Thursday, December 27, 2018

गहरी नींद के लिए पर्याप्त व्यायाम

*गहरी नींद के लिए पर्याप्त व्यायाम आवश्यक*

बहुत से लोग यह शिकायत करते पाये जाते हैं कि उनको रात में नींद नहीं आती और यदि आती भी है तो गहरी नींद नहीं आती, जिसके कारण उनके तन-मन को पूरा विश्राम नहीं मिलता और दिनभर वे थके-थके से रहते हैं।

इसका कारण यह है कि उनके शरीर को पर्याप्त थकान नहीं होती। गहरी नींद के लिए यह आवश्यक है कि यदि उनका कार्य शारीरिक परिश्रम का नहीं है तो वे व्यायाम करके शरीर को इतना अवश्य थका लें कि बिस्तर पर पड़ते ही उनको गहरी नींद आ जाये।

यदि किसी कारणवश आपको ऐसा लगता है कि किसी दिन बिस्तर पर जाते समय आपका शरीर विश्राम के लिए तत्पर नहीं है तो बिस्तर पर ही आप कुछ व्यायामों को करके गहरी नींद लाना सुनिश्चित कर सकते हैं। ये व्यायाम हैं- क्वीन, किंग, मत्स्य व्यायाम, और ब्रह्मचर्यासन।

यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि शयन करने जाने से दो-तीन घंटे पूर्व आपने सायंकालीन भोजन कर लिया हो और वह अधिकांशत: पच गया हो। यहाँ ये व्यायाम करने की विधि संक्षेप में बतायी जा रही है और वीडियो/चित्र भी दिये जा रहे हैं। ये व्यायाम इसी क्रम में करने चाहिए।

*क्वीन एक्सरसाइज़*

चित लेट जाइये। हाथों को कंधों की सीध में दोनों ओर फैला लीजिए। पैरों को सिकोड़कर घुटने ऊपर उठाकर मिला लीजिए। पैर जाँघ से सटे रहेंगे। अब दोनों घुटनों को एक साथ बायीं ओर ले जाकर जमीन पर रखिए और सिर को दायीं ओर घुमाकर ठोड़ी को कंधे से लगाइए। कुछ सेकण्ड इस स्थिति में रुककर घुटनों को घुमाते हुए दायीं ओर जमीन से लगाइए और सिर को घुमाते हुए ठोड़ी को बायें कंधे से लगाइए। इसतरह बारी-बारी से दोनों तरफ 10-10 बार कीजिए। यह मर्कटासन की प्रथम स्थिति है।

*किंग एक्सरसाइज*

चित लेट जाइये। हाथों को कंधों की सीध में दोनों ओर फैला लीजिए। पैरों को सिकोड़कर घुटने ऊपर उठा लीजिए और पैरों में एक-डेढ़ फीट का अन्तर दीजिए। अब दोनों पैरों को एक साथ बायीं ओर ले जाकर जमीन से लगाइए और सिर को दायीं ओर घुमाकर ठोड़ी को कंधे से लगाइए। इस स्थिति में दायें पैर का घुटना बायें पैर की एड़ी को छूते रहना चाहिए। कुछ सेकण्ड इस स्थिति में रुककर घुटनों को उठाकर घुमाते हुए दायीं ओर जमीन से लगाइए और सिर को घुमाते हुए ठोड़ी को बायें कंधे से लगाइए। इस स्थिति में बायें पैर का घुटना दायें पैर की एड़ी को छूते रहना चाहिए। इस प्रकार बारी-बारी से दोनों तरफ 10-10 बार कीजिए। यह मर्कटासन की द्वितीय स्थिति है।

*मत्स्य व्यायाम*

चित लेट जाइए। हाथ बग़ल में रहें। अब पैरों की एड़ियों के बिस्तर पर सरकाते हुए पूरा ऊपर उठाइए। इसके साथ ही हाथों को कोहनी से मोड़ते हुए ऊपर उठाइए और उँगलियों को कंधे से छुआइए। इसके बाद तुरंत ही पैरों और हाथों को नीचे लाते हुए पूर्व स्थिति में ले आइए। इस तरह लगातार कई बार करना है।

*ब्रह्मचर्यासन*

वज्रासन में बैठते हुए पैरों के पंजों को भीतर के बजाय बाहर की ओर मोड़कर बैठिए। चूतड़ ज़मीन पर टिके रहेंगे। इस स्थिति में एक-दो मिनट रहना पर्याप्त है।

सोने से तत्काल पहले इन व्यायामों को बिस्तर पर ही कर लेने से बहुत गहरी नींद आती है तथा अन्य कई लाभ होते हैं।

— *विजय कुमार सिंघल*
पौष कृ ५, सं २०७५ वि (२७ दिसम्बर २०१८)


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*पछतावा*

आस्ट्रेलिया की ब्रोनी वेयर कई वर्षों तक कोई meaningful काम तलाशती रहीं, लेकिन कोई शैक्षणिक योग्यता एवं अनुभव न होने के कारण बात नहीं बनी।
फिर उन्होंने एक हॉस्पिटल की Palliative Care Unit में काम करना शुरू किया। यह वो Unit होती है जिसमें Terminally ill या last stage वाले मरीजों को admit किया जाता है। यहाँ मृत्यु से जूझ रहे लाईलाज बीमारियों व असहनीय दर्द से पीड़ित मरीजों के मेडिकल डोज़ को धीरे-धीरे कम किया जाता है और काऊँसिलिंग के माध्यम से उनकी spiritual and faith healing की जाती है ताकि वे एक शांतिपूर्ण मृत्यु की ओर उन्मुख हो सकें।
ब्रोनी वेयर ने ब्रिटेन और मिडिल ईस्ट में कई वर्षों तक मरीजों की counselling करते हुए पाया कि मरते हुए लोगों को कोई न कोई पछतावा ज़रूर था।
कई सालों तक सैकड़ों मरीजों की काउंसलिंग करने के बाद ब्रोनी वेयर  ने मरते हुए मरीजों के सबसे बड़े 'पछतावे' या 'regret' में एक कॉमन पैटर्न पाया।
जैसा कि हम सब इस universal truth से वाकिफ़ हैं कि मरता हुआ व्यक्ति हमेशा सच बोलता है, उसकी कही एक-एक बात epiphany अर्थात 'ईश्वर की वाणी' जैसी होती है। मरते हुए मरीजों के इपिफ़नीज़ को  ब्रोनी वेयर ने 2009 में एक ब्लॉग के रूप में रिकॉर्ड किया। बाद में उन्होनें अपने निष्कर्षों को एक किताब “THE TOP FIVE REGRETS of the DYING" के रूम में publish किया। छपते ही यह विश्व की Best Selling Book साबित हुई और अब तक  लगभग 29 भाषाओं में छप चुकी है। पूरी दुनिया में इसे 10 लाख से भी ज़्यादा लोगों ने पढ़ा और प्रेरित हुए।

ब्रोनी द्वारा listed 'पाँच सबसे बड़े पछतावे' संक्षिप्त में ये हैं:

1) "काश मैं दूसरों के अनुसार न जीकर अपने अनुसार ज़िंदगी जीने की हिम्मत जुटा पाता!"

यह सबसे ज़्यादा कॉमन रिग्रेट था, इसमें यह भी शामिल था कि जब तक हम यह महसूस कर पाते हैं कि अच्छा स्वास्थ्य ही आज़ादी से जीने की राह देता है तब तक यह हाथ से निकल चुका होता है।

2) "काश मैंने इतनी कड़ी मेहनत न की होती"

ब्रोनी ने बताया कि उन्होंने जितने भी पुरुष मरीजों का उपचार किया लगभग सभी को यह पछतावा था कि उन्होंने अपने रिश्तों को समय न दे पाने की ग़लती मानी।
ज़्यादातर मरीजों को पछतावा था कि उन्होंने अपना अधिकतर जीवन अपने कार्य स्थल पर खर्च कर दिया!
उनमें से हर एक ने कहा कि वे थोड़ी कम कड़ी मेहनत करके अपने और अपनों के लिए समय निकाल सकते थे।

3) "काश मैं अपनी फ़ीलिंग्स का इज़हार करने की हिम्मत जुटा पाता"

ब्रोनी वेयर ने पाया कि बहुत सारे लोगों ने अपनी भावनाओं का केवल इसलिए गला घोंट दिया ताकि शाँति बनी रहे, परिणाम स्वरूप उनको औसत दर्ज़े का जीवन जीना पड़ा और वे जीवन में अपनी वास्तविक योग्यता के अनुसार जगह नहीं पा सके! इस बात की कड़वाहट और असंतोष के कारण उनको कई बीमारियाँ हो गयीं !

4) "काश मैं अपनों अपने दोस्तों के सम्पर्क में रहा होता"

ब्रोनी ने देखा कि अक्सर लोगों को मृत्यु के नज़दीक पहुँचने तक अपनों के प्यार और पुराने दोस्ती के पूरे फायदों का वास्तविक एहसास ही नहीं हुआ था !
अधिकतर तो अपनी ज़िन्दगी में इतने उलझ गये थे कि उनकी कई वर्ष पुरानी 'गोल्डन फ़्रेंडशिप' उनके हाथ से निकल गयी थी। उन्हें अपनी 'दोस्ती' को अपेक्षित समय और ज़ोर न देने का गहरा अफ़सोस था । हर कोई मरते वक्त अपने नज़दीकियों और दोस्तों को याद कर रहा था !

5) "काश मैं अपनी इच्छानुसार स्वयं को खुश रख पाता!!!"

आम आश्चर्य की यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात सामने आयी कि कई लोगों को जीवन के अन्त तक यह पता ही नहीं लगता है कि 'ख़ुशी' भी एक choice है!

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि-
'ख़ुशी वर्तमान पल में है'...
'Happiness Is Now'...

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*जीवन का एक लक्ष्य बनाइए*

अगर किसी व्यक्ति से यह पूछा जाये कि आप क्यों जीवित हैं, तो वह व्यक्ति हमसे अवश्य नाराज होगा और सम्भव है कि कुछ उल्टा-सीधा भी कह डाले। लेकिन यह सवाल पूरी तरह उचित है। अधिकांश व्यक्ति नहीं जानते कि वे क्यों जी रहे हैं। वे बस यही सोचते है कि उन्होंने मनुष्य के रूप में जन्म लिया है इसलिए जीवन के दिन काट रहे हैं।

लेकिन इस प्रकार लक्ष्यविहीन जीवन जीना मनुष्य के लिए उचित नहीं। आहार, निद्रा, भय, मैथुन ये सब तो पशु-पक्षियों में भी होता है। मनुष्य का जीवन इन सबसे ऊपर होना चाहिए, क्योंकि मनुष्य को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति कहा गया है।

इसलिए सार्थक जीवन जीने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन का एक उद्देश्य निश्चित करें और यथासम्भव उस लक्ष्य की प्राप्ति का उद्योग करते रहें। ऐसा लक्ष्य कोई बहुत बडा या लम्बा चौड़ा हो यह भी कोई आवश्यक नहीं है। अपनी क्षमता और रुचि के अनुसार हमें अपना लक्ष्य निश्चित करना चाहिए, चाहे वह छोटा-सा ही हो।

बहुत से लोग धन-सम्पत्ति कमाने या परिवार बढाने को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लेते हैं। यह उन लोगों से तो अच्छा है जिनका कोई लक्ष्य नहीं है, लेकिन यह समाज के लिए बहुत उपयोगी नहीं होता। ऐसे लोग अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति को खोकर केवल इसी निरर्थक लक्ष्य की पूर्ति में लगे रहते हैं।

अत: हमारे जीवन का लक्ष्य ऐसा होना चाहिए कि वह हमारे लिए तो आनन्ददायक हो ही, समाज के लिए भी उपयोगी हो। समाज के किसी वर्ग की सेवा करना ऐसा सार्थक लक्ष्य कहा जा सकता है। अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार हमें समाज का वह वर्ग चुन लेना चाहिए जिसकी हम नि:स्वार्थ सेवा करके अपना जीवन सफल कर सकते हैं।

लक्ष्यविहीन जीवन नीरस होता है। नीरसता से अन्त में ऊब पैदा होती है और मानसिक तनाव, अवसाद आदि व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनकी परिणिति कई बार आत्महत्या जैसी घटनाओं में होती देखी जाती है। इसलिए हमें नीरसता से बचना चाहिए।

जीवन को नीरस होने से बचाने का एक सरल उपाय यह हो सकता है कि हम सप्ताह में कम से कम एक दिन अपने घर से बाहर निकलकर समाज में जायें। यदि कहीं बाहर जाने की सुविधा और समय न हो तो अपने घर से कुछ ही किलोमीटर दूर अपने शहर के ही किसी बडे पार्क या पिकनिक स्पॉट या मन्दिर आदि में जाकर कुछ घंटे गुज़ारें और वहाँ प्रकृति का आनन्द लें।

जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं वे अस्पताल, अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम, विद्यालय, मन्दिर, गुरुद्वारा, मलिन बस्ती आदि में सप्ताह में एक-दो बार जाकर कुछ न कुछ सार्थक कार्य कर सकते हैं जिससे उनकी आत्मा को असीम शांति का अनुभव होगा और जीवन सार्थक बनेगा।

— *विजय कुमार सिंघल*
पौष कृ २, सं २०७५ वि (२४ दिसम्बर २०१८)

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