Thursday, April 25, 2019

Natural Treatment to Cure

*खराब गुर्दों का प्राकृतिक उपचार*

मैं अपने पिछले लेख में लिख चुका हूँ कि यदि किसी व्यक्ति के गुर्दे अांशिक रूप से खराब हो गये हैं, तो उसके घरवाले ऐलोपैथिक डॉक्टरों के कहने से यह मान लेते हैं कि अब डायलाइसिस कराने और आगे चलकर गुर्दा बदलवाने के अलावा कोई उपाय नहीं है। परन्तु यह धारणा पूरी तरह गलत है।

मेरा यह सुनिश्चित विचार है कि उचित प्राकृतिक चिकित्सा से गुर्दों का खराब होना न केवल रोका जा सकता है बल्कि उनको ठीक भी किया जा सकता है। यहाँ तक कि यदि डायलाइसिस भी शुरू हो चुका हो तो भी गुर्दों को किसी दवा के बिना केवल प्राकृतिक उपचार से सही किया जा सकता है। शर्त केवल यह है कि रोगी को निष्ठापूर्वक प्राकृतिक उपचार चलाना चाहिए और सभी आवश्यक परहेज करने चाहिए।

गुर्दा रोगी डॉक्टरों के कहने पर सबसे बडी ग़लती यह करते हैं कि वे पानी पीना बहुत कम कर देते हैं। मेरे एक चचेरे भाई इस रोग से पीड़ित थे। जाने किसके कहने पर वे सुबह एक साथ एक लीटर पानी पीते थे, फिर दिन भर बिल्कुल भी पानी नहीं पीते थे, जबकि चाय दो बार पी जाते थे।

मैंने उन्हें कई बार समझाया कि यह गलत है, आपको दिनभर थोडा-थोडा पानी पीना चाहिए, पर उन्होंने मेरी बात नहीं मानी। परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे उनके गुर्दे पूरी तरह खराब हो गये। फिर एक गुर्दा बदलवाया गया, जो पाँच साल में बेकार हो गया और अंतत: भाईसाहब को अपने प्राण त्यागने पड़े। लगभग सभी गुर्दापीडित यही ग़लती करते हैं।

यदि इतनी बात समझ में आ गयी तो खराब गुर्दों का उपचार किया जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले तो उन्हें अपना आहार सुधारना चाहिए। सभी बाज़ारू चीज़ें बन्द करके बिना मिर्च मसाले का और बहुत कम सेंधा नमक डालकर घर का बना हुआ शुद्ध सात्विक शाकाहारी भोजन करना चाहिए। चाय कॉफी जैसी चीज़ें भी एकदम बन्द रखें।

इसके अलावा उनको सारे दिन लगभग 200 ग्राम पानी हर घंटे पर पीना चाहिए। इससे दिनभर में ढाई लीटर जल हो जाएगा जो गुर्दों को सक्रिय रखने और रक्त को छानने की क्रिया चलाने के लिए पर्याप्त है। यह ध्यान रहे कि जितनी बार वे पानी पियें उतनी ही बार उनको मूत्र विसर्जन करना चाहिए और इसमें बिल्कुल ज़ोर नहीं लगाना चाहिए।

जो व्यक्ति डायलाइसिस पर रहते हैं और उनके गुर्दे पूरी तरह खराब नहीं हुए हैं, वे भी पानी की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाकर अपने खराब गुर्दों को सक्रिय कर सकते हैं और कुछ ही दिनों में डायलाइसिस से छुटकारा पा सकते हैं।

इसके अलावा पीड़ित व्यक्ति को नित्य प्रात: और सायं 5-5 मिनट का कटिस्नान लेकर अपनी शक्ति के अनुसार टहलना चाहिए और शुद्ध वायु में दस मिनट कपालभाति और अनुलोम-विलोम प्राणायाम भी करने चाहिए। गुर्दों को स्वस्थ करने में इनसे बहुत सहायता मिलती है।

— *विजय कुमार सिंघल*
वैशाख कृ 6, सं 2076 वि (25 अप्रैल 2019)

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*शालीन वृद्धावस्था*
                      (भाग ३)

इस लेखमाला के भाग २ में हमने जीवनशैली के कुछ ऐसे मौलिक कारकों की चर्चा की, जो स्वस्थ वृद्धावस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अब हम इन मौलिक कारकों के व्यावहारिक पहलू पर ध्यान केन्द्रित करेंगे।

सक्रिय रहें

नित्य प्रात:काल या सायंकाल घूमने जाने में संकोच न करें, भले ही आप अपने पैरों पर स्थिर न रह पाते हों, घुटने की कैप (knee cap) लगाते हों और छड़ी के सहारे चलते हों। टहलने से सरल और स्वाभाविक रूप से शरीर के सभी अंगों को मज़बूती मिलती है। पैरों की माँसपेशियों को मज़बूत करने तथा जोड़ों और घुटनों पर कम दबाब डालने के लिए प्रतिदिन १०-१५ मिनट तक खड़ी हुई साइकिल चलाना न भूलें।

अपनी उम्र और स्वास्थ्य की हालत के अनुसार दैनिक योगाभ्यास अवश्य करें। इससे न केवल आपको शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय रहने में सहायता मिलेगी, बल्कि आपका भावनात्मक संतुलन भी बना रहेगा।

रोज ५ से १० मिनट तक तालियाँ भी बजाइए, क्योंकि यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध किया जा चुका है कि मनुष्य की बहुत सी बीमारियों के उपचार में ताली बजाना बहुत प्रभावी है। तालियाँ बजाने से हथेली पर बने हमारे लगभग सभी अंगों के ३९ एक्यूप्रेशर बिन्दु सक्रिय हो जाते हैं और इससे स्वास्थ्य धीरे-धीरे किन्तु प्रभावी रूप से सुधर जाता है। पाचनशक्ति की कमी, पीठ, गर्दन और जोड़ों के दर्द, गठिया, कम रक्तचाप, हृदय और फेंफड़ों की बीमारियों के उपचार तथा रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में तालियाँ बजाना बहुत प्रभावशाली है।

देर तक बैठने से बचने के लिए बीच-बीच में खड़े हो जाना चाहिए और अपनी पीठ को सीधी करके थोड़ा सा टहलना चाहिए। कभी भी अपनी हास्य की दवा को मत भूलिए। हँसी का अवसर आने पर अवश्य हँसना चाहिए। ऐसी छोटी-छोटी गतिविधियों से आपकी जीवन यात्रा सुगम और आनन्ददायक हो जाएगी।

धूम्रपान मत कीजिए और मद्यपान में संयम रखिए

विश्व स्वास्थ्य संघ (WHO) तम्बाकू को ऐसी मौतों का अकेला सबसे बड़ा कारण बताता है जिससे बचा जा सकता है। धूम्रपान शरीर के लगभग सभी अंगों को हानि पहुँचाता है और सम्पूर्ण स्वास्थ्य को बिगाड़ देता है। धूम्रपान के कुप्रभावों को पलटने में कभी भी देरी नहीं होती। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि जो लोग ६० या अधिक उम्र में भी धूम्रपान करना छोड़ देते हैं वे धूम्रपान जारी रखने वालों की तुलना में अधिक समय तक जीते हैं।

मद्यपान पर विशेषज्ञों की संस्तुतियों के आधार पर हमने भाग २ में लिखा था कि "एलकोहल सेवन को कड़ाई से संयमित करके हम अपने सकल स्वास्थ्य को सुधार सकते हैं।" हमारे एक अनुभवी मित्र ने इन विचारों पर आपत्ति की है और उनकी आपत्ति के कारण हमने इस विषय का गहराई से अध्ययन किया है। इस जटिल मामले में खोज करने पर यह पता चला कि विशेषज्ञों के विचार इस विषय पर अलग-अलग हैं।

अत: हम इस परिणाम पर पहुँचे हैं कि इस बात को प्रत्येक व्यक्ति की अपनी पसन्द और रुचि पर छोड़ देना चाहिए। इसके साथ-साथ हम यह सुझाव भी देते हैं कि जहाँ तक सम्भव हो हमें अल्कोहल के सेवन से दूर रहना चाहिए, क्योंकि इसमें संयम बनाये रखना भी बहुत कठिन कार्य है।

कृपया इस विषय पर अपने विचार प्रकट करने में न हिचहिकायें, क्योंकि इससे निश्चित रूप से अन्य को सहायता मिलेगी।

जीवनशैली के अन्य कारकों पर हम आगामी कड़ियों में विचार करेंगे।

-- जगमोहन गौतम

(मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद- विजय कुमार सिंघल)

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शालीन वृद्धावस्था
                     (भाग २)

इस श्रृंखला के भाग १ का सार यह था कि स्वस्थ वृद्धावस्था किसी व्यक्ति की जीवनशैली पर निर्भर करती है। विभिन्न प्रकार की जीवनशैलियों का हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए हम अच्छी आदतें और रुचियाँ विकसित करके अपने स्वास्थ्य को नियंत्रित कर सकते हैं।

हमारी परिस्थितियों के लिए अनुकूल आदर्श जीवन शैली की चर्चा करने से पहले यह अधिक उचित होगा कि हम इसके विभिन्न कारकों की चर्चा कर लें।

*सक्रिय रहें*- दैनिक शारीरिक क्रियाकलाप आपके जीवन और जीवन-काल को बहुत सीमा तक सुधार या बढ़ा सकते हैं। इसके लिए अपनी दैनिक क्रियाओं को बढ़ाने का प्रयास कीजिए, जैसे सीढ़ियाँ चढ़ना और उतरना, अपनी गाड़ी को कुछ दूर पार्क करना, थोड़ी दूरी के लिए कोई वाहन न लेकर पैदल ही चलना आदि।

*उचित आहार*- अपनी परिस्थितियों के अनुसार खाने-पीने की स्वास्थ्यप्रद वस्तुओं में रुचि रखने से आपको जोखिम कम करने में सहायता मिलती है। अपने आहार में प्रचुर रेशों वाले साबुत अन्न को शामिल करें, तथा मौसमी ताज़े फल और सब्ज़ियाँ भरपूर मात्रा में खायें। अपने आहार में स्थानीय रूप से उगायी गयी स्वस्थ असंतृप्त (unsaturated) वसा वाली वस्तुओं को प्रमुखता दें।

*धूम्रपान न करें और मद्यपान में संयम रखें-* धूम्रपान ऐसी मौतों का प्रमुख कारण है जिनको रोका जा सकता है। यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसको बंद करके आप अपने स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक सकारात्मक कार्य करेंगे। मद्यपान को बहुत संयमित करके भी आप अपने सम्पूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं।

*तनाव प्रबंधन करें-* मानसिक स्वास्थ्य पर तनाव का बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यद्यपि हम तनाव से पूरी तरह नहीं बच सकते, लेकिन इससे भली प्रकार निबटना सीखकर आप स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को रोक सकते हैं। इसलिए प्रभावी तनाव प्रबंधन स्वस्थ वृद्धावस्था की एक और कुंजी (key) है।

*पर्याप्त नींद लें-* सोने के लिए पर्याप्त समय निकालना स्वस्थ जीवनशैली का एक अहम अंग है। आपके लिए कितने घंटे की नींद पर्याप्त है यह आप अपने अनुभव से तय कर सकते हैं। कितने समय तक सोने पर आपको कैसा अनुभव होता है इस आधार पर अपने सोने का समय निर्धारित करें। आपको उतने घंटे अवश्य सोना चाहिए कि उठने पर आप स्वयं को तरोताज़ा अनुभव करें।

ये जीवनशैली के कुछ ऐसे कारक हैं जो स्वास्थ्य को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। अगले भागों में हम इनके व्यावहारिक पहलुओं पर चर्चा करेंगे, ताकि उनको अपने जीवन में अपनाकर हम शालीनता से वृद्धावस्था बिता सकें।

-- *जगमोहन गौतम*

*(मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद- विजय कुमार सिंघल)*

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[4/21, 11:11] Vijay Singhal: *सभी बीमारियों की माता है कब्ज*

आकस्मिक दुर्घटनाओं को छोड़कर सभी रोगों की माता पेट की खराबी कब्ज है। इसमें मलनिष्कासक अंग कमजोर हो जाने के कारण शरीर से मल पूरी तरह नहीं निकलता और आँतों में चिपककर एकत्र होता रहता है। अधिक दिनों तक पड़े रहने से वह सड़ता रहता है और तरह-तरह की शिकायतें पैदा करता है तथा बड़ी बीमारियों की भूमिका बनाता है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में सबसे पहले कब्ज की ही चिकित्सा की जाती है। एक बार कब्ज कट जाने पर रोगी का स्वस्थ होना मामूली बात रह जाती है।

कई लोग कहते हैं कि हमें कब्ज नहीं है, क्योंकि हमारा पेट रोज खूब साफ हो जाता है। वे लोग गलती पर हैं, क्योंकि रोज शौच होते रहने पर भी कब्ज हो सकता है। इसे यों समझिये कि घर में हम रोज झाड़ू लगाते हैं और काफी कूड़ा निकालकर फेंकते हैं। फिर भी होली-दिवाली सफाई करने पर घर में बहुत कूड़ा निकलता है। कब्ज भी इसी प्रकार होता है।

कब्ज की प्राकृतिक चिकित्सा है- मिट्टी की पट्टी, एनीमा और कटिस्नान। पहले आधा घंटा पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखें, फिर गुनगुने पानी का एनीमा लें और अन्त में 5 मिनट का कटिस्नान ले लें। इससे कब्ज में काफी आराम मिलेगा। जिनका कब्ज बहुत पुराना हो, उन्हें प्रारम्भ में इन क्रियाओं के साथ दो-तीन दिन उपवास भी करना चाहिए।

कई बार हफ्तों तक उपवास करने और रोज एनीमा लेते रहने पर भी कड़ा और सड़ा हुआ काला-काला बदबूदार मल निकलता ही जाता है। ऐसे लोगों को उपवास और एनीमा तब तक करते रहना चाहिए, जब तक कि पुराना मल निकलना बन्द न हो जाये। उसके बाद सभी प्रकार के रोग समाप्त हो जाते हैं।

कब्ज पाचन शक्ति को बहुत कमजोर कर देता है और सब कुछ खाते रहने पर भी व्यक्ति कमजोर ही रहता है। ऐसी स्थिति में पाचन शक्ति को मजबूत करने के लिए हर तीन दिन बाद पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखने के बजाय गर्म पानी की पट्टी रखकर उसकी सिकाई करनी चाहिए। फिर रोज की तरह एनीमा और कटिस्नान लेना चाहिए।

एक बार क़ब्ज़ कट जाने के बाद भी कभी भी क़ब्ज़ हो सकता है यदि आपका खानपान सात्विक नहीं है। भविष्य में कब्ज न हो, इसके लिए खान-पान में सुधार करना आवश्यक है। उन वस्तुओं से बचना चाहिए जिनके कारण कब्ज हुआ था। यदि सप्ताह में एक दिन या एक बार उपवास कर लिया जाय और उस दिन प्रातः काल एनीमा भी ले लिया जाये, तो कभी कब्ज होने का प्रश्न ही नहीं उठता। प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में पानी भी पीना चाहिए।

-- *विजय कुमार सिंघल*
भाद्रपद कृ १२, सं २०७३ वि (२९ अगस्त २०१६)
[4/21, 11:23] Vijay Singhal: *आलोक*- जिनके पास मिट्टी की पट्टी, एनिमा और कटिस्नान लेने की सुविधा न हो, वे सुबह खाली पेट सरल विधि से ठंडा कटिस्नान लेकर और उसके बाद दो-तीन किलोमीटर तेज चाल से टहलकर अपना कब्ज कुछ ही दिनों में दूर कर सकते हैं।
कटिस्नान की सरल विधि नीचे बतायी गयी है।
[4/21, 11:24] Vijay Singhal: *कटिस्नान की सरल विधि*

1. एक बाल्टी में खूब ठंडा पानी भर लीजिए। आवश्यक होने पर बर्फ़ मिला लीजिए।
2. अब बाथरूम में जांघिया उतारकर दीवाल के सहारे बैठ जाइए, घुटने उठा लीजिए और बाल्टी को घुटनों के बीच में रख लीजिए।
3. अब एक मग या लोटे से पानी भर भरकर पेडू (पेट का नाभि से नीचे का आधा भाग) पर दायें से बायें और बायें से दायें धार बनाकर डालिए।
4. इस तरह पूरी बाल्टी खाली कर दीजिये।
5. अंत में पेडू को पोंछकर उठ जाइये और कपड़े पहन लीजिए।


शालीन वृद्धावस्था
                     (भाग २)

इस श्रृंखला के भाग १ का सार यह था कि स्वस्थ वृद्धावस्था किसी व्यक्ति की जीवनशैली पर निर्भर करती है। विभिन्न प्रकार की जीवनशैलियों का हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए हम अच्छी आदतें और रुचियाँ विकसित करके अपने स्वास्थ्य को नियंत्रित कर सकते हैं।

हमारी परिस्थितियों के लिए अनुकूल आदर्श जीवन शैली की चर्चा करने से पहले यह अधिक उचित होगा कि हम इसके विभिन्न कारकों की चर्चा कर लें।

*सक्रिय रहें*- दैनिक शारीरिक क्रियाकलाप आपके जीवन और जीवन-काल को बहुत सीमा तक सुधार या बढ़ा सकते हैं। इसके लिए अपनी दैनिक क्रियाओं को बढ़ाने का प्रयास कीजिए, जैसे सीढ़ियाँ चढ़ना और उतरना, अपनी गाड़ी को कुछ दूर पार्क करना, थोड़ी दूरी के लिए कोई वाहन न लेकर पैदल ही चलना आदि।

*उचित आहार*- अपनी परिस्थितियों के अनुसार खाने-पीने की स्वास्थ्यप्रद वस्तुओं में रुचि रखने से आपको जोखिम कम करने में सहायता मिलती है। अपने आहार में प्रचुर रेशों वाले साबुत अन्न को शामिल करें, तथा मौसमी ताज़े फल और सब्ज़ियाँ भरपूर मात्रा में खायें। अपने आहार में स्थानीय रूप से उगायी गयी स्वस्थ असंतृप्त (unsaturated) वसा वाली वस्तुओं को प्रमुखता दें।

*धूम्रपान न करें और मद्यपान में संयम रखें-* धूम्रपान ऐसी मौतों का प्रमुख कारण है जिनको रोका जा सकता है। यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसको बंद करके आप अपने स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक सकारात्मक कार्य करेंगे। मद्यपान को बहुत संयमित करके भी आप अपने सम्पूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं।

*तनाव प्रबंधन करें-* मानसिक स्वास्थ्य पर तनाव का बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यद्यपि हम तनाव से पूरी तरह नहीं बच सकते, लेकिन इससे भली प्रकार निबटना सीखकर आप स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को रोक सकते हैं। इसलिए प्रभावी तनाव प्रबंधन स्वस्थ वृद्धावस्था की एक और कुंजी (key) है।

*पर्याप्त नींद लें-* सोने के लिए पर्याप्त समय निकालना स्वस्थ जीवनशैली का एक अहम अंग है। आपके लिए कितने घंटे की नींद पर्याप्त है यह आप अपने अनुभव से तय कर सकते हैं। कितने समय तक सोने पर आपको कैसा अनुभव होता है इस आधार पर अपने सोने का समय निर्धारित करें। आपको उतने घंटे अवश्य सोना चाहिए कि उठने पर आप स्वयं को तरोताज़ा अनुभव करें।

ये जीवनशैली के कुछ ऐसे कारक हैं जो स्वास्थ्य को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। अगले भागों में हम इनके व्यावहारिक पहलुओं पर चर्चा करेंगे, ताकि उनको अपने जीवन में अपनाकर हम शालीनता से वृद्धावस्था बिता सकें।

-- *जगमोहन गौतम*

*(मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद- विजय कुमार सिंघल)*

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