Tuesday, May 14, 2019

जल कैसे/कब एवम कोनसा व कितना पियें

*शालीन वृद्धावस्था*
 (भाग ६ख)

*जल कैसे/कब एवम कोनसा व कितना पियें*

हमने इस धारावाहिक श्रंखला के भाग ६ क में लिखा था कि “खाने को पीओ एवम जल को खाओ”। जल पीने की विधि किसी भी व्यक्ति का जीवन बहुत कुछ बदल सकती है। हमारे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में जल को औषिधि के रूप में लिया गया है इसके पीने की विधि को भी बहुत गम्भीरता से लिया गया है, इसलिए हम  "जल कैसे /  कोनसा एवम कितना पियें"  की महत्वपूर्ण बातों को क्रम संख्या डालकर प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे भारतीय परिस्थितियों में जल पीने के  निम्न नियमों का पालन करते हुए हम स्वस्थ जीवन व्यतीत करते रहें।

*1.* जब भी आपको जल पीने हो तब जिस तरह आप भोजन के लिए बैठते हैं, उसी तरह जल पीने के लिए सबसे पहले बैठ जाइए।

*2.* पूरे गिलास के जल को एक बार में गट गट करके न पीयें अपितु छोटे छोटे घूँट में सिप करते हुए पीजिए। एक घूँट पीने के बाद साँस लेने के लिए रुकिए।

*3.* दिन भर इसी तरह थोड़े थोड़े अंतराल पर जल पीते रहें। यदि आप एक साथ ढेर सारा जल गटक लेंगे, तो आपका शरीर उसे पूरी तरह हजम नहीं कर पाएगा।

*4.* कमरे के तापमान वाला जल पीजिए। गुनगुना जल और भी अच्छा है। लेकिन ठंडा, फ्रिज और बर्फ़ का जल पीना उचित नहीं, क्योंकि यह जठराग्नि को मंद कर देता है।

*5.* भोजन के साथ बहुत कम मात्रा में जल पीजिए। वह भी भोजन करते समय गला साफ करने के लिए या अन्न बदलने के लिए। उदाहरण के लिए, जब आप रोटी खाने के बाद चावल खाने जा रहे हैं, तब एक दो घूंट जल पी सकते हैं। यदि आप भोजन के साथ बहुत अधिक जल पियेंगे, तो आपके पेट में पाचन क्रिया सही रूप में चलाने के लिए जगह नहीं बचेगी। यह नियम हमेशा याद रखिए- अपने पेट को आधा खाने से भरिये, चौथाई पानी से और शेष चौथाई को पाचक रसों और प्रक्रिया के लिए छोड दीजिए।

*6.*  भोजन से पहले या बाद में अधिक जल मत पीजिए। लेकिन भोजन से ४५ मिनट पहले और ४५ मिनट बाद जल अवश्य पीजिए, जैसा कि भाग ५ में बताया जा चुका है।

*7.* प्यास लगने पर जल अवश्य पीजिए। प्यास एक प्राकृतिक संकेत है, जिसका सम्मान आपको करना चाहिए। इसका अर्थ होता है कि आपके शरीर को जल की आवश्यकता है।

*8.* आपका मूत्र भी संकेत देता है कि आप पर्याप्त जल पी रहे हैं या नहीं। आपके मूत्र का रंग साफ और हल्का पीला होना चाहिए। यदि इस
का रंग गहरा पीला है तो आपको अधिक जल पीने की आवश्यकता है।

*9.* आपके होंठ एक अन्य संकेतक हैं। यदि वे सूखे हैं तो आपके शरीर में जल की कमी हो सकती है।

*10.* पिछले दो दशकों में वातानुकूलन के व्यापक उपयोग के कारण पानी पीने की आदत में उल्लेखनीय बदलाव आया है। आजकल लोग २०-३० वर्ष पहले की अपेक्षा कम जल पीते या उपभोग करते हैं, जिससे रोगों में वृद्धि हुई है। हमारी सलाह है कि वातानुकूलन की समस्या होने पर कुछ शारीरिक व्यायाम अवश्य करने चाहिए, जिससे प्यास अधिक लगेगी। यदि आप एयरकंडीशन्ड कमरे में अधिक समय गुज़ारते हैं, तो आपको पर्याप्त जल पीने के बारे में जागरूक रहना चाहिए एवं थोड़े-थोड़े समय पश्चात् जल अवश्य पीते रहना चाहिए।
*11* आयुर्वेद में जल को पांच महाभूतों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है। यदि एक और ठंडे पानी का सेवन, पित्त की अधिकता, जलन, उल्टी होना एवं थकावट के लिए अमृत समान है तो वहीं यह जुकाम, दमा, खांसी, हिचकी एवम घी, तेल से बने पदार्थो के उपयोग के पश्चात विपरीत स्थितियां पैदा करता है। गर्म जल हल्का होने के कारण पाचन सम्बन्धी रोगों को दूर करता हैं।
*12* रोजाना सुबह खाली पेट पानी पीना सेहत के लिए बहुत लाभकारी है। इससे शरीर की झुर्रियाँ, सफेद बाल, गला बैठना, बिगड़ा जुकाम, दमा, कब्ज तथा सूजन जैसे रोगों में आराम मिलता है।यही वह समय है तब एक बार में अधिक जल पीया जा सकता है।
*13* निरन्तर प्रदूषण बढ़ने के कारण प्रत्येक प्रकार का जल यथा बरसात, कुएं, हैंड पाइप, नदी, झील, तालाब एवम सरकारी सप्लाई के जल भी स्वास्थ के लिए हानिप्रद हो रहे हैं। अतः हमारी सलाह है कि आर ओ का जल उपयोग में लाएं लेकिन साथ में ताजी सब्जियों का रस अवश्य लें जिससे आर ओ से हो रही खनिजों की पूर्ति हो सके। *अधिक जल पीना हानिकारक भी हो सकता है* , इसका ध्यान रखें।
 क्योंकि भोजन को दवा माना जाता है, इसलिए हमें आशा है कि आप सदा इस बारे में जागरूक रहेंगे। अगले भाग में हम इसकी चर्चा करेंगे कि *क्या खाया जाये।*

-- *जगमोहन गौतम*

(मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद- विजय कुमार सिंघल)

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शालीन वृद्धावस्था
                           (भाग 6क)

                           कैसे खायें

हमारे शरीर को ऊर्जा खाना खाने से नहीं बल्कि उसको पचाने से मिलती है। इसलिए अच्छे स्वास्थ्य के लिए भोजन का पचना महत्वपूर्ण है। अपनी पाचन शक्ति को पूर्ण बनाये रखने के लिए "कैसे खायें" अर्थात् खाने की विधि, अहम भूमिका निभाती है, क्योंकि इससे पर्याप्त लार (Saliva) का निर्माण होता है, जो पाचन प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है।

एक सही कहावत है कि "खाने को पियो और पानी को खाओ"। भोजन को सही प्रकार से पर्याप्त समय तक चबाने से क़ब्ज़ दूर रहता है, दाँत मज़बूत होते हैं, भूख बढ़ती है और पेट की बहुत सी शिकायतें नहीं होतीं। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है।

यदि दोनों हाथ, पैर तथा मुँह धोकर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके भोजन किया जाये, तो व्यक्ति की आयु बढ़ जाती है अर्थात् इससे भोजन के पाचन में सहायता मिलती है।

चलने-फिरने की स्थिति हमारी जीवनशैली और परम्पराओं का भी अभिन्न भाग है। *हमारे शरीर का निर्माण लेटने, बैठने और चलने में सुविधा के लिए किया गया है*। खड़े होने की स्थिति (Standing position) एक संक्रमण काल (transition period) है. इसलिए खड़े होने की स्थिति में जीवन की कोई भी गतिविधि नहीं की जानी चाहिए। इससे ऐसी बहुत सी शिकायतें दूर रहेंगी जो आजकल आम हो गयी हैं।

आयुर्वेद के तीन प्रमुख ग्रंथों में से एक *सुश्रुत संहिता* के अनुसार- "किसी उठे हुए स्थान पर सुविधापूर्वक बैठकर, समान स्थिति में रहते हुए और भोजन पर ध्यान केन्द्रित करके उचित समय पर (अर्थात् जब जठराग्नि प्रबल हो और वास्तविक भूख लग रही हो), उचित मात्रा में (अपनी पाचन शक्ति के अनुसार) भोजन करना चाहिए।"

इसी प्रकार  मानसिक कार्य करने वालों को सुखासन में और  शारीरिक श्रम करने वालों को कागासन में (उकड़ूँ) बैठकर भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन की मेज़-कुर्सी की अवधारणा यूरोपीय है, क्योंकि वहाँ की जलवायु ठंडी है और इसका हमारी परिस्थितियों से सामंजस्य नहीं बैठता है। भारतीय परिस्थितियों में भोजन किसी आसन पर बैठकर किया जाता है और भोजन को किसी उठे हुए स्थान जैसे चौकी पर रखा जाता है। यदि किसी को चौकी-आसन के प्रयोग में असुविधा हो, तो वे कुर्सी पर सुखासन में (पालथी मारकर) बैठ सकते हैं और भोजन को डाइनिंग टेबल पर रख सकते हैं।

भोजन को छुरी-काँटे और चम्मच के बिना हाथ से करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि ऐसा करने से शरीर में पाँचों तत्वों (पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि) का संतुलन बना रहता है, जिसका परिणाम होता है- स्वास्थ्य। भोजन प्रसन्नतापूर्वक मौन रहकर करना चाहिए  ताकि पर्याप्त मात्रा में लार का निर्माण हो। उल्लेखनीय है कि लार आयु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और पाचन में सहायता करती है। इसका निर्माण प्रत्येक कौर को कम से कम ३२ बार अर्थात् अच्छी तरह चबाने से पर्याप्त मात्रा में होता है। चबाते समय अपने मुख को बन्द रखें और आवाज न करें। हर बार छोटे-छोटे कौर तोड़कर खाइए ताकि आप सरलता से साँस ले सकें और कौर को बिना कठिनाई के चबा सकें। शांत रहना और इस पर ध्यान देना भी सहायक होता है कि आप क्या खा रहे हैं, बजाय सबकुछ निगल जाने के। खाते समय बात करना, टीवी देखना या पढ़ना भी उचित नहीं है।

इस लेखमाला के भाग 6ख में हम पानी कैसे पीएं पर चर्चा करेंगे।

*-- जगमोहन गौतम*

(मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद- विजय कुमार सिंघल)
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*यूरोप की विवशता - हमारी अज्ञानता*

👁  *1.* आठ महीने ठण्ड के कारण, कोट पैंट पहनना उनकी विवशता *और शादी वाले दिन भरी गर्मी में कोट - पैंट डाल कर बरात ले जाना, हमारीअज्ञानता*। अतः भारतीय वेशभूषा यथा पुरुष : बण्डी, कुर्ता-धोती, महिलाएं : साड़ी ब्लाउज, सलवार कुर्ता पर विचार करें।

👁   *2.* ताजा भोजन उपलब्ध ना होने के कारण, सड़े आटे से पिज्जा, बर्गर, नूडल्स खाना यूरोप की विवशता *और 56 भोग छोड़ कर ₹ 400/- की सड़ी रोटी (पिज्जा ) खाना, *हमारी अज्ञानता* । सत्तू, ताजी,  सब्ज़ियों के रस, मोटा अनाज, आटे की सेवइयां/जवे, बेसन इत्यादि के चीले भी चखें। इनको परिवार में बना रहने दें।

👁   *3.* ताज़ा भोजन की कमी के कारण फ्रीज़ इस्तेमाल करना, यूरोप की विवशता *और रोज ताजी सब्जी बाजार में मिलनें पर भी, हफ्ते भर की सब्जी फ्रीज में ठूँस सड़ा कर खाना, *हमारी अज्ञानता* । जल के लिए घड़े का उपयोग, बासी भोजन किसी भी हालात में भारतीय परिस्थितियों मैं न करने का संकल्प लें। नित्य आसबपास उपलब्ध ताजी सब्जी उपयोग करें। विचारें।

👁   *4.* जड़ी - बूटियों का ज्ञान ना होने के कारण, जीव जन्तुओं के माँस से दवायें बनाना, उनकी विवशता *और आयुर्वेद जैसा महान चिकित्सा होने के बावजूद, माँस की दवाईयाँ उपयोग करना, *हमारी अज्ञानता* । भारतीय रसोई स्वयम पूरा मेडिकल स्टोर हूं, इसका उपयोग करें एवम प्रकृति के निकट रहकर स्वस्थ जीवन व्यतीत करें।

👁   *5.* पर्याप्त अनाज ना होने के कारण जानवरों को खाना, उनकी विवशता *और 1600 किस्मों की फसलें होनें के बावजूद, स्वाद के लिए निरीह प्राणी मार कर खाना, *हमारी* *अज्ञानता* । स्थानीय उगाया जाने वाला प्रत्येक अनाज, फल, तरकारी का उपयोग खूब करें।

👁   *6.* लस्सी,मट्ठा, छाछ, दूध, जूस ,  शिकंजी आदि ना होने के कारण, कोल्ड ड्रिंक पीना उनकी विवशता *और 36 तरह के पेय पदार्थ होते हुऐ भी, कोल्ड ड्रिंक नामक जहर पी कर खुद को आधुनिक समझना, *हमारी* *अज्ञानता* कुछ नहीं तो जल अवश्य पीते रहें, कम से कम 7-8 ग्लास नित्य अवश्य पीएं।



*संस्कृति भी संजोए*
*और*
*अपना स्वास्थ्य भी।*

*इस पर अवश्य विचार करें।*


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