Saturday, October 20, 2018

Inspirational Short Stories



केवल एक दिन का पुण्य(क्यूं)

एकादशी से अगले दिन एक भिखारी  एक सज्जन की दुकान पर भीख मांगने पहुंचा। सज्जन व्यक्ति ने 1 रुपये का सिक्का निकाल कर उसे दे दिया।
भिखारी को प्यास भी लगी थी,वो बोला बाबूजी एक गिलास पानी भी पिलवा दो,गला सूखा जा रहा है। सज्जन व्यक्ति गुस्से में तुम्हारे बाप के नौकर बैठे हैं क्या हम यहां,पहले पैसे,अब पानी,थोड़ी देर में रोटी मांगेगा,चल भाग यहां से।

भिखारी बोला:-

बाबूजी गुस्सा मत कीजिये मैं आगे कहीं पानी पी लूंगा।पर जहां तक मुझे याद है,कल इसी दुकान के बाहर मीठे पानी की छबील लगी थी और आप स्वयं लोगों को रोक रोक कर जबरदस्ती अपने हाथों से गिलास पकड़ा रहे थे,मुझे भी कल आपके हाथों से दो गिलास शर्बत पीने को मिला था।मैंने तो यही सोचा था,आप बड़े धर्मात्मा आदमी है,पर आज मेरा भरम टूट गया।
कल की छबील तो शायद आपने लोगों को दिखाने के लिये लगाई थी।
मुझे आज आपने कड़वे वचन बोलकर अपना कल का सारा पुण्य खो दिया। मुझे माफ़ करना अगर मैं कुछ ज्यादा बोल गया हूँ तो।
सज्जन व्यक्ति को बात दिल पर लगी, उसकी नजरों के सामने बीते दिन का प्रत्येक दृश्य घूम गया। उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था। वह स्वयं अपनी गद्दी से उठा और अपने हाथों से गिलास में पानी भरकर उस बाबा को देते हुए उसे क्षमा प्रार्थना करने लगा।

भिखारी:-

बाबूजी मुझे आपसे कोई शिकायत नही,परन्तु अगर मानवता को अपने मन की गहराइयों में नही बसा सकते तो एक दो दिन किये हुए पुण्य व्यर्थ है।
मानवता का मतलब तो हमेशा शालीनता से मानव व जीव की सेवा करना है।
आपको अपनी गलती का अहसास हुआ,ये आपके व आपकी सन्तानों के लिये अच्छी बात है।
आप व आपका परिवार हमेशा स्वस्थ व दीर्घायु बना रहे ऐसी मैं कामना करता हूँ,यह कहते हुए भिखारी आगे बढ़ गया।

सेठ ने तुरंत अपने बेटे को आदेश देते हुए कहा:-

कल से दो घड़े पानी दुकान के आगे आने जाने वालों के लिये जरूर रखे हो।उसे अपनी गलती सुधारने पर बड़ी खुशी हो रही थी।

 *सिर्फ दिखावे के लिए किये  गए पुण्यकर्म निष्फल हैं, सदा हर प्राणी के लिए आपके मन में शुभकामना शुभ भावना हो यही सच्चा पुण्य है
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      "कोई आपके लिए अपने मन में क्या विचार रखता है, इसकी चिंता करना व्यर्थ व् मूर्खता है।
        किसी के दृष्टिकोण व् विचारों पर हमारा नियंत्रण नही है, किन्तु हमारे कार्य व् व्यवहार पर हमारा नियंत्रण है।
अतः अपना श्रेष्ठ करते रहें और शेष सब ईश्वर व् समय पर छोड़ दें।"

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"दृष्टिकोण" ...

ट्रेन में दो बच्चे यहाँ-वहाँ दौड़ रहे थे, कभी आपस में झगड़ जाते तो कभी किसी सीट के उपर कूदते।
पास ही बैठा पिता किन्हीं विचारों में खोया था। बीच-बीच में जब बच्चे उसकी ओर देखते तो वह एक स्नेहिल मुस्कान बच्चों पर डालता और फिर बच्चे उसी प्रकार अपनी शरारतों में व्यस्त हो जाते और पिता फिर उन्हें निहारने लगता।

ट्रेन के सहयात्री बच्चों की चंचलता से परेशान हो गए थे और पिता के रवैये से नाराज़। चूँकि रात्रि का समय था अतः सभी आराम करना चाहते थे। बच्चों की भागदौड़ को देखते हुए एक यात्री से रहा न गया और लगभग झल्लाते हुए बच्चों के पिता से बोल उठा-"कैसे पिता हैं आप ? बच्चे इतनी शैतानियां कर रहे हैं और आप उन्हें रोकते- टोकते नहीं, बल्कि मुस्कुराकर प्रोत्साहन दे रहे हैं। क्या आपका दायित्त्व नहीं कि आप इन्हें समझाएं???

उस सज्जन की शिकायत से अन्य यात्रियों ने राहत की साँस ली कि अब यह व्यक्ति लज्जित होगा और बच्चों को रोकेगा। परन्तु उस पिता ने कुछ क्षण रुक कर कहा कि-"कैसे समझाऊं बस यही सोच रहा हूं भाईसाहब"।

यात्री बोला-"मैं कुछ समझ नहीं"

व्यक्ति बोला-"मेरी पत्नी अपने मायके गई थी वहाँ एक दुर्घटना के चलते कल उसकी मौत हो गई। मैं बच्चों को उसके अंतिम दर्शनों के लिए ले जा रहा हूँ।और इसी उलझन में हूँ कि कैसे समझाऊं इन्हें कि अब ये अपनी मां को कभी देख नहीं पाएंगे।"

उसकी यह बात सुनकर जैसे सभी लोगों को साँप सूंघ गया। बोलना तो दूर सोचने तक का सामर्थ्य जाता रहा सभी का।
बच्चे यथावत शैतानियां कर रहे थे। अभी भी वे कंपार्टमेंट में दौड़ लगा रहे थे। वह व्यक्ति फिर मौन हो गया। वातावरण में कोई परिवर्तन न हुआ पर वे बच्चे अब उन यात्रियों को शैतान, अशिष्ट नहीं लग रहे थे बल्कि ऐसे नन्हें कोमल पुष्प लग रहे थे जिन पर सभी अपनी ममता उड़ेलना चाह रहे थे।

उनका पिता अब उन लोगों को लापरवाह इंसान नहीं वरन अपने जीवन साथी के विछोह से दुखी दो बच्चों का अकेला पिता और माता भी दिखाई दे रहा था।

कहने को तो यह एक कहानी है सत्य या असत्य। पर एक मूल बात यह अनुभूत हुई कि... आखिर क्षण भर में ही इतना परिवर्तन कैसे सभी के व्यवहार में आ गया।
क्योंकि उनकी दृष्टि में परिवर्तन आ चुका था।

हम सभी इसलिए उलझनों में हैं, क्यों कि हमने अपनी धारणाओं रूपी उलझनों का संसार अपने इर्द- गिर्द स्वयं रच लिया है।
मैं यह नहीं कहता कि किसी को परेशानी या तकलीफ नहीं है... पर क्या निराशा या नकारात्मक विचारों से हम उन परिस्थितियों को बदल सकते हैं?

नहीं ना ...

आवश्यकता है एक आशा, एक उत्साह से भरी सकारात्मक सोच की, फिर परिवर्तन तत्क्षण आपके भीतर आपको अनुभव होगा।
उस लहर में हताशा की मरुभूमि भी नंदन वन की भांति सुरभित हो उठेगी।

दोस्तों,
बदला जाय दृष्टिकोण तो इंसान बदल सकता है ...
दृष्टिकोण के परिवर्तन से सारा जहां बदल सकता है ...

साभार प्रस्तुति

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एक लड़का था. बहुत ब्रिलियंट था. सारी जिंदगी फर्स्ट आया. साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया. अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन हो गया IIT चेन्नई में. वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया. वहां से आगे की पढ़ाई पूरी की. M.Tech वगैरा कुछ किया होगा फिर उसने यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निआ से MBA किया.
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अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है. सुनते हैं कि वहां भी हमेशा टॉप ही किया. वहीं नौकरी करने लगा. बताया जाता है कि 5 बेडरूम का घर था उसके पास. शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हुई थी. बताते हैं कि ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे, कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में.
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अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इस से आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख, इसके बाद हीरो हेरोइने सुखपूर्वक वहां की साफ़ सुथरी सड़कों पर भ्रष्टाचार मुक्त माहौल में सुखपूर्वक विचरने लगे|

आप उस इंजिनियर लड़के का क्या फ्यूचर देखते हैं लाइफ में? सब बढ़िया ही दीखता है? पर नहीं, आज से तीन साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली. अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली. What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई.
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ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा justify किया अपने इस कदम को और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में. उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने study किया है. What went wrong?
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हुआ यूँ था कि अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी. बहुत दिन खाली बैठे रहे. नौकरियां ढूंढते रहे. फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पे आने की नौबत आ गयी. कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पे तेल भरा बताते हैं. साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर अंत में ख़ुदकुशी कर ली... ख़ुशी ख़ुशी और उसकी बीवी भी इसके लिए राज़ी हो गयी, ख़ुशी ख़ुशी. जी हाँ लिखा है उन्होंने कि हम सब लोग बहुत खुश हैं, कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा, सब कष्ट ख़तम हो जायेंगे.
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इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने : This man was programmed for success but he was not trained,how to handle failure. यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए.
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आइये ज़रा उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं. बहुत तेज़ था पढने में, हमेशा फर्स्ट ही आया. ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से. गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए. फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद, घूमना फिरना, लड़ाई झगडा, मार पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को,12 th कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर, वहां से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी. अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े बड़े targets.
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कमबख्त ये दुनिया , बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी, अलग से इम्तहान लेती है. आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे. वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता. ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है. और सवाल ,सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है. कोई डेट sheet नहीं.
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एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था. एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया. आगे जा कर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया. उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह. अभी थोडा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा. किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे. बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है. Mom, there is a jungle out there.
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*इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग अभी से अपने बच्चों को दीजिये*.।
साभार

Trained them and train yourself for struggle of life that not mentioned in school"s  sylbus ?

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*एक पढ़ने योग्य कहानी!*
*अवश्य पढ़ें......*
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एक *छोटे व्यापारी* ने *साहूकार* से *उधार* में रुपए लिए किंतु निर्धारित समय पर लौटा नहीं पाया। *साहूकार बूढा और बदसूरत* था लेकिन उस *व्यापारी की खूबसूरत, जवान बेटी* पर निगाह रखता था।
साहूकार ने व्यापारी से कहा कि, *अगर वो अपनी बेटी का विवाह उससे कर दे तो वह उधार की रकम ब्याज सहित भूल जाएगा।*

व्यापारी और उसकी बेटी, साहूकार के इस सौदे से परेशान हो उठे।

साहूकार, व्यापारी से बोला, *" मैं एक खाली थैली में एक सफ़ेद और एक काला कंकड़ रखता हूँ। तुम्हारी बेटी बिना देखे थैली से एक कंकड़ बाहर निकालेगी। अगर उसने काला कंकड़ निकाला तो उसे मुझसे विवाह करना होगा और तुम्हारा सारा कर्ज माफ कर दिया जाएगा।*
*अगर उसने सफ़ेद कंकड़ निकाला तो, उसे मुझसे शादी नहीं करनी पड़ेगी और तुम्हारा कर्ज भी माफ़ कर दिया जाएगा।*
*लेकिन अगर तुम्हारी बेटी थैली से कंकड़ निकालने से इन्कार करेगी तो मैं तुम्हें जेल भिजवा दूँगा। "*

*इस समय साहूकार, व्यापारी और उसकी बेटी, व्यापारी के बगीचे के उस रास्ते पर खड़े थे जिसपर सफ़ेद और काली मिक्स बजरी बिछी हुई थी।*
फिर सौदे के अनुसार साहूकार ने झुककर उस बिछी हुई बजरी में से दो कंकड़ उठाए और अपने हाँथ में पकड़ी हुई खाली थैली में उन्हें डाल दिया।
साहूकार जब कंकड़ उठा रहा था तब, बेटी ने अपनी तीखी नजरों से ये देख लिया कि, बेईमान साहूकार ने बजरी में से दोनों कंकड़ काले रंग के ही उठाए और थैली में डाले हैं।
फिर साहूकार ने लड़की से कहा कि, *वो थैली में से एक कंकड़ निकाले।*

तो, अगर आप उस लड़की की जगह होते तो, आप क्या करते ???
या अगर आप से कहा जाता कि, आप उस लड़की को सही सलाह दीजिए तो आप क्या सलाह देते ??

ध्यान से देखा जाए तो तीन संभावनाएँ हैं :
1. *लड़की कंकड़ निकालने से इन्कार कर देगी।*
2. *लड़की बोल देगी कि, साहूकार ने बेईमानी की है और दोनों काले कंकड़ ही थैली में डाले हैं।*
3. *लड़की एक काला कंकड़ निकाल कर अपनी जिंदगी से समझौता कर लेगी और अपने पिता को कर्ज और जेल से बचाएगी।*

इस कहानी में अच्छा-बुरा, दिल-दिमाग, होनी-अनहोनी की अजीबोगरीब जंग है।

फाइनली, लड़की ने थैली में अपना हाँथ डाला और एक कंकड़ निकाला।फिर बिना देखे उसे नीचे पड़ी हुई बजरी में फेंक दिया। थैली से निकला कंकड़ काली सफ़ेद बजरी में मिलकर खो गया, यानी पहचानना असंभव कि, लड़की ने कौनसा कंकड़ फेंका।
फिर लड़की बोली--- *" ओह, सॉरी! मैं भी कितनी बेवकूफ हूँ , बिना देखे ही कंकड़ फेंक दिया। चलो कोई बात नहीं, अभी एक कंकड़ तो थैली में है ना। उसे देखकर आप बता सकते हैं कि, मैंने किस रंग का कंकड़ थैली से निकाला था। अगर उसमे काला कंकड़ शेष है तो इसका मतलब मैंने सफ़ेद कंकड़ थैली में से निकाला था। "*

साहूकार अपनी चीटिंग के कारण जानता था कि, थैली में तो काला कंकड़ ही है, लेकिन अपनी बेईमानी वो कबूल कर नहीं सकता था। इस हिसाब से लड़की ने सफ़ेद कंकड़ ही थैली से निकाला, यह स्पष्ट था।
*साहूकार निराश हो गया और उसका चेहरा लटक गया। लड़की ने अपनी बुद्धिमानी से एक असम्भव सी विपरीत परिस्थिति को अपने हक़ में बदल डाला।*

MORAL OF THE STORY:

*समस्याओं का समाधान संभव है, बस आवश्यकता है, उनके बारे में अलग नजरिए से, अलग दृष्टि से, अलग प्रकार से, ठंडे दिमाग से सोचने की।*

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बहुत सुन्दर कथा

एक महिला रोज मंदिर जाती थी ! एक दिन उस महिला ने पुजारी से कहा अब मैं मंदिर नही आया करूँगी !

इस पर पुजारी ने पूछा -- क्यों ?

तब महिला बोली -- मैं देखती हूँ लोग मंदिर परिसर में अपने फोन से अपने व्यापार की बात करते हैं ! कुछ ने तो मंदिर को ही गपशप करने का स्थान चुन रखा है ! कुछ पूजा कम पाखंड,दिखावा ज्यादा करते हैं !

इस पर पुजारी कुछ देर तक चुप रहे फिर कहा -- सही है ! परंतु अपना अंतिम निर्णय लेने से पहले क्या आप मेरे कहने से कुछ कर सकती हैं !

महिला बोली -आप बताइए क्या करना है ?

पुजारी ने कहा -- एक गिलास पानी भर लीजिए और 2 बार मंदिर परिसर के अंदर परिक्रमा लगाइए । शर्त ये है कि गिलास का पानी गिरना नहीं चाहिये !

महिला बोली -- मैं ऐसा कर सकती हूँ !

फिर थोड़ी ही देर में उस महिला ने ऐसा ही कर दिखाया ! उसके बाद मंदिर के पुजारी ने महिला से 3 सवाल पूछे -

1.क्या आपने किसी को फोन पर बात करते देखा?

2.क्या आपने किसी को मंदिर में गपशप करते देखा?

3.क्या किसी को पाखंड करते देखा?

महिला बोली -- नहीं मैंने कुछ भी नहीं देखा !

फिर पुजारी बोले --- जब आप परिक्रमा लगा रही थीं तो आपका पूरा ध्यान गिलास पर था कि इसमें से पानी न गिर जाए इसलिए आपको कुछ दिखाई नहीं दिया|

 अब जब भी आप मंदिर आयें तो अपना ध्यान सिर्फ़ परम पिता परमात्मा में ही लगाना फिर आपको कुछ दिखाई नहीं देगा| सिर्फ भगवान ही सर्वत्र दिखाई देगें|

      '' जाकी रही भावना जैसी ..
        प्रभु मूरत देखी तिन तैसी|''

जीवन मे दुःखो के लिए कौन जिम्मेदार है ?

 👉🏻ना भगवान,
 👉🏻ना गृह-नक्षत्र,
 👉🏻ना भाग्य,
 👉🏻ना रिश्तेदार,
 👉🏻ना पडोसी,
 👉🏻ना सरकार,

जिम्मेदार आप स्वयं है|

1) आपका सरदर्द, फालतू विचार का परिणाम|

2) पेट दर्द, गलत खाने का परिणाम|

3) आपका कर्ज, जरूरत से ज्यादा खर्चे का परिणाम|

4) आपका दुर्बल /मोटा /बीमार शरीर, गलत जीवन शैली का परिणाम|

5) आपके कोर्ट केस, आप के अहंकार का परिणाम|

6) आपके फालतू विवाद, ज्यादा व् व्यर्थ बोलने का परिणाम|

            उपरोक्त कारणों के अलावा सैकड़ों कारण है और बेवजह दोषारोपण दूसरों पर करते रहते हैं | इसमें ईश्वर दोषी नहीं है|
अगर हम इन कष्टों के कारणों पर बारिकी से विचार करें तो पाएंगे की कहीं न कहीं हमारी मूर्खताएं ही इनके पीछे है|

आपका जीवन प्रकाशमय हो तथा शुभ हो|

शुभकामनायें


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यह भी नहीं रहने वाला* 

         एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था। एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका।
*आनंद ने साधू  की खूब सेवा की। दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया।*

साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की  - "भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे।"

       *साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - "अरे, महात्मा जी! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।" साधू आनंद  की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।*

      दो वर्ष बाद साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । साधू आनंद से मिलने गया।

*आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे । साधू कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"*

     आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "महाराज  आप क्यों दु:खी हो रहे है ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! यह भी नहीं रहने वाला।"

      *साधू मन ही मन सोचने लगा - "मैं तो केवल भेष से साधू  हूँ । सच्चा साधू तो तू ही है, आनंद।"*

      कुछ वर्ष बाद साधू फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद  तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है ।  मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद  नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया।

*साधू ने आनंद  से कहा - "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया ।   भगवान्  करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"*

    *यह सुनकर आनंद  फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "महाराज  ! अभी भी आपकी नादानी बनी हुई है।"*

  साधू ने पूछा - "क्या यह भी नहीं रहने वाला ?"

    *आनंद उत्तर दिया - "हाँ! या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा । कुछ भी रहने वाला नहीं  है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा की अंश आत्मा।"*

आनंद  की बात को साधू ने गौर से सुना और चला गया।

     *साधू कई साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद  का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद  का देहांत हो गया है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।*

*साधू कहता है - "अरे इन्सान! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता। तू सोचता है पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा। सच्चे इन्सान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं। मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते हैं, और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं।"*

 साधू कहने लगा - "धन्य है आनंद! तेरा सत्संग, और धन्य हैं तुम्हारे सतगुरु! मैं तो झूठा साधू हूँ, असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है। अब मैं तेरी तस्वीर देखना चाहता हूँ, कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं।"

  *साधू दूसरे कमरे में जाता है तो देखता है कि आनंद  ने अपनी तस्वीर  पर लिखवा रखा है - "आखिर में यह भी  नहीं रहेगा* ।"

*विचार करे*




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