Thursday, June 4, 2020

खराब गुर्दों का प्राकृतिक उपचार

*प्राकृतिक चिकित्सा-58*

*खराब गुर्दों का प्राकृतिक उपचार*

यदि किसी व्यक्ति के गुर्दे आंशिक रूप से भी खराब हो जाते हैं, तो उसके घरवाले ऐलोपैथिक डॉक्टरों के कहने से यह मान लेते हैं कि अब डायलाइसिस कराने और आगे चलकर गुर्दा बदलवाने के अलावा कोई उपाय नहीं है। परन्तु यह धारणा पूरी तरह गलत है।

मेरा यह सुनिश्चित विचार है कि उचित प्राकृतिक चिकित्सा से गुर्दों का खराब होना न केवल रोका जा सकता है, बल्कि उनको ठीक भी किया जा सकता है। यहाँ तक कि यदि डायलिसिस भी शुरू हो चुका हो, तो भी गुर्दों को किसी दवा के बिना केवल प्राकृतिक उपचार से सही किया जा सकता है और डायलिसिस से भी छुटकारा पाया जा सकता है। शर्त केवल यह है कि रोगी को निष्ठापूर्वक प्राकृतिक उपचार चलाना चाहिए और सभी आवश्यक परहेज करने चाहिए।

गुर्दा रोगी डॉक्टरों के कहने पर सबसे बडी ग़लती यह करते हैं कि वे पानी पीना बहुत कम कर देते हैं। मेरे एक चचेरे भाई इस रोग से पीड़ित थे। जाने किसके कहने पर वे सुबह एक साथ एक लीटर पानी पीते थे, फिर दिन भर बिल्कुल भी पानी नहीं पीते थे, जबकि चाय दो बार पी जाते थे।

मैंने उन्हें कई बार समझाया कि यह गलत है, आपको दिनभर थोडा-थोडा पानी पीना चाहिए, पर उन्होंने मेरी बात नहीं मानी। परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे उनके गुर्दे पूरी तरह खराब हो गये। वे बहुत दिनों तक डायलिसिस पर रहे, फिर एक गुर्दा बदलवाया गया, जो पाँच साल में बेकार हो गया और अंतत: भाईसाहब को अपने प्राण त्यागने पड़े। लगभग सभी गुर्दापीडि़त यही ग़लती करते हैं।

इतनी बात समझ में आने पर खराब गुर्दों का उपचार किया जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले तो उन्हें अपना आहार सुधारना चाहिए। सभी बाज़ारू चीज़ें बन्द करके बिना मिर्च मसाले का और बहुत कम सेंधा नमक डालकर घर का बना हुआ शुद्ध सात्विक शाकाहारी भोजन करना चाहिए। चाय कॉफी जैसी चीज़ें भी एकदम बन्द रखनी चाहिए।

इसके अलावा उनको सारे दिन लगभग 200 मिली पानी हर घंटे पर पीना चाहिए। इससे दिनभर में लगभग ढाई लीटर जल हो जाएगा जो गुर्दों को सक्रिय रखने और रक्त को छानने की क्रिया चलाने के लिए पर्याप्त है। यह ध्यान रहे कि जितनी बार वे पानी पियें उतनी ही बार उनको मूत्र विसर्जन करने जाना चाहिए और इसमें बिल्कुल ज़ोर नहीं लगाना चाहिए।

जो व्यक्ति डायलिसिस पर रहते हैं, वे भी पानी की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाकर अपने खराब गुर्दों को सक्रिय कर सकते हैं और कुछ ही दिनों में डायलिसिस से छुटकारा पा सकते हैं। उन्हें हर घंटे 100 मिली पानी पीने से शुरुआत करनी चाहिए।

इसके अलावा गुर्दापीड़ित व्यक्ति को नित्य प्रात: और सायं 5-5 मिनट का ठंडा कटिस्नान लेकर अपनी शक्ति के अनुसार टहलना चाहिए और शुद्ध वायु में पाँच-पाँच मिनट कपालभाति और अनुलोम-विलोम प्राणायाम भी करने चाहिए। गुर्दों को स्वस्थ करने में इनसे बहुत सहायता मिलती है।

— *डॉ विजय कुमार सिंघल*
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
मो. 9919997596
ज्येष्ठ पूर्णिमा, सं 2077 वि (5 जून, 2020)

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*प्राकृतिक चिकित्सा-57*

*गुर्दे तथा मूत्र रोगों का प्रमुख कारण*

मेरे पास चिकित्सा परामर्श के लिए जो मामले आते हैं उनमें बड़ी संख्या ऐसे मामलों की है जिनका संबंध गुर्दों और मूत्राशय की बीमारियों से होता है, जैसे गुर्दे या मूत्राशय में पथरी, पेशाब नली में रुकावट या सूजन, पेशाब सही न आना, दर्द या संक्रमण होना, मूत्रांग में जलन होना, मूत्र में पस या खून आना आदि-आदि। मेरी जानकारी में ऐसे लोगों को भी ये शिकायतें हुई हैं, जिनका आहार विहार सात्विक है और जिन्हें कोई व्यसन भी नहीं है।

इन शिकायतों का मुख्य कारण वे तीन ग़लतियाँ हैं जो हम लोग जाने-अनजाने करते रहते हैं। इन ग़लतियों का कुप्रभाव जल्दी नज़र नहीं आता, परंतु होता जरूर है। यहाँ इन ग़लतियों की चर्चा की गयी है।

पहली ग़लती जो हम लोग करते हैं वह है- पानी कम पीना। लोग प्राय: पानी पीना भूल जाते हैं और बहुत प्यास लगने पर ही पानी पीते हैं। कई लोग जानबूझकर पानी इसलिए कम पीते हैं कि उन्हें बाथरूम न जाना पड़े। यह बहुत बड़ी ग़लती है जिसका कुपरिणाम उन्हें आगे चलकर भुगतना पड़ता है।

बाथरूम जाने में शर्माने का कोई कारण नहीं है। हम जितनी बार पानी पीते हैं उतनी बार जाना पड़े तो भी उचित है। इसलिए हमें जाड़ों में प्रतिदिन ढाई-तीन लीटर और गर्मियों में तीन-चार लीटर पानी अवश्य पी लेना चाहिए। शीतल पेय, चाय आदि पानी का विकल्प नहीं हैं। इनसे हमारे गुर्दों पर बोझ बहुत बढ़ जाता है।

दूसरी ग़लती जो हम लोग करते हैं वह है- मूत्र के वेग को रोकना। यदि आसपास कोई बाथरूम न हो, तो कुछ समय तक इसे रोकने का कारण समझ में आता है, परंतु सामान्य स्थिति में पेशाब रोकने का कोई कारण नहीं है। आयुर्वेद में कहा गया है कि मल, मूत्र, छींक, जँभाई आदि तेरह प्रकार के वेगों को कभी रोकना नहीं चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। मूत्र के वेग को रोकने पर मूत्राशय पर बहुत दबाव पड़ता है और गुर्दों का कार्य भी बाधित होता है। इसलिए ऐसी ग़लती कभी नहीं करनी चाहिए।

तीसरी ग़लती जो अधिकांश लोग करते हैं वह है- मूत्र विसर्जन करते समय ज़ोर लगाना। लोग अपना समय बचाने के लिए ऐसा करते हैं, परंतु इसके बदले में उन्हें कई गुना समय उन रोगों को देना पड़ता है जो इसके कारण उत्पन्न हो जाते हैं। पेशाब नली में सूजन आना, जलन होना, पथरी बन जाना, मूत्र में पस आना आदि इसी गलती से होता है। इसलिए भूलकर भी मूत्र विसर्जन करते समय ज़ोर मत लगाइए और मूत्र को अपने आप निकलने दीजिए, भले ही इसमें एक मिनट अधिक लग जाये।

यदि आप इन तीनों ग़लतियों से बचे रहेंगे तो गुर्दे और मूत्राशय की ही नहीं, बल्कि और भी बहुत सी बीमारियों से बचे रहेंगे। इतना ही नहीं, यदि ये बीमारियाँ हो गयी हों, तो इन ग़लतियों को सुधारकर उनसे सरलता से छुटकारा भी पा सकते हैं।

— *डॉ विजय कुमार सिंघल*
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
मो. 9919997596
ज्येष्ठ शु 10, सं 2077 वि (1 जून, 2020)

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