Thursday, October 4, 2018

सुखी जीवन का रहस्य

सुखी जीवन का रहस्य

एक बार यूनान के मशहूर दार्शनिक सुकरात भ्रमण करते हुए एक नगर में गये।वहां उनकी मुलाकात एक वृद्ध सज्जन से हुई। दोनों आपस में काफी घुल मिल गये।
वृद्ध सज्जन आग्रहपूर्वक सुकरात को अपने निवास पर ले गये।भरा-पूरा परिवार था उनका, घर में बहु- बेटे, पौत्र-पौत्रियां सभी थे।
सुकरात ने वृद्ध से पूछा- “आपके घर में तो सुख-समृद्धि का वास है। वैसे अब आप करते क्या हैं?" इस पर वृद्ध ने कहा- “अब मुझे कुछ नहीं करना पड़ता। ईश्वर की दया से हमारा अच्छा कारोबार है, जिसकी सारी जिम्मेदारियां अब बेटों को सौंप दी हैं।घर की व्यवस्था हमारी बहुयें संभालती हैं। इसी तरह जीवन चल रहा है।"
यह सुनकर सुकरात बोले-"किन्तु इस वृद्धावस्था में भी आपको कुछ तो करना ही पड़ता होगा। आप बताइये कि बुढ़ापे में आपके इस सुखी जीवन का रहस्य क्या है?"
वह वृद्ध सज्जन मुस्कुराये और बोले- *“मैंने अपने जीवन के इस मोड़ पर एक ही नीति को अपनाया है कि दूसरों से अधिक अपेक्षायें मत पालो और जो मिले, उसमें संतुष्ट रहो।*  मैं और मेरी पत्नी अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व अपने बेटे- बहुओं को सौंपकर निश्चिंत हैं। अब वे जो कहते हैं, वह मैं कर देता हूं और जो कुछ भी खिलाते हैं, खा लेता हूं।अपने पौत्र- पौत्रियों के साथ हंसता-खेलता हूं। मेरे बच्चे जब कुछ भूल करते हैं । तब भी मैं चुप रहता हूं । मैं उनके किसी कार्य में बाधक नहीं बनता। पर जब कभी वे मेरे पास सलाह-मशविरे के लिए आते हैं तो मैं अपने जीवन के सारे अनुभवों को उनके सामने रखते हुए उनके द्वारा की गई भूल से उत्पन्न् दुष्परिणामों की ओर सचेत कर देता हूं । अब वे मेरी सलाह पर कितना अमल करते या नहीं करते हैं, यह देखना और अपना मन व्यथित करना मेरा काम नहीं है। वे मेरे निर्देशों पर चलें ही, मेरा यह आग्रह नहीं होता। परामर्श देने के बाद भी यदि वे भूल करते हैं तो मैं चिंतित नहीं होता। उस पर भी यदि वे मेरे पास पुन: आते हैं तो मैं पुन: सही सलाह देकर उन्हें विदा करता हूं।
बुजुर्ग सज्जन की यह बात सुन कर सुकरात बहुत प्रसन्न हुये। उन्होंने कहा- “इस आयु में जीवन कैसे जिया जाए, यह आपने सम्यक समझ लिया है।
यह कहानी सबके लिए है।अगर आज आप बूढ़े नही हैं तो कल अवश्य होंगे । इसलिए आज बुज़ुर्गों की 'इज़्ज़त' और 'मदद' करें जिससे कल कोई आपकी भी 'मदद' और 'इज़्ज़त' करे ।
याद रखें जो ---- आज दिया जाता है वही कल प्राप्त होता है।

अपनी वाणी में सुई भले ही रखो, पर उसमें धागा जरूर डालकर रखो, ताकि सुई केवल छेद ही न करे आपस में माला की तरह जोडकर भी रखे।

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मनहूस.....

एक व्यक्ति जीवन से हर प्रकार से निराश था । लोग उसे मनहूस के नाम से बुलाते थे ।

एक ज्ञानी पंडित ने उसे बताया कि तेरा भाग्य फलां पर्वत पर सोया हुआ है , तू उसे जाकर जगा ले तो भाग्य तेरे साथ हो जाएगा । बस ! फिर क्या था वो चल पड़ा अपना सोया भाग्य जगाने ।

रास्ते में जंगल पड़ा तो एक शेर उसे खाने को लपका , वो बोला भाई ! मुझे मत खाओ , मैं अपना सोया भाग्य जगाने जा रहा हूँ ।

शेर ने कहा कि तुम्हारा भाग्य जाग जाये तो मेरी एक समस्या है , उसका समाधान पूछते लाना । मेरी समस्या ये है कि मैं कितना भी खाऊं … मेरा पेट भरता ही नहीं है , हर समय पेट भूख की ज्वाला से जलता रहता है ।

मनहूस ने कहा– ठीक है । आगे जाने पर एक किसान के घर उसने रात बिताई । बातों बातों में पता चलने पर कि वो अपना सोया भाग्य जगाने जा रहा है ,

किसान ने कहा कि मेरा भी एक सवाल है .. अपने भाग्य से पूछकर उसका समाधान लेते आना … मेरे खेत में , मैं कितनी भी मेहनत कर लूँ . पैदावार अच्छी होती ही नहीं । मेरी शादी योग्य एक कन्या है, उसका विवाह इन परिस्थितियों में मैं कैसे कर पाऊंगा ?

मनहूस बोला — ठीक है । और आगे जाने पर वो एक राजा के घर मेहमान बना । रात्री भोज के उपरान्त राजा ने ये जानने पर कि वो अपने भाग्य को जगाने जा रहा है ,

 उससे कहा कि मेरी परेशानी का हल भी अपने भाग्य से पूछते आना । मेरी परेशानी ये है कि कितनी भी समझदारी से राज्य चलाऊं… मेरे राज्य में अराजकता का बोलबाला ही बना रहता है ।
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मनहूस ने उससे भी कहा — ठीक है । अब वो पर्वत के पास पहुँच चुका था । वहां पर उसने अपने सोये भाग्य को झिंझोड़ कर जगाया— उठो ! उठो ! मैं तुम्हें जगाने आया हूँ । उसके भाग्य ने एक अंगडाई ली और उसके साथ चल दिया ।

उसका भाग्य बोला — अब मैं तुम्हारे साथ हरदम रहूँगा ।
अब वो मनहूस न रह गया था बल्कि भाग्यशाली व्यक्ति बन गया था और अपने भाग्य की बदौलत वो सारे सवालों के जवाब जानता था ।
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वापसी यात्रा में वो उसी राजा का मेहमान बना और राजा की परेशानी का हल बताते हुए वो बोला — चूँकि तुम एक स्त्री हो और पुरुष वेश में रहकर राज – काज संभालती हो ,

इसीलिए राज्य में अराजकता का बोलबाला है । तुम किसी योग्य पुरुष के साथ विवाह कर लो , दोनों मिलकर राज्य भार संभालो तो तुम्हारे राज्य में शांति स्थापित हो जाएगी ।
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रानी बोली — तुम्हीं मुझ से ब्याह कर लो और यहीं रह जाओ ।
भाग्यशाली बन चुका वो मनहूस इन्कार करते हुए बोला — नहीं नहीं ! मेरा तो भाग्य जाग चुका है ।

 तुम किसी और से विवाह कर लो । तब रानी ने अपने मंत्री से विवाह किया और सुखपूर्वक राज्य चलाने लगी |
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कुछ दिन राजकीय मेहमान बनने के बाद उसने वहां से विदा ली ।
चलते चलते वो किसान के घर पहुंचा और उसके सवाल के जवाब में बताया कि तुम्हारे खेत में सात कलश हीरे जवाहरात के गड़े हैं

, उस खजाने को निकाल लेने पर तुम्हारी जमीन उपजाऊ हो जाएगी और उस धन से तुम अपनी बेटी का ब्याह भी धूमधाम से कर सकोगे ।

किसान ने अनुग्रहित होते हुए उससे कहा कि मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ , तुम ही मेरी बेटी के साथ ब्याह कर लो ।पर भाग्यशाली बन चुका वह व्यक्ति बोला कि नहीं !नहीं !

मेरा तो भाग्योदय हो चुका है , तुम कहीं और अपनी सुन्दर कन्या का विवाह करो । किसान ने उचित वर देखकर अपनी कन्या का विवाह किया और सुखपूर्वक रहने लगा ।
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कुछ दिन किसान की मेहमाननवाजी भोगने के बाद वो जंगल में पहुंचा और शेर से उसकी समस्या के समाधानस्वरुप कहा कि यदि तुम किसी बड़े मूर्ख को खा लोगे तो तुम्हारी ये क्षुधा शांत हो जाएगी ।

शेर ने उसकी बड़ी आवभगत की और यात्रा का पूरा हाल जाना । सारी बात पता चलने के बाद शेर ने कहा कि भाग्योदय होने के बाद इतने अच्छे और बड़े दो मौके गंवाने वाले ऐ इंसान ! तुझसे बड़ा मूर्ख और कौन होगा ?

तुझे खाकर ही मेरी भूख शांत होगी और इस तरह वो इंसान शेर का शिकार बनकर मृत्यु को प्राप्त हुआ ।
यदि आपके पास सही मौका परखने का विवेक और अवसर को पकड़ लेने का ज्ञान नहीं है तो भाग्य भी आपके साथ आकर आपका कुछ भला नहीं कर सकता है।

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*पति-पत्नी का प्रेम*

एक सेठ जी थे उनके घर में एक गरीब आदमी काम करता था, जिसका नाम था रामलाल.
जैसे ही रामलाल के फ़ोन की घंटी बजी रामलाल डर गया.  तब सेठ जी ने उससे पूछ ही लिया-
"रामलाल तुम अपनी बीबी से इतना क्यों डरते हो?"

"मैं डरता नहीं सर, बस उसकी कद्र करता हूँ, उसका सम्मान करता हूँ." उसने जबाव दिया.

सेठ हँसा और बोला- "ऐसा क्या है उसमें? ना सूरत अच्छी है और ना ही पढ़ी लिखी है."

जबाव मिला- "कोई फर्क नहीं पड़ता सर कि वह कैसी है। पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है."

"जोरू का गुलाम।" सेठ के मुँह से निकला।"क्या और सारे रिश्ते कोई मायने नहीं रखते तेरे लिए?" उसने पूछा.

उसने बहुत इत्मिनान से जबाव दिया-
"सर् जी माँ बाप रिश्तेदार नहीं होते वह तो भगवान होते हैं. उनसे रिश्ता नहीं निभाते उनकी पूजा करते हैं.

भाई बहन के रिश्ते जन्मजात होते हैं, दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का ही होता है.

आपका मेरा रिश्ता भी जरूरत और पैसे का है। पर पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिए हमारी हो जाती है, अपने माता-पिता के परिवार के सारे रिश्तों को पीछे छोड़कर हमारे हर सुख दुख की सहभागी बन जाती है, आखिरी साँस तक."

सेठ अचरज से उसकी बातें सुन रहा था.  वह आगे बोला-"सर जी, पत्नी अकेला रिश्ता नहीं है, बल्कि वह तो पूरी की पूरी रिश्तों का भण्डार है.

जब वह हमारी सेवा करती है, हमारी देखभाल करती है, हमसे दुलार करती है तब वह एक माँ जैसी होती है.

जब वह हमें जमाने के उतार चढ़ाव से आगाह करती है, और जब मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूँ क्योंकि जानता हूँ कि वह हर हाल में मेरे घर का भला करेगी तब वह पिता जैसी होती है.

जब हमारा ख्याल रखती है, हमसे लाड़ करती है, हमारी गलती पर डाँटती है, हमारे लिये खरीदारी करती है तब वह बहन जैसी होती है.

जब हमसे नयी-नयी फरमाईशें करती है, नखरे करती है, रूठती है, अपनी बात मनवाने की जिद करती है तब वह बेटी जैसी होती है.

जब हमसे सलाह करती है, मशवरा देती है ,परिवार चलाने के लिये नसीहतें देती है, झगडे़ करती है तब वह एक दोस्त जैसी होती है.

जब वह सारे घर का लेन देन, खरीददारी, घर चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो वह एक मालकिन जैसी होती है.

और जब वही सारी दुनिया को यहाँ तक कि अपने बच्चों को भी छोड़कर हमारी बाहों में आती है, तब वह पत्नी, प्रेमिका, प्रेयसी, अर्धांगिनी, हमारी प्राण और आत्मा होती है जो अपना सब कुछ सिर्फ हम पर न्योछावर करती है."

मैं उसकी इज्जत करता हूँ तो क्या गलत करता हूँ? सर."

उसकी बातें सुनकर सेठ जी के आखों में पानी आ गया.

इसे कहते है "पति-पत्नी" का प्रेम.
न कि जोरू का गुलाम!


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एक था भिखारी ! रेल  सफ़र  में  भीख़  माँगने  के दौरान  एक  सूट बूट  पहने  सेठ जी  उसे  दिखे। उसने सोचा  कि  यह  व्यक्ति  बहुत  अमीर लगता  है, इससे  भीख़  माँगने  पर यह  मुझे  जरूर  अच्छे  पैसे  देगा। वह उस  सेठ  से  भीख़  माँगने  लगा।

भिख़ारी  को  देखकर  उस  सेठ  ने कहा, “तुम  हमेशा  मांगते  ही  हो, क्या  कभी  किसी  को  कुछ  देते  भी हो ?”

भिख़ारी  बोला, “साहब  मैं  तो भिख़ारी  हूँ, हमेशा  लोगों  से  मांगता ही  रहता  हूँ, मेरी  इतनी  औकात कहाँ  कि  किसी  को  कुछ  दे  सकूँ ?”

सेठ:- जब  किसी  को  कुछ  दे  नहीं  सकते तो  तुम्हें  मांगने  का  भी  कोई  हक़ नहीं  है। मैं  एक  व्यापारी  हूँ  और लेन-देन  में  ही  विश्वास  करता  हूँ, अगर  तुम्हारे  पास  मुझे  कुछ  देने  को  हो  तभी  मैं  तुम्हे  बदले  में  कुछ दे  सकता  हूँ।

तभी  वह  स्टेशन  आ  गया  जहाँ  पर उस  सेठ  को  उतरना  था, वह  ट्रेन से  उतरा  और  चला  गया।

इधर  भिख़ारी  सेठ  की  कही  गई बात  के  बारे  में  सोचने  लगा। सेठ  के  द्वारा  कही  गयीं  बात  उस भिख़ारी  के  दिल  में  उतर  गई। वह सोचने  लगा  कि  शायद  मुझे  भीख में  अधिक  पैसा  इसीलिए  नहीं मिलता  क्योकि  मैं  उसके  बदले  में किसी  को  कुछ  दे  नहीं  पाता  हूँ। लेकिन  मैं  तो  भिखारी  हूँ, किसी  को कुछ  देने  लायक  भी  नहीं  हूँ।लेकिन कब  तक  मैं  लोगों  को  बिना  कुछ दिए  केवल  मांगता  ही  रहूँगा।

बहुत  सोचने  के  बाद  भिख़ारी  ने निर्णय  किया  कि  जो  भी  व्यक्ति  उसे भीख  देगा  तो  उसके  बदले  मे  वह भी  उस  व्यक्ति  को  कुछ  जरूर  देगा।
लेकिन  अब  उसके  दिमाग  में  यह प्रश्न  चल  रहा  था  कि  वह  खुद भिख़ारी  है  तो  भीख  के  बदले  में  वह  दूसरों  को  क्या  दे  सकता  है ?

इस  बात  को  सोचते  हुए  दिनभर गुजरा  लेकिन  उसे  अपने  प्रश्न का कोई  उत्तर  नहीं  मिला।

दुसरे  दिन  जब  वह  स्टेशन  के  पास बैठा  हुआ  था  तभी  उसकी  नजर कुछ  फूलों  पर  पड़ी  जो  स्टेशन  के आस-पास  के  पौधों  पर  खिल  रहे थे, उसने  सोचा, क्यों  न  मैं  लोगों को  भीख़  के  बदले  कुछ  फूल  दे दिया  करूँ। उसको  अपना  यह विचार  अच्छा  लगा  और  उसने  वहां से  कुछ  फूल  तोड़  लिए।

वह  ट्रेन  में  भीख  मांगने  पहुंचा। जब भी  कोई  उसे  भीख  देता  तो  उसके बदले  में  वह  भीख  देने  वाले  को कुछ  फूल  दे  देता। उन  फूलों  को लोग  खुश  होकर  अपने  पास  रख लेते  थे। अब  भिख़ारी  रोज  फूल तोड़ता  और  भीख  के  बदले  में  उन फूलों  को  लोगों  में  बांट  देता  था।

कुछ  ही  दिनों  में  उसने  महसूस किया  कि  अब  उसे  बहुत  अधिक लोग  भीख  देने  लगे  हैं। वह  स्टेशन के  पास  के  सभी  फूलों  को  तोड़ लाता  था। जब  तक  उसके  पास  फूल  रहते  थे  तब  तक  उसे  बहुत  से  लोग  भीख  देते  थे। लेकिन  जब फूल  बांटते  बांटते  ख़त्म  हो  जाते तो  उसे  भीख  भी  नहीं  मिलती थी,अब  रोज  ऐसा  ही  चलता  रहा ।

एक  दिन  जब  वह  भीख  मांग  रहा था  तो  उसने  देखा  कि  वही  सेठ  ट्रेन  में  बैठे  है  जिसकी  वजह  से  उसे  भीख  के  बदले  फूल  देने  की प्रेरणा  मिली  थी।

वह  तुरंत  उस  व्यक्ति  के  पास  पहुंच गया  और  भीख  मांगते  हुए  बोला, आज  मेरे  पास  आपको  देने  के  लिए कुछ  फूल  हैं, आप  मुझे  भीख  दीजिये  बदले  में  मैं  आपको  कुछ फूल  दूंगा।

शेठ  ने  उसे  भीख  के  रूप  में  कुछ पैसे  दे  दिए  और  भिख़ारी  ने  कुछ फूल  उसे  दे  दिए। उस  सेठ  को  यह बात  बहुत  पसंद  आयी।

सेठ:- वाह  क्या  बात  है..? आज  तुम  भी  मेरी  तरह  एक  व्यापारी  बन गए  हो, इतना  कहकर  फूल  लेकर वह  सेठ  स्टेशन  पर  उतर  गया।

लेकिन  उस  सेठ  द्वारा  कही  गई  बात  एक  बार  फिर  से  उस  भिख़ारी के  दिल  में  उतर  गई। वह  बार-बार उस  सेठ  के  द्वारा  कही  गई  बात  के बारे  में  सोचने  लगा  और  बहुत  खुश  होने  लगा। उसकी  आँखे  अब चमकने  लगीं, उसे  लगने  लगा  कि अब  उसके  हाथ  सफलता  की  वह 🔑चाबी  लग  गई  है  जिसके  द्वारा वह  अपने  जीवन  को  बदल  सकता है।

वह  तुरंत  ट्रेन  से  नीचे  उतरा  और उत्साहित  होकर  बहुत  तेज  आवाज में  ऊपर  आसमान  की  ओर  देखकर बोला, “मैं  भिखारी  नहीं  हूँ, मैं  तो एक  व्यापारी  हूँ..

मैं  भी  उस  सेठ  जैसा  बन  सकता हूँ.. मैं  भी  अमीर  बन  सकता  हूँ !

लोगों  ने  उसे  देखा  तो  सोचा  कि शायद  यह  भिख़ारी  पागल  हो  गया है, अगले  दिन  से  वह  भिख़ारी  उस स्टेशन  पर  फिर  कभी  नहीं  दिखा।

एक  वर्ष  बाद  इसी  स्टेशन  पर  दो व्यक्ति   सूट  बूट  पहने  हुए  यात्रा  कर  रहे  थे। दोनों  ने  एक  दूसरे  को देखा  तो  उनमे  से  एक  ने  दूसरे को हाथ  जोड़कर प्रणाम किया और  कहा, “क्या आपने  मुझे  पहचाना ?”

सेठ:- “नहीं तो ! शायद  हम  लोग पहली  बार  मिल  रहे  हैं।

भिखारी:- सेठ जी.. आप याद कीजिए, हम  पहली  बार  नहीं  बल्कि तीसरी  बार  मिल  रहे  हैं।

सेठ:- मुझे  याद  नहीं  आ  रहा, वैसे हम  पहले  दो  बार  कब  मिले  थे ?

अब  पहला  व्यक्ति  मुस्कुराया  और बोला:

हम  पहले  भी  दो  बार  इसी  ट्रेन में  मिले  थे, मैं  वही  भिख़ारी  हूँ जिसको  आपने  पहली  मुलाकात  में बताया  कि  मुझे  जीवन  में  क्या करना  चाहिए  और  दूसरी  मुलाकात में  बताया  कि  मैं  वास्तव  में  कौन  हूँ।

नतीजा यह निकला कि आज मैं  फूलों  का  एक  बहुत  बड़ा  व्यापारी  हूँ  और  इसी व्यापार  के  काम  से  दूसरे  शहर  जा रहा  हूँ।

आपने  मुझे  पहली  मुलाकात  में प्रकृति  का  नियम  बताया  था... जिसके  अनुसार  हमें  तभी  कुछ मिलता  है, जब  हम  कुछ  देते  हैं। लेन  देन  का  यह  नियम  वास्तव  में काम  करता  है, मैंने  यह  बहुत अच्छी  तरह  महसूस  किया  है, लेकिन  मैं  खुद  को  हमेशा  भिख़ारी ही  समझता  रहा, इससे  ऊपर उठकर  मैंने  कभी  सोचा  ही  नहीं  था और  जब  आपसे  मेरी  दूसरी मुलाकात  हुई  तब  आपने  मुझे बताया  कि  मैं  एक  व्यापारी  बन चुका  हूँ। अब  मैं  समझ  चुका  था  कि मैं  वास्तव  में  एक  भिखारी  नहीं बल्कि  व्यापारी  बन  चुका  हूँ।

भारतीय मनीषियों ने संभवतः इसीलिए स्वयं को जानने पर सबसे अधिक जोर दिया और फिर कहा -

सोऽहं .....शिवोहम !!

समझ की ही तो बात है...

भिखारी ने स्वयं को जब तक भिखारी समझा, वह भिखारी रहा | उसने स्वयं को व्यापारी मान लिया, व्यापारी बन गया |

जिस दिन हम समझ लेंगे कि मैं कौन हूँ...
फिर जानने समझने को रह ही क्या जाएगा ?

सादर




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