Friday, February 12, 2021

मुँहासों का रामबाण उपचार & भोजन में सुधार से रक्तचाप नियंत्रण

  *मुँहासों का रामबाण उपचार*


चेहरे पर होने वाली छोटी-छोटी फुंसियों को मुँहासे कहा जाता है। प्रारम्भ में ये लाल रंग के होते हैं, कई बार पक भी जाते हैं, फिर फूटकर या वैसे ही सूख जाते हैं और अपने काले दाग छोड़ जाते हैं। प्रायः पुराने मुँहासे ठीक होने से पहले ही नये निकल आते हैं। इनसे अच्छा-खासा सुन्दर चेहरा भी भद्दा लगता है। इसके विपरीत यदि चेहरे पर मुँहासे न हों, तो साधारण चेहरा भी सुन्दर लगता है। 


यह सोचना गलत है कि मुँहासे जवानी के प्रतीक होते हैं। वे किसी भी उम्र में हो सकते हैं, हालांकि मुँहासे प्रायः 14 से 30 वर्ष की उम्र के बीच होते हैं। मुँहासों का प्रमुख कारण है- पेट साफ न होना अर्थात् कब्ज। खून साफ न होने के कारण भी मुँहासे हो सकते हैं, पर इनका मुख्य सम्बंध पेट की खराबी से ही है। इन पर कोई भी स्थानीय उपचार दवा मल्हम क्रीम पाउडर आदि काम नहीं करता। कब्ज को दूर करके पेट साफ करना और खून को शुद्ध करना ही इनका स्थायी समाधान है। 


इसके लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करें-

1. शुद्ध सात्विक भोजन करें। भोजन में सलाद अवश्य हो।

2. चाय, काफी, मिर्च, मसाले, तेल, खटाई, मैदा, सफेद चीनी, फास्टफूड, मिठाई, अंडा. माँस-मछली, शराब, सिगरेट आदि का पूरा परहेज करें।

3. दिन भर में कम से कम 3 लीटर और अधिक से अधिक 4 लीटर सादा शीतल जल पियें।

4. मल-मूत्र के वेग को कभी न रोकें। दिन में सुबह-शाम दो बार शौच अवश्य जायें। 

5. पेट साफ करने के लिए सुबह उठते ही एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू निचोड़कर और एक चम्मच शहद मिलाकर पियें। फिर 5 मिनट बाद शौच जायें। उसके तुरन्त बाद पेड़ू पर 3 मिनट बर्फ लगाकर टहलने निकल जायें। शुद्ध वायु में 2 किमी अवश्य टहलें।

6. नित्य प्रातः 30 से 45 मिनट तक व्यायाम योग आदि इतना अवश्य करें कि दो-तीन बार पसीना आ जाये। साथ में प्रतिदिन 5 मिनट कपालभाति और 5 मिनट अनुलोम विलोम प्राणायाम भी अवश्य करें।

7. नहाने के साबुन का प्रयोग बंद कर दें। इसके बजाय तौलिये के रूमाल जैसे टुकड़े को पानी में भिगोकर उससे शरीर को रगड़ते हुए नहायें। इससे रोमछिद्र खुल जायेंगे और खून की गंदगी पसीने के रूप में निकलेगी।

8. दूध और पनीर से बने पदार्थों का सेवन कम कर दें।

9. आम को छोड़कर अन्य खट्ठे फलों का सेवन अधिक करें।

10. चेहरे पर सभी तरह के साबुन तेल क्रीम पाउडर आदि लगाना बिल्कुल बन्द कर दें। केवल गीले कपड़े से चेहरे को रगड़ते हुए स्नान करें। यदि चेहरे पर कोई खुला घाव न हो, तो 5-10 मिनट भाप भी ली जा सकती है। इससे रोमछिद्र खुल जायेंगे और गन्दगी बाहर निकलेगी। 


इन उपायों का पालन करने से एक-दो माह में ही चेहरा साफ और खून शुद्ध हो जाएगा और मुँहासे आदि के साथ ही त्वचा सम्बंधी सभी शिकायतें चली जायेंगी।


*-- डाॅ विजय कुमार सिंघल*

माघ शु 1, सं. 2077 वि. (12 फरवरी 2021)


*प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार के अनुभव-11*


*भोजन में सुधार से रक्तचाप नियंत्रण*


जब तक मैं आगरा से बाहर अन्य शहरों में कार्यरत था, जहाँ हमारे गिने-चुने मित्र और रिश्तेदार रहते हैं, तब तक हमारे घर से बाहर खाने पर बहुत नियंत्रण था, क्योंकि माह में एक दो बार ही बाहर या पार्टियों में खाना होता था। इससे मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता था और रक्तचाप तो एकदम सामान्य अर्थात् 85-130 के आस-पास रहता था। 

लेकिन जब से मैंने अवकाशप्राप्त किया है और आगरा में रहने लगा हूँ, तब से बाहर खाना खाने का सिलसिला बहुत बढ़ गया है। इसका कारण यह है कि हमारे अधिकांश परिवारी और अन्य रिश्तेदार आगरा में ही रहते हैं। आये दिन किसी का जन्मदिन, किसी की शादी की वर्षगाँठ, कोई शादी विवाह या अन्य कार्यक्रम लगे ही रहते हैं। यदि कभी कोई कार्यक्रम नहीं होता, तो घर पर ही विशेष भोजन बनाकर खाया-खिलाया जाता है। कहने का तात्पर्य है कि सप्ताह में दो-तीन बार मुझे गरिष्ठ भोजन न चाहते हुए भी करना पड़ता है। इन्हीं कारणों से मेरा साप्ताहिक उपवास या फलाहार भी बाधित हो जाता है।


इसका दुष्प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ना अनिवार्य होता है। नित्य एक घंटा योग और अन्य उपाय करते हुए भी, जिनकी सलाह मैं सबको दिया करता हूँ, मेरा रक्तचाप धीरे-धीरे बढ़ने लगा। पहले 140 हुआ, फिर 150 और 160 की सीमाओं को पार करके 170 को भी पार कर गया। अब मैं घबराया, क्योंकि स्थिति नियंत्रण से बाहर जा रही थी। इसलिए मैंने कड़ाई से अपने ऊपर कई प्रतिबंध लागू किये। एक तो मैंने मैदा, पनीर से बने व्यंजन, नमकीन और मिठाई लगभग बन्द कर दी। मंगलवार को अपने साप्ताहिक रसाहार का कड़ाई से पालन किया। केवल इतना करने से मात्र दो सप्ताह में ही मेरा रक्तचाप 172 से गिरकर 150 पर आ गया। 


कुछ दिन पहले मैं एक विवाह में शामिल होने दिल्ली गया, तो वहाँ तीन दिन तक भोजन का बहुत व्यापक प्रबंध था। वहाँ भी मैंने भारी और हानिकारक वस्तुओं का बहुत परहेज रखा। केवल सामान्य रोटी-सब्जी, दाल-चावल, इडली-डोसी आदि ही लिये। हाँ फल, सलाद, जूस और सूप खूब खाये-पिये। इससे मुझे कब्ज का कोई कष्ट भी नहीं हुआ, जो प्रायः हर विवाह-शादी के बाद हो जाता था। वहाँ से लौटने के दो दिन बाद आज अपना रक्तचाप नापा तो वह 140 निकला, अर्थात् बहुत ही सन्तोषजनक और लगभग सामान्य। मुझे पूरा विश्वास है कि शीघ्र ही यह पूरी तरह सामान्य हो जाएगा।


तो आप यह बात गाँठ बाँध लीजिए कि भोजन पर नियंत्रण ही अनेक रोगों से बचे रहने का एकमात्र सुनिश्चित उपाय है। जीभ के स्वाद के लिए हजारों रुपये खर्च करके बीमारियाँ खरीदना कोई बुद्धिमानी का कार्य नहीं है। 


*-- डाॅ विजय कुमार सिंघल*

पौष कृ 14, सं 2077 वि (10 फरवरी 2021)

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