 23, 2018

Inspirational Stories --कर्म भोग-----Make Your Child Strong

कर्म भोग_

*बहुत ही ज्ञानवर्धक कथा जरूर पढ़ें!*

*एक गाँव में एक किसान रहता था उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक लड़का था। कुछ सालों के बाद पत्नी की मृत्यु हो गई उस समय लड़के की उम्र दस साल थी।

किसान ने दूसरी शादी कर ली। उस दूसरी पत्नी से भी किसान को एक पुत्र प्राप्त हुआ।किसान की दूसरी पत्नी की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई।*

*किसान का बड़ा बेटा जो पहली पत्नी से प्राप्त हुआ था जब शादी के योग्य हुआ तब किसान ने बड़े बेटे की शादी कर दी।

फिर किसान की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई। किसान का छोटा बेटा जो दूसरी पत्नी से प्राप्त हुआ था और पहली पत्नी से प्राप्त बड़ा बेटा दोनों साथ साथ रहते थे।

कुछ समय बाद किसान के छोटे लड़के की तबियत खराब रहने लगी। बड़े भाई ने कुछ आस पास के वैद्यों से इलाज करवाया पर कोई राहत ना मिली। छोटे भाई की दिन ब दिन तबियत बिगड़ती जा रही थी और बहुत खर्च भी हो रहा था।*

*एक दिन बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह की कि यदि ये छोटा भाई मर जाए तो हमें इसके इलाज के लिए पैसा खर्च ना करना पड़ेगा।

और जायदाद में आधा हिस्सा भी नहीं देना पड़ेगा। तब उसकी पत्नी ने कहा कि क्यों न किसी वैद्य से बात करके इसे जहर दे दिया जाए किसी को पता भी ना चलेगा किसी रिश्तेदारी में भी कोई शक ना करेगा कि बीमार था बीमारी से मृत्यु हो गई।*

*बड़े भाई ने ऐसे ही किया एक वैद्य से बात की कि आप अपनी फीस बताओ ऐसा करना मेरे छोटे बीमार भाई को दवा के बहाने से जहर देना है !

वैद्य ने बात मान ली और लड़के को जहर दे दिया और लड़के की मृत्यु हो गई।उसके भाई भाभी ने खुशी मनाई की रास्ते का काँटा निकल गया अब सारी सम्पत्ति अपनी हो गई।

उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। कुछ महीनों पश्चात उस किसान के बड़े लड़के की पत्नी को लड़का हुआ !

उन पति पत्नी ने खूब खुशी मनाई, बड़े ही लाड़ प्यार से लड़के की परवरिश की। कुछ ही गिने वर्षों में लड़का जवान हो गया। उन्होंने अपने लड़के की भी शादी कर दी!

शादी के कुछ समय बाद अचानक लड़का बीमार रहने लगा। माँ बाप ने उसके इलाज के लिए बहुत वैद्यों से इलाज करवाया। जिसने जितना पैसा माँगा दिया सब कुछ दिया ताकि लड़का ठीक हो जाए ।

अपने लड़के के इलाज में अपनी आधी सम्पत्ति तक बेच दी पर लड़का बीमारी के कारण मरने की कगार पर आ गया। शरीर इतना ज्यादा कमजोर हो गया की अस्थि-पिंजर शेष रह गया था।*

*एक दिन लड़के को चारपाई पर लेटा रखा था और उसका पिता साथ में बैठा अपने पुत्र की ये दयनीय हालत देख कर दुःखी होकर उसकी ओर देख रहा था!

तभी लड़का अपने पिता से बोला कि _भाई_ अपना सब हिसाब हो गया बस अब कफन और लकड़ी का हिसाब बाकी है उसकी तैयारी कर लो।

ये सुनकर उसके पिता ने सोचा की लड़के का दिमाग भी काम नहीं कर रहा है बीमारी के कारण और बोला बेटा मैं तेरा बाप हूँ भाई नहीं!*

*तब लड़का बोला मैं आपका वही भाई हूँ जो आप ने जहर खिलाकर मरवाया था । जिस सम्पत्ति के लिए आप ने मरवाया था मुझे अब वो मेरे इलाज के लिए आधी बिक चुकी है आपकी शेष है हमारा हिसाब हो गया !*

*तब उसका पिता फ़ूट-फूट कर रोते हुए बोला कि मेरा तो कुल नाश हो गया। जो किया मेरे आगे आ गया। पर तेरी पत्नी का क्या दोष है जो इस बेचारी को जिन्दा जलाया जाएगा ।
_(उस समय सतीप्रथा थी जिसमें पति के मरने के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था)_
तब वो लड़का बोला की वो वैद्य कहाँ है, जिसने मुझे जहर खिलाया था। तब उसके पिता ने कहा की आप की मृत्यु के तीन साल बाद वो मर गया था।

तब लड़के ने कहा कि ये वही दुष्ट वैद्य आज मेरी पत्नी रूप में है मेरे मरने पर इसे जिन्दा जलाया जाएगा ।
*हमारा जीवन जो उतार-चढ़ाव से भरा है इसके पीछे हमारे अपने ही कर्म होते हैं। हम जैसा बोएंगे, वैसा ही काटना पड़ेगा।*

*_कर्म करो तो फल मिलता है,_*
*_आज नहीं तो कल मिलता है।_*
*_जितना गहरा अधिक हो कुआँ,_*
*_उतना मीठा जल मिलता है।_*
_*जीवन के हर कठिन प्रश्न का,*_
_*जीवन से ही हल मिलता है।


                Santo ki bani
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प्रकृति के तीन नियम

1- यदि खेत में  बीज न डालें जाएं  तो कुदरत  उसे घास-फूस से  भर देती हैं...!!
ठीक  उसी  तरह से  दिमाग  में सकारात्मक विचार  न भरे  जाएँ  तो *नकारात्मक*  विचार  अपनी  जगह  बना ही लेते हैं...!!

2-जिसके  पास  जो होता है...!!
 वह वही बांटता  है....!!
सुखी *सुख* बांटता है...
दुःखी *दुःख* बांटता है..
ज्ञानी *ज्ञान* बांटता है..
भ्रमित *भ्रम* बांटता है..
भयभीत *भय* बांटता हैं......!!

3.आपको जीवन से जो कुछ भी मिलें उसे पचाना सीखो क्योंकि भोजन न पचने  पर रोग बढ़ते हैं...!
पैसा न *पचने* पर दिखावा बढ़ता है...!
बात  न *पचने* पर चुगली  बढ़ती है...!
प्रशंसा  न *पचने* पर  अंहकार  बढ़ता है....!
निंदा  न *पचने* पर  दुश्मनी  बढ़ती है...!
राज़ न *पचने* पर  खतरा  बढ़ता है...!
दुःख  न *पचने* पर  निराशा बढ़ती है...!
और सुख न *पचने* पर  पाप बढ़ता है...!


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एक बहुत प्रसिद्ध लामा ने अपनी आत्म—कथा में लिखा है कि जब मैं पांच वर्ष का था, तो मुझे विद्यापीठ में पढ़ने के लिए भेजा गया। रात को मेरे पिता ने मुझसे कहा—तब मैं कुल पांच वर्ष का था— रात को मेरे पिता ने मुझसे कहा कि कल सुबह चार बजे तुझे विद्यापीठ भेजा जाएगा। और स्मरण रहे, सुबह तेरी विदाई के लिए न तो तेरी मां होगी और न मैं मौजूद रहूंगा। मां इसलिए मौजूद नहीं रखी जा सकती कि उसकी आंखों में आंसू आ जाएंगे। और रोती हुई मां को छोड़ कर तू जाएगा तो तेरा मन पीछे की तरफ, पीछे की तरफ होता रहेगा और हमारे घर में ऐसा आदमी कभी पैदा नहीं हुआ जो पीछे की तरफ देखता हो। मैं इसलिए मौजूद नहीं रहूंगा कि अगर तूने एक भी बार घोड़े पर बैठ कर पीछे की तरफ देख लिया, तो तू फिर मेरा लड़का नहीं रह जाएगा, फिर इस घर का दरवाजा तेरे लिए बंद हो जाएगा। नौकर तुझे विदा दे देंगे सुबह। और स्मरण रहे, घोड़े पर से पीछे लौट कर मत देखना। हमारे घर में कोई ऐसा आदमी नहीं हुआ जो पीछे की तरफ लौट कर देखता हो। और अगर तूने पीछे की तरफ लौट कर देखा, तो समझ लेना इस घर से फिर तेरा कोई नाता नहीं।

पांच वर्ष के बच्चे से ऐसी अपेक्षा? पांच वर्ष का बच्चा सुबह चार बजे उठा दिया गया और घोड़े पर बिठा दिया गया। नौकरों ने उसे विदा कर दिया। चलते वक्त नौकर ने भी कहा बेटे होशियारी से! मोड़ तक दिखाई पड़ता है, पिता ऊपर से देखते हैं। मोड़ तक पीछे लौट कर मत देखना। इस घर में सब बच्चे ऐसे ही विदा हुए, लेकिन किसी ने पीछे लौट कर नहीं देखा। और जाते वक्त नौकर ने कहा कि तुम जहां भेजे जा रहे हो वह विद्यापीठ साधारण नहीं है। वहां देश के जो श्रेष्ठतम पुरुष……उस विद्यापीठ से पैदा होते हैं। वहां बड़ी कठिन परीक्षा होगी प्रवेश की। तो चाहे कुछ भी हो जाए, हर कोशिश करना कि उस प्रवेश—परीक्षा में प्रविष्ट हो जाओ। क्योंकि वहां से असफल हो गए तो इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं रह जाएगी।
पांच वर्ष का लड़का, उसके साथ ऐसी कठोरता! वह घोड़े पर बैठ गया और उसने अपनी आत्म—कथा में लिखा है कि मेरी आंखों में आंसू भरने लगे, लेकिन पीछे लौट कर कैसे देख सकता हूं उस घर को, पिता को……जिस घर को छोड़ कर जाना पड़ रहा है मुझे अनजान में। इतना छोटा हूं। लेकिन लौट कर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि मेरे घर में कभी किसी ने लौट कर नहीं देखा। और अगर पिता ने देख लिया तो फिर इस घर से हमेशा के लिए वंचित हो जाऊंगा, इसीलिए कड़ी हिम्मत रखी और आगे की तरफ देखता रहा, पीछे लौट कर नहीं देखा।

इस बच्चे के भीतर कोई चीज पैदा की जा रही है। इस बच्चे के भीतर कोई संकल्प जगाया जा रहा है, जो इसके नाभि—केंद्र को मजबूत करेगा। यह बाप कठोर नहीं है, यह बाप बहुत प्रेम से भरा हुआ है। और हमारे सब मां—बाप गलत हैं जो प्रेम से भरे हुए दिखाई पड़ रहे हैं, वे भीतर के सारे केंद्रों को शिथिल किए दे रहे हैं। भीतर कोई बल, कोई संबल खड़ा नहीं किया जा रहा है।

वह स्कूल में पहुंच गया। पांच वर्ष का छोटा सा बच्चा, उसकी क्या सामर्थ्य और क्या हैसियत! स्कूल के प्रधान ने, विद्यापीठ के प्रधान ने कहा कि यहां की प्रवेश—परीक्षा कठिन है। दरवाजे पर आंख बंद करके बैठ जाओ और जब तक मैं वापस न आऊं तब तक आंख मत खोलना, चाहे कुछ भी हो जाए। यही तुम्हारी प्रवेश— परीक्षा है। अगर तुमने आंख खोल ली तो हम वापस लौटा देंगे, क्योंकि जिसका अपने ऊपर इतना भी बल नहीं है कि कुछ देर तक आंख बंद किए बैठा रहे, वह और क्या सीख सकेगा? उसके सीखने का दरवाजा खत्म हो गया, बंद हो गया। फिर तुम उस काम के लायक नहीं हो, फिर तुम जाकर और कुछ करना। पांच वर्ष के छोटे से बच्चे को…!
वह बैठ गया दरवाजे पर आंख बंद करके। मक्खियां उसे सताने लगीं, लेकिन आंख खोल कर नहीं देखना है, क्योंकि आंख खोल कर देखा तो मामला खत्म हो जाएगा। छोटे—मोटे जो दूसरे बच्चे स्कूल में आ— जा रहे हैं, कोई उसे धक्का देने लगा है, कोई उसको परेशान करने लगा है, लेकिन आंख खोल कर नहीं देखना है, क्योंकि आंख खोल कर देखा तो मामला फिर खराब हो जाएगा। और नौकरों ने आते वक्त कहा है कि अगर प्रवेश—परीक्षा में असफल हो गए तो यह घर भी तुम्हारा नहीं।

एक घंटा बीत गया, दो घंटे बीत गए, वह आंख बंद किए बैठा है और डरा हुआ है कि कहीं भूल से भी आंख न खुल जाए और आंख खोलने के सब टेम्पटेशन मौजूद हैं वहां। रास्ता चल रहा है, बच्चे निकल रहे हैं, मक्खियां सता रही हैं, कोई बच्चे उसे धक्के देते जा रहे हैं, कोई बच्चा कंकड़ मार रहा है। और उसे आंख खोलने का सब मन होता है कि देखे……कि अब तक गुरु नहीं आया। एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा, चार घंटा—उसने लिखा है कि छह घंटे!

और छह घंटे बाद गुरु आया और उसने कहा बेटे, तेरी प्रवेश—परीक्षा पूरी हो गई। तू भीतर आ, तू संकल्पवान युवक बनेगा। तेरे भीतर संकल्प है, तेरे भीतर विल है, तू जो चाहे कर सकता है। पांच—छह घंटे इस उम्र में आंख बंद करके बैठना बड़ी बात है। उसने उसे छाती से लगा लिया और उसने उसे कहा तू हैरान मत होना, वे बच्चे तुझे सताने नहीं.. सता नहीं रहे थे, वे बच्चे भेजे गए थे। उन्हें कहा गया था कि तुझे थोड़ा परेशान करेंगे ताकि तेरा आंख खोलने का खयाल आ जाए।

उस लामा ने लिखा है. उस वक्त तो मैं सोचता था मेरे साथ बड़ी कठोरता बरती जा रही है, लेकिन अब जीवन के अंत में मैं धन्यवाद से भरा हूं उन लोगों के प्रति जो मेरे प्रति कठोर थे। उन्होंने मेरे भीतर कुछ सोई हुई चीजें पैदा कर दीं, कोई सोया हुआ बल जग गया।
लेकिन हम उलटा कर रहे हैं—बच्चे को डांटना भी मत, मारना भी मत! और अभी तो सारी दुनिया में कार्पोरल पनिशमेंट बिलकुल बंद कर दिया गया है। बच्चे को कोई चोट नहीं पहुंचाई जा सकती, कोई शारीरिक दंड नहीं दिया जा सकता। यह निहायत बेवकूफी से भरी बात है, क्योंकि जिन बच्चों को किसी तरह का दंड नहीं दिया जा सकता—दंड अत्यंत प्रेमपूर्ण था, वह शत्रुता नहीं थी बच्चों के प्रति—क्योंकि उनके भीतर सोए हुए कुछ सेंटर्स उसी के अंतर्गत जागते थे। उनके भीतर रीढ़ खड़ी होती थी, मजबूत होती थी। उनके भीतर कोई बल पैदा होता था। उनके भीतर क्रोध भी जगता था और अभिमान भी जगता था और उनके भीतर कोई रीढ़ खड़ी होती थी।

हम बेरीढ़ के आदमी पैदा कर रहे हैं, जो जमीन पर सरक सकते हैं, लेकिन बाज पक्षियों की तरह आकाश में नहीं उड़ सकते। एक सरकता हुआ, रेंगता हुआ आदमी हम पैदा कर रहे हैं जिसके पास कोई रीढ़ नहीं। और हम सोचते हैं कि हम दया और प्रेम और नीति के अंतर्गत यह कर रहे हैं। और उसको भी हम यही सिखाते हैं कि क्रोध मत करना, उसको भी हम यही सिखाते हैं कि तेरे भीतर कोई तेजस्विता प्रकट न हो, तू बिलकुल शांत और ढीला—ढाला आदमी बनना, शिथिल।

इस आदमी के जीवन की कोई आत्मा नहीं हो सकती, इस आदमी के भीतर कोई आत्मा नहीं हो सकती, क्योंकि आत्मा के लिए जैसी तीव्र सारे हृदय की भावनाएं होनी चाहिए, वे उसके भीतर कोई भी नहीं होने वाली हैं।

सुप्रभात दोस्तों!! :

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जो बीज अपने अस्तित्व को नहीं मिटाना चाहता, धरती के गर्भ में प्रवेश नहीं करना चाहता, उस बीज की वृक्ष बनने की सम्भावनाएँ नष्ट हो जाती हैं।परिस्थिति विशेष में अपने को बाँध लेना, परिस्थिति का गुलाम बन जाना आपको कभी भी सुखी नहीं होने देगा।

परिवर्तन संसार का नियम है। जो प्राणी इस नियम को स्वीकार नहीं करता या जिसकी मनः स्थिति इस नियम की समर्थक नहीं, निश्चित ही उस आदमी के जीवन में सुख शांति की फसल नहीं उग पाती.

अतः परिस्थितियाँ एक जैसी नहीं रहतीं, रात के बाद दिन, पतझड़ के बाद वसन्त और गर्मी के बाद सर्दी जैसे स्वतः ही आ जाती है इसी प्रकार जीवन में दुःख के बाद सुख अपने आप आ जाता है। यहाँ हमेशा सुख ही नहीं मिला करते मगर दुःख और चिन्ताएं भी जीवन में सदैव नहीं रहा करतीं।


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*यह भी नहीं रहने वाला* 

         एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था। एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका।
*आनंद ने साधू  की खूब सेवा की। दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया।*

साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की  - "भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे।"

       *साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - "अरे, महात्मा जी! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।" साधू आनंद  की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।*

      दो वर्ष बाद साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । साधू आनंद से मिलने गया।

*आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे । साधू कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"*

     आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "महाराज  आप क्यों दु:खी हो रहे है ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! यह भी नहीं रहने वाला।"

      *साधू मन ही मन सोचने लगा - "मैं तो केवल भेष से साधू  हूँ । सच्चा साधू तो तू ही है, आनंद।"*

      कुछ वर्ष बाद साधू फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद  तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है ।  मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद  नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया।

*साधू ने आनंद  से कहा - "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया ।   भगवान्  करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"*

    *यह सुनकर आनंद  फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "महाराज  ! अभी भी आपकी नादानी बनी हुई है।"*

  साधू ने पूछा - "क्या यह भी नहीं रहने वाला ?"

    *आनंद उत्तर दिया - "हाँ! या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा । कुछ भी रहने वाला नहीं  है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा की अंश आत्मा।"*

आनंद  की बात को साधू ने गौर से सुना और चला गया।

     *साधू कई साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद  का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद  का देहांत हो गया है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।*

*कह रहा है आसमां यह समा कुछ भी नहीं।*

रो रही हैं शबनमें, नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं।
जिनके महलों में हजारों रंग के जलते थे फानूस।
झाड़ उनके कब्र पर, बाकी निशां कुछ भी नहीं।

*साधू कहता है - "अरे इन्सान! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता। तू सोचता है पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा। सच्चे इन्सान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं। मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते हैं, और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं।"*

 साधू कहने लगा - "धन्य है आनंद! तेरा सत्संग, और धन्य हैं तुम्हारे सतगुरु! मैं तो झूठा साधू हूँ, असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है। अब मैं तेरी तस्वीर देखना चाहता हूँ, कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं।"

  *साधू दूसरे कमरे में जाता है तो देखता है कि आनंद  ने अपनी तस्वीर  पर लिखवा रखा है - "आखिर में यह भी  नहीं रहेगा* ।"
             

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