Tuesday, June 11, 2019

गठिया का सरल प्राकृतिक उपचार

*गठिया का सरल प्राकृतिक उपचार*

गठिया को अंग्रेजी में आर्थराइटिस और संस्कृत में संधिवात कहा जाता है। यह एक वात रोग है और इसका प्रभाव हड्डियों के जोड़ों पर पड़ता है। मुख्य रूप से घुटने, पैर, कंधे और हाथ इससे प्रभावित होते हैं।

गठिया के कई कारण हो सकते हैं, जैसे- व्यायाम की कमी, पैदल न चलना, सीढ़ियों के बजाय लिफ़्ट का अधिक उपयोग करना, आराम तलब जीवन शैली, असंतुलित खानपान, बढ़ता हुआ वज़न, दर्दनाशक दवाओं का अत्यधिक सेवन, अन्य रोगों की तेज दवाओं का सेवन आदि। इनमें से एक या अधिक कारण मिलकर शरीर में गठिया उत्पन्न कर देते हैं, जिससे पीड़ित व्यक्ति को बहुत कष्ट होता है।

गठिया का सबसे पहला प्रभाव प्राय: घुटनों पर पड़ता है, क्योंकि शरीर का पूरा बोझ घुटनों पर ही आता है। ऐलोपैथिक डाक्टरों के पास इसका कोई समाधान नहीं है। घुटने क्षतिग्रस्त हो जाने पर वे उनका आपरेशन कर डालते हैं, लेकिन बहुधा इससे भी समस्या हल नहीं होती। श्री अटल बिहारी वाजपेयी के घुटनों का तीन-तीन बार ऑपरेशन हुआ है, परंतु उनको कोई लाभ नहीं हुआ, उल्टे हानि ही हुई है।

गठिया के कारण जोड़ों में असहनीय दर्द होता है जिसके लिए लोग दर्दनाशक दवायें लेते रहते हैं। इन दवाओं से बहुत हानियाँ होती हैं तथा अनेक नई बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं। सबसे अच्छा तो यह है कि अपनी जीवन शैली में परिवर्तन करके गठिया से बचा जाये। यदि गठिया हो ही जाता है, तो उसकी चिकित्सा प्राकृतिक विधियों से सफलतापूर्वक की जा सकती है, यदि हड्डियाँ अधिक क्षतिग्रस्त न हुई हों। दवा आधारित चिकित्सा पद्धतियों में इसका कोई उपचार नहीं है, चाहे वह ऐलोपैथी हो, होमियोपैथी हो, आयुर्वेद हो या कोई अन्य।

यहाँ मैं गठिया का सरल प्राकृतिक उपचार लिख रहा हूँ, जिसका सही-सही पालन करके कोई भी व्यक्ति पर्याप्त लाभ उठा सकता है।

*उपचार*
* प्रातः काल 6 बजे उठते ही एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू का रस मिलाकर पियें। फिर 5 मिनट बाद शौच जायें।
* शौच के बाद 2-3 मिनट तक पेडू पर खूब ठंडे पानी से पोंछा लगायें, फिर टहलने जायें। अपनी सामान्य चाल से डेढ़-दो किमी टहलें।
* टहलने के बाद नीचे दी गयी क्रियाएं करें-
- पवन मुक्तासन
- भुजंगासन
- रीढ़ के व्यायाम : क्वीन और किंग एक्सरसाइज़
- नेत्र, मुख और ग्रीवा व्यायाम
- उंगली, कलाई, कोहनी और कंधों के व्यायाम
- घुटनों के विशेष व्यायाम (कुर्सी पर बैठकर)
- पैरों के विशेष सूक्ष्म व्यायाम
- भस्त्रिका प्राणायाम प्रतिदिन 5 चक्र
- कपालभाति प्राणायाम 300 बार
- अनुलोम विलोम प्राणायाम 5 मिनट
- भ्रामरी 3 बार
- उद्गीत (ओंकार ध्वनि) 3 बार
- तितली व्यायाम एक मिनट
* व्यायाम के बाद खाली पेट लहसुन की तीन-चार कली छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े करके सादा पानी से निगल लें या चबायें।
* सप्ताह में दो-तीन बार प्रात:काल 8 से 9 बजे के बीच हलके कपड़े पहनकर या तेल मालिश करके कम से कम आधा घंटा धूप सेवन करें।
* दोपहर बाद गठिया के स्थान पर गर्म पानी में भीगी तौलिया से कम से कम 20 मिनट तक नित्य सिकाई करें।

यदि समय हो और रोग अधिक बढ़ गया हो तो ये सभी या इनमें से कुछ क्रियायें शाम को भी की जा सकती हैं। गठिया के पीड़ितों को कठिन व्यायाम नहीं करने चाहिए।

*भोजन*
* नाश्ता प्रातः 8 बजे - अंकुरित अन्न या दलिया या एक पाव मौसमी फल और एक कप गाय का दूध या छाछ। साथ में रात को भिगोये हुए 5 मुनक्का, 10 किशमिश और 20 मूँगफली दाने खूब चबा चबाकर खायें।
* दोपहर भोजन 1.30 बजे- रोटी, हरी सब्जी, सलाद, दही (दाल चावल कभी-कभी कम मात्रा में)
* दोपहर बाद 4 बजे - किसी मौसमी फल का एक गिलास जूस या एक पाव मौसमी फल (आम न लें )
* रात्रि भोजन 7.30 बजे - दही छोड़कर दोपहर जैसा। भूख से थोड़ा कम खायें।
* रात्रि 10-10.30 बजे सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें।
* *परहेज-* चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, चाकलेट, आइसक्रीम, मिठाई, फास्ट फूड, मैदा, अंडा, मांस, मछली, शराब, सिगरेट, तम्बाकू बिल्कुल नहीं।
* फ्रिज का पानी न पियें। सादा या गुनगुना पानी ही पियें।
* मिर्च-मसाले, खटाई तथा नमक कम से कम लें। अच्छा हो कि सेंधा नमक का उपयोग करें।
* दिन भर में साढ़े तीन या चार लीटर सादा पानी पियें अर्थात् हर एक़ या सवा घंटे पर एक गिलास।
* सभी तरह की ठंडी चीज़ों से बचें।

*विशेष*
* सभी तरह की दवायें बिल्कुल बंद रहेंगी।
* जो दवायें आप इस समय ले रहे हैं उन्हें धीरे-धीरे कम करते हुए निम्नप्रकार बंद करें-
- दो सप्ताह बाद : दवा तीन चौथाई कर दें।
- उसके दो सप्ताह बाद : दवा आधी कर दें।
- उसके दो सप्ताह बाद : दवा चौथाई कर दें।
- उसके दो सप्ताह बाद दवायें बिल्कुल बंद कर दें।
* नहाने के साबुन का प्रयोग बंद कर दें। गीली तौलिया या हाथ से रगड़कर नहायें।

-- *डॉ विजय कुमार सिंघल*
भाद्रपद शु. ९, सं. २०७४ वि. (३० अगस्त, २०१७)

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*सन्धिवात को कैसे नियन्त्रित करें*
(HOW TO CONTROL ARTHRITIS)

लेखक - श्री सुदर्शन बब्बर

सन्धिवात का अर्थ है शरीर के जोड़ों में होने वाली जलन या दर्द।

*लक्षण -*

1. जब किसी दिन कोई अनुभव करता है कि मुझे सीढ़ियों के बजाय लिफ़्ट से जाना अधिक पसन्द है, तो यह एक लक्षण है। बैठने और खड़े होने में होने वाली कठिनाई इसके प्रारम्भिक संकेत हैं।
2. जब किसी को अपने दैनिक प्रात:कालीन/सायंकालीन भ्रमण पर जाने में कठिनाई होती है और अधिकांश समय घर में घुसे रहते हैं, तो यह भी एक प्रारम्भिक संकेत है।
3. सीधे खड़े हो जाइए, अपने पैरों के अँगूठों और एड़ियों को मिलाइए। आपके घुटनों के भीतरी भाग आपस में छूने चाहिए। यदि उनके बीच में २ या ३ अंगुल की दूरी है, तो मान लीजिए कि सन्धिवात विकसित हो चुका है।

संधिवात कई प्रकार का होता है। गठिया शरीर की सबसे पीड़ादायक बीमारियों में से एक है। सामान्यतया सबसे पहले दर्द दायें पैर की उँगलियों में शुरू होता है। कई बार यह दर्द एड़ियों में भी होता है। इस रोग के मुख्य कारण हैं खून में यूरिक अम्ल बढ़ना, पोटेशियम की कमी, पानी कम पीना, मोटापा आदि। यूरिक एसिड का सामान्य स्तर पुरुषों के लिए ३.४ से ७.० मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर (mg/dl) और महिलाओं के लिए २.४ से ६.० मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर होता है।

अस्थिमज्जा प्रदाह (Ostero arthritis) अथवा हड्डियों का संधिवात सबसे ज़्यादा पाया जाता है, जो सामान्यतया ५० वर्ष के बाद की उम्र में होता है। जब शरीर के एक या अधिक जोड़ों का ह्रास होता है, तो उसे अस्थि संधिवात कहा जाता है। यह किसी जोड़ की उपास्थि (कार्टिलेज) या बड़े जोड़ों के अंगों का रोग है जो शरीर के भार को वहन करते हैं। उम्र बढ़ने के साथ जो उपास्थि घुटने की हड्डियों को आराम देती है, वह धीरे-धीरे घिस जाती है, दूर हट जाती है, टूट जाती है या पतली हो जाती है। तब हड्डियाँ आपस में रगड़ खाती हैं और घुटनों में दर्द तथा कष्ट उत्पन्न करती हैं।

*कारण -* आलस्यपूर्ण जीवनशैली, मोटापा, ऑस्टियोपोरोसिस, डायबिटीज़, थायरॉयड, पाचन प्रणाली की गड़बड़ियाँ, क़ब्ज़, शरीर के अन्य रोगों के लिए तेज दवाओं का अधिक सेवन, रक्त का सही संचरण न होना आदि।

*क्या हड्डियों का संधिवात उपचार योग्य है?*

अधिकांश संधिवात जीर्ण होते हैं, जैसे- डायबिटीज़, थॉयराइड, हाइपरटेंशन आदि, और उनके लिए लम्बे प्रभावी इलाज की आवश्यकता होती है। उपचार शब्द का प्रयोग सही नहीं होगा। संधिवात का किसी भी दवा आधारित चिकित्सा पद्धति, चाहे वह एलोपैथी हो या आयुर्वेद या होम्योपैथी, में कोई इलाज नहीं है। एक बार क्षति हो जाने के बाद जहाँ तक सम्भव हो रोग को कम करने का प्रयास करना चाहिए और जोड़ों को आगे नष्ट होने से बचाना चाहिए। उपचार की कई विधियाँ हैं, जिनसे रोग को नियंत्रण में रखा जा सकता है।

*बचाव के उपाय और उपचार*

शारीरिक गतिविधियाँ- जब जोड़ों में दर्द होने लगता है, तो अधिकांश लोग अपनी शारीरिक गतिविधियों को बंद कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि उनकी मांसपेशियाँ कमज़ोर और कड़ी हो जाती हैं।

तेल मालिश- ज़ैतून, सरसों, तिल या किसी अायुर्वेदिक तेल से अपने पैरों की मालिश एड़ी से शुरू करके ऊपर की ओर कीजिए। एक पैर की मालिश में ५ मिनट लगाइए। इससे रक्त का संचार सुधरेगा।

टहलना- टहलने के लिए बाहर निकलिए। आप टहलने की छड़ी का उपयोग कर सकते हैं। घुटनों पर गिरने और चोट लगने का जोखिम कम करने के लिए घुटनों की पट्टी  (knee cap) पहनिए। घर पर आप नंगे पैर भी टहल सकते हैं।

स्थिर साइकिल- स्थिर बाइसिकिल पर रोज लगभग १०-१५ मिनट चढिए। इससे आपके पैरों की मांसपेशियाँ मज़बूत होने और घुटनों तथा जोड़ों पर दबाव कम होने में सहायता मिलेगी।

*नित्य योगाभ्यास कीजिए*

अपनी उम्र और स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार उतना ही योग कीजिए कि आप सुविधापूर्वक सहन कर सकें। आदर्श आसन और प्राणायाम नीचे दिये जा रहे हैं।

हत्थेवाली कुर्सी पर बैठिए, घुटने मुड़े हुए और पैर ज़मीन पर समतल रखे हुए। अब निम्नलिखित चार व्यायामों को रोज कम से कम १०-१० बार कीजिए।

(१) बैठना और खड़े होना- अपने चूतड़ों को उठाकर सीधे खड़े हो जाइए और फिर बैठ जाइए।

(२) पैर उठाना- एक पैर को उठाकर सामने सीधा कीजिए, जाँघ थोड़ी उठी रहे, घुटने को सीधा रखिए। इस स्थिति में ५ तक की गिनती गिनने तक रहिए, फिर पैर को धीरे से नीचे रख लीजिए। ऐसा दोनों पैरों से बारी-बारी से कीजिए।

(३) घुटना उठाना- एक घुटने को अपने सीने तक ऊपर उठाइए। इस स्थिति में ५ की गिनती तक रहिए, फिर पैर को धीरे से नीचे रख लीजिए। ऐसा दोनों घुटनों से बारी-बारी से कीजिए।

(४) पैरों में ६-८ इंच का अन्तर देकर सीधे खड़े हो जाइए। संतुलन के लिए बायें हाथ से कुर्सी की पीठ को पकड़िए और दायें पैर को पीछे की ओर झुकाइए और उसे दायें हाथ से टखने के ऊपर से पकड़ लीजिए। एड़ी को अपने चूतड़ की ओर खींचिए। इस स्थिति में लगभग ३० सेकंड तक रुकिए। फिर पैर को छोड़ दीजिए और धीरे से फ़र्श पर रखिए। पैर बदलकर ऐसा ही कीजिए। इसे ५ बार दोहराइए।

इस व्यायाम से आपको सरलता से चलने और सीढ़ियाँ चढ़ने में सहायता मिलेगी। जब कुछ सुधार हो जाये, तो नीचे दी गयी सूची में से कुछ अन्य व्यायाम भी कीजिए।

पैरों के सूक्ष्म व्यायाम (MICRO EXERCISES FOR LEGS) जैसे एड़ी सरकाना, अँगूठा मोड़ना, टखने मोड़ना, एड़ियों को दायें-बायें और गोलाई में घुमाना, पैरों को तानना- जानु नमन। अर्ध तितली और पूर्ण तितली आसन, ताड़ासन (लेटे हुए), यौगिक साइकिल चलाना, पैर घुमाना, उत्तानपादासन, चक्की चालन, रीढ़ को डायनामिक मोड़ना- दोनों ओर कंधे की सीध में, त्रिकोणासन, भुजंगासन, शलभासन एवं शवासन। गहरी और लम्बी साँस लेना, अनुलोम-विलोम, सूर्यभेदी, कपालभाति, अग्निसार और भ्रामरी प्राणायाम।

*उचित आहार (APPROPRIATE DIET):* अधिक विटामिन ए, कैल्शियम और पोटेशियम वाला भोजन कीजिए।

विटामिन ए ऊतकों (tissues) और उपास्थियों (cartilage) की मरम्मत के लिए अच्छा होता है। सभी मौसमी फल और सब्ज़ियाँ इसके प्राकृतिक स्रोत हैं। गाजर में बहुत विटामिन ए होता है।

कैल्शियम- कैल्शियम की कमी से ऑस्टियोपरोसिस हो जाता है। कैल्शियम के सबसे अच्छे स्रोत हैं- दूध, दही, पनीर, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, मछली आदि।

पोटेशियम- यह रक्त को धो देता है। इसकी कमी से कमज़ोरी, क़ब्ज़, स्मरणशक्ति की कमी आदि होती हैं। इसके अच्छे स्रोत हैं- सूखे मेवे, जैसे खजूर, अखरोट, बादाम, मूँगफली, काजू, एवं ताज़े फल जैसे केला, ख़रबूज़ा, आड़ू, अनार, अंगूर आदि। इनको उचित मात्रा में ही खाना चाहिए ताकि वजन न बढ़े। तले हुए खाद्य, मिठाई, आइसक्रीम, गैस वाले पेय, धूम्रपान, अल्कोहल आदि से बचिए।

मोटापे से संधिवात होता है, जिससे चलना फिरना कठिन, नसों का फूलना, डायबिटीज़, कैंसर आदि हो जाता है। अधिक वजन होना भार सहन करने वाले जोड़ों जैसे घुटने और कमर में तनाव बढ़ा देता है। थोड़ा सा वजन घट जाने से भी दबाव में कुछ आराम मिलता है और दर्द कम हो जाता है।

नित्य प्रात:काल ८ बजे से ९ बजे तक धूप में रहकर विटामिन डी का सेवन कीजिए। यदि सुधार धीमे हों, तो भी छोड़िए मत। याद रखिए कि जब तक आप कोशिश करना बन्द नहीं करते, तब तक आशा समाप्त नहीं होती। *हिम्मते मर्दां मददे खुदा* (God Helps those who help themselves).

-- *सुदर्शन बब्बर*

(मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद- विजय कुमार सिंघल)

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मित्रो, *कभी न रोके वेग को*

 शरीर जो वेग होते है वह हैं  _मल, मुत्र, पाद, भूूख, प्यास, ढकार, छींक, उबासी, नींद, आंसू, थकान से आये सांस, वीर्य और उल्टी।_

हमारे शरीर में 13 वेग होते हैं अगर वो अपने समय पर आए तो उन्हें रोकना नही चाहिए।
और ना ही इन्हें जबरस्ती लाना चाहिए।

कई बार जोर लगा लगा कर मल निकालते हैं जिसके कारण बवासीर या hernia की प्रॉब्लम हो जाती है।

आइये देखते हैं वेगो को रोकने से क्या रोग हो सकते हैं :

1. मल को रोकने से पेट में गुड़गुड़ाहट, गुदा में पीड़ा, कब्ज, बवासीर, भगन्दर और अन्य गुदा के रोग हो जाते हैं।

2. मुत्र को रोकने से मूत्राशय और लिंग में जलन व दर्द, मुत्र संबंधित सभी बीमारी, प्रमेह, किडनी की बीमारियां, पत्थरी, सिर में पीड़ा, पेशाब का बार बार आना या कम आना,पेशाब में जलन आदि।

3. पाद को रोकने अफारा, पेट दर्द, कब्ज, क्लांति, बुखार, पेट के बहुत से रोग हो जाते हैं।

4. उबासी को रोकने से cervical spondelitis, जबड़ा दुखना, गर्दन में दर्द, सिर में पीड़ा, सिर के बहुत से रोग, आँख, नाक, कान के बहुत से रोग और वात के रोग हो जाते हैं।

5. आंसू चाहे वो खुशी के हों या गम के उनको रोकने से सिर में भारीपन, आखों के बहुत से रोग, भयंकर जुखाम, नजला और नाक के रोग आदि रोग हो जाते हैं।

6. छींक को रोकने cervical spondelitis, सिर में दर्द, मुह का लकवा, पक्षाघात, इंद्रियों का काम करना बंद करना और भी अन्य वात के भयंकर रोग होते हैं।

7. डकार को रोकने से गला और मुख भरा रहता है मानो खाना गले में ही है, सम्पूर्ण शरीर में दर्द होना, आंतो में शब्द होना, अफारा बन जाना, पाद न निकलना और भी वात के रोग हो जाते हैं।

8. उल्टी को रोकने से खाज, खुजली, अरुचि, चहरे पे झाइयां पड़ना, edema, पिलिया, बुखार, सभी प्रकार के चर्म रोग, उभकाई और erysipelas रोग हो जाते हैं।

9. वीर्य को रोकने से मूत्राशय, गुदा, अंडकोष में दर्द और सूजन, वीर्य संबंधित सभी रोग, नपुंसकता, मुत्र में वीर्य निकलना, पत्थरी, अंडकोष में पथरी रोग हो जाते है।

10. भूख में खाना न खाने  से आलस्य, शरीर का टूटना, अरुचि, आखों की दृश्टि में कमी, पेट का cancer और पेट के रोग हो जाते हैं।

11. प्यास में पानी न पीने से कंठ और मुख सूखता है, श्रवणशक्ति का अवरोध होता है, हिर्दय में पीड़ा होति है, शरीर टूट जाता है।

NOTE : अगर भूूख लगे तो खाना ही खाना चाहिए। और प्यास लगे तो पानी ही पीना चाहिए। अगर बूख लगी हो और पानी पी लिया जाए तो जलोदर रोग हो जाता है। और प्यास लगी हो और खाना खा लिया जाए तो पेट का cancer हो जाता है।

12. थकान से आये सांस को रोकने से दिल के सभी रोग, मोह और stomach cancer हो जाता है।

13. नींद आने पर अगर सोएं नही तो उबासी, शरीर का टूटना, आखों के बहुत से रोग, सिर भारी होना और दर्द होना और आलस्य हो जाता है।

इसीलिए हमे शरीर के वेगो को ना तो रोकना चाहिए न जबरदस्ती लाना चाहिए।

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