Friday, February 12, 2021

मुद्राएं एवं इनका उपयोग स्वस्थ जीवन के लिए

 *मुद्राएं एवं इनका उपयोग स्वस्थ जीवन के लिए---By Sri Jagmohan ji


भारत के महान योग गुरुओं ने इस विज्ञान ( योग विज्ञान)  का निर्माण हजारों साल के अनुभव और कठिन तपस्या से किया है। योग की इस महान परंपरा में गौतम बुद्ध और भगवान महावीर जैसे महान तपस्वी शामिल हैं।


लेकिन क्या कभी आपने गौर से महात्मा बुद्ध को देखा है? ध्यान में बैठे भगवान बुद्ध के हाथ हमेशा ही एक विशेष स्थिति में होते हैं। हाथों की इसी स्थिति को योग विज्ञान में मुद्रा / हस्त मुद्रा कहा जाता है। अंग्रेजी में इन्हें Mudras या Hand Gestures कहते हैं।


*मुद्राओं की इस सांकेतिक भाषा प्रयोग को न सिर्फ योग बल्कि मेडिटेशन में भी किया जाता है। भारतीय नृत्य परंपरा जैसे, उत्तर भारतीय कथक हो या दक्षिण भारत का कथकली, मोहिनीअट्टम, भरतनाट्यम या कुचिपुड़ी, गोटिपुआ नृत्य आदि में भी मुद्राओं का भरपूर प्रयोग किया जाता है।*



*_हाथों को विभिन्न प्रकार से मोड़कर बनने वाली ये मुद्राएं योगी के उद्देश्य का प्रतीक होती हैं। ये मुद्राएं ही हैं जो योगी को उसके उद्देश्य के प्रति तत्पर बनाए रखने में मदद करती हैं। ये योगी के शरीर की आंतरिक और सुप्त ऊर्जा को जाग्रत करती हैं।_*


प्राचीन भारतीय ग्रंथों और वेदों में करीब 399 योग मुद्राओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।  योग और मेडिटेशन के समय इन मुद्राओं के प्रयोग से हम अनेक लाभ ले सकते हैं।


*योग और मुद्राएं* (Yoga And Hand Gestures) 



योग के महत्व को अब पूरी दुनिया स्वीकार कर चुकी है। शायद यही कारण है कि, इसे भी एक्युप्रेशर और एक्यूपंचर की तरह ही वैकल्पिक चिकित्सा पद्यति में शामिल किया जाने लगा है। 


हालांकि, अभी भी योग से मिलने वाले लाभों के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान निरन्तर जारी हैं।। कुछ ऐसी ही स्थिति योग मुद्राओं की भी है। भारतीय योगी हजारों सालों से इन फायदों के संबंध में दावे करते रहे हैं। शायद, विज्ञान को योग मुद्रा के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में अभी और अध्ययन या आधुनिक उपकरणों से जांच करने की आवश्यकता है। 


हालांकि, वैज्ञानिक शरीर के कुछ खास हिस्सों में स्पेशल प्वाइंट होने की बात को स्वीकार करते हैं। 


विज्ञान मानता है कि, इन खास बिंदुओं पर यदि हल्का दबाव डाला जाए तो, बेचैनी, घबराहट, हार्मोन असंतुलन यहां तक कि फाइब्रोम्यालजिया जैसी समस्याओं से भी राहत पाई जा सकती है। एक्युप्रेशर और एक्युपंचर जैसी थेरेपी विज्ञान की इसी मान्यता पर आधारित हैं।


अतः स्वस्थ रहने के लिए यदि मुद्राओं का उपयोग किया जाय तो यह प्रभावी भी होगा एवम सामयिक भी रहेगा। हम इस विषय पर आपसे सम्पर्क में रहेंगे जिससे आप भी मुद्राओं का उपयोग अपने स्वास्थ्य रहने में कर सकें।


*योग मुद्रा के प्रकार* (Variation Of Yoga Mudra) 




योग में, मुद्राओं के मूलत: दो प्रकार माने गए हैं। मुद्रा के निर्माण में अंगूठे से विभिन्न अंगुली के पोर को स्पर्श कराया जाता है। विभिन्न अंगुलियों के स्पर्श से बनने वाली योग मुद्रा का शरीर पर अलग तरह से प्रभाव पड़ता है। जबकि कुछ योग मुद्राएं कलाई को मोड़कर भी बनाई जाती हैं।


कुछ योग मुद्राएं शरीर में खास पंच तत्वों का भी प्रतीक होती हैं। प्राचीन मान्यता में पंचभूत से शरीर के निर्माण की बात कही जाती है। योग मुद्राएं, उन विशेष तत्वों को सक्रिय करके न सिर्फ शरीर बल्कि मन को भी स्वस्थ बनाती हैं।


*पंच तत्व और योग मुद्रा* (5 Elements And Yoga Mudra)



पंचतत्वों में मनुष्य के शरीर में पहला तत्व वायु तत्व माना जाता है। ये मनुष्य शरीर में मनुष्य की मेधा, क्रिएटिव सोच और मानसिक सेहत का प्रतीक होती है। इस तत्व का संबंध मनुष्य के चौ​थे चक्र यानी कि अनाहत (Anahata) से होता है।


जबकि, दूसरे तत्व को आकाश या अंतरिक्ष माना जाता है। इस तत्व को ज्यादातर इसकी विशालता के कारण निष्क्रिय ही माना जाता है। ये तत्व योगी के शरीर की संपूर्ण चेतना का प्रतीक होता है। ये योगी का संबंध अंतरिक्ष के साथ स्थापित करने में मदद करता है। इस तत्व का संबंध पांचवें चक्र विशुद्ध (Visuddha) से माना जाता है।


तीसरे तत्व को पृथ्वी तत्व माना जाता है। ये तत्व शरीर की बाहरी या भौतिक संरचना को नियंत्रित करता है। इस तत्व का प्रभाव शरीर के ऊतकों और हड्डियों पर पड़ता है। यही तत्व शरीर में गंध को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। ​पृथ्वी तत्व का संबंध प्रथम चक्र मूलाधार (Muladhara) और तीसरे चक्र मणिपूर (Manipura) से माना जाता है।


शरीर के चौथे तत्व को अग्नि तत्व कहा जाता है। ये तत्व शरीर की ग्रोथ, ग्रंथियों, मेटाबॉलिज्म और तापमान को नियंत्रित करता है। शरीर में पृथ्वी और ​अग्नि तत्वों को एक दूसरे का विरोधी समझा जाता है। उनके अपने अलग ऊर्जा चक्र भी होते हैं।


शरीर का पांचवां और सबसे अंतिम तत्व जल को माना जाता है। मनुष्य के शरीर का 70% हिस्सा जल से ही बना होता है। यही कारण है कि जल तत्व का प्रभाव शरीर पर सर्वाधिक होता है। ये तत्व टिश्यूज, जोड़, स्किन, त्वचा और स्वाद को प्रभावित करता है। जल तत्व का सीधा संबंध शरीर के दूसरे चक्र स्वाधिष्ठान (Swadhisthana) से माना जाता है।

कल से हम इन्हीं तत्वों पर आधारित मुद्राओं यथा *ज्ञान मुद्रा, वायु मुद्रा, आकाश मुद्रा, शून्य मुद्रा, पृथ्वी मुद्रा, सूर्य मुद्रा, वरुण मुद्रा, एवम कलाई की मुद्राओं पर चर्चा करेंगे।


हम आज से नित्य एक मुद्रा इसको करने/लगाने का उद्देश्य, विधि सचित्र एवम इसको करने के लाभ आप तक पहुंचाएंगे। कृपया अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार एवम लाभ प्राप्ति  अनुसार उपयोग करें। 


*ज्ञान मुद्रा* (Gyan Mudra)


*_उद्देश्य_* ::: ---


ज्ञान प्राप्ति के लिए, इस मुद्रा का अभ्यास उन योगियों को भी करना चाहिए जो, इस भौतिक जगत से खुद को अलग करना चाहते हैं। 


अन्य नाम : वायु वर्धक मुद्रा


*हस्त स्थिति/विधि* :::---


 हाथ की तर्जनी अंगुली को अंगूठे से स्पर्श करवाएं।


*ज्ञान मुद्रा के लाभ* (Benefits Of Gyan Mudra) :


-- शरीर में वायु तत्व को बढ़ाता है। 


--- जोश, साहस और रचनात्मक सोच को बढ़ाता है। 


--- अवचेतन मन की विचार क्षमता और याददाश्त को बढ़ाता है। 


--- ये थकान, आलस्य और मानसिक उलझनों से निपटने में बेहद कारगर है।


*कब करें?* :::---


 किसी भी समय।

*वायु मुद्रा* (Vaayu Mudra)



   ::: -- *उद्देश्य* :::--


 शांति पाने के लिए 


अन्य नाम : वायु शामक मुद्रा 


*हस्त स्थिति/मुद्रा* :::--


 तर्जनी का पहला पोर अंगूठे के आखिरी पोर में लगाएं। अंगूठा, तर्जनी अंगुली के ऊपर रहेगा।


*वायु मुद्रा के लाभ* (Benefits Of Vayu Mudra) :


-- शरीर में वायु तत्व को कम करता है। 

-- शरीर में बेचैनी और चिंता को कम करता है।


-- हार्मोन और नर्व्स सिस्टम की अतिसक्रियता को कम करता है।


-- गुस्सैल, हाइपरएक्टिव और कम एकाग्रता वालों के लिए अच्छा है।


*कब करें?* :::--


किसी भी समय 

*आकाश मुद्रा* (Aakash Mudra)




*उद्देश्य* :::--


 हल्केपन के लिए 


_अन्य नाम_  : आकाश वर्धक मुद्रा


*हस्त स्थिति/ मुद्रा* :::--


 मध्यमा अंगुली के पोर को अंगूठे से स्पर्श करवाएं। प्रतिदिन 30 मिनट से अधिक समय तक अभ्यास न करें।


*आकाश मुद्रा के लाभ* (Benefits Of Aakash Mudra) :


--- शरीर में आकाश तत्व को बढ़ाता है।


--- दिमाग में आने वाले बुरे विचारों से राहत देता है। 


--- भय, दुख और क्रोध की भावनाओं को नियंत्रित करता है।


--- शरीर में मौजूद अशुद्धियों को डिटॉक्स करता है।


--- कब्ज और पाचन संबंधी समस्या वाले लोगों के लिए विशेष लाभदायक।


--- कान और सीने से जुड़ी समस्याओं में भी लाभदायक।


*कब करें?*  :::--


 किसी भी समय। अधिक एवम  अच्छे लाभ हेतु --  2.00 बजे से 6.00 प्रातः एवम सायं अभ्यास करें।

*शून्य मुद्रा* (Shunya Mudra) 




*उद्देश्य* :::--


  _*दर्द से राहत पाने के लिए*_


*हस्त/उंगलियों की स्थिति / मुद्रा* ::--


मध्यमा अंगुली के पहले पोर को अंगूठे के बेस पर रखें और अंगूठा अंगुली के ऊपर रहेगा। किसी भी किस्म की असुविधा या दर्द अनुभव होने पर शून्य मुद्रा का अभ्यास न करें।


*शून्य मुद्रा के लाभ* (Benefits Of Shunya Mudra) :


-- शरीर में अंतरिक्ष (आकाश) तत्व को कम करता है।


-- कान में दर्द, सुनने में समस्या, यात्रा की थकान को कम करता है।


-- शरीर के कई अंगों जैसे, सिर और सीने में हल्के दर्द को कम करता है।


-- वात प्रकृति वाले लोगों के लिए बेहद फायदेमंद।


*कब करें?*  :::--


किसी भी समय।


*पृथ्वी मुद्रा* (Prithvi Mudra)


_*उद्देश्य*_ :::-- ⬇️


  *शक्ति या ताकत बढ़ाने के लिए*


_अन्य नाम_ ::--

  पृथ्वी ​वर्धक मुद्रा या अग्नि शामक मुद्रा।



*हस्त/उंगलियों की स्थिति/ मुद्रा ::--


अनामिका या रिंग फिंगर को अंगूठे से स्पर्श करवाएं। 


*पृथ्वी मुद्रा के लाभ*  (Benefits Of Prithvi Mudra) :::---


-- शरीर में पृथ्वी तत्व को बढ़ाती है जबकि अग्नि तत्व को कम करती है।


-- नए टिश्यू की ग्रोथ को बढ़ाता है।


--/मसल्स बनाने और हीलिंग की प्रक्रिया को तेज करती है।


--/थकान से राहत देता है। 


--/कमजोर हड्डियों, बाल और नाखूनों को मजबूती देती है।


-- शरीर में मजबूती, चैतन्यता और शक्ति का संचार करती है।


-- मेटाबॉलिक या पाचन प्रक्रिया और शरीर के तापमान को नियमित करती है। 


-- ड्राई स्किन की समस्या को दूर करती है। 


-- दुबले शरीर वाले लोगों में बुखार, जलन या अल्सर की समस्या को दूर करती है।


  -- ::: *कब करें?*  :::--


 किसी भी समय।  

*सूर्य मुद्रा* (Surya Mudra)




  --- :::  *उद्देश्य* ::: --- 


शरीर का वजन कम करने  (वेट लॉस) के लिए 


_अन्य नाम_ : पृथ्वी शामक मुद्रा, अग्नि वर्धक मुद्रा 


*हस्त एवं उंगलियों की स्थिति / मुद्रा* :::---


अनामिका अंगुली को अंगूठे के आखिरी पोर पर रखें और अंगुली के ऊपर अंगूठा रखें। *30 मिनट से अधिक समय तक अभ्यास न करें।*


*सूर्य मुद्रा के लाभ* (Benefits Of Surya Mudra) :


--- शरीर में अग्नि तत्व को बढ़ाती है जबकि पृथ्वी तत्व को कम करती है।


--- शरीर के तापमान को बढ़ाती है। 


--- ठंड से कंपकंपी होने पर राहत देती है। 


--- लो थायरॉयड की समस्या वाले लोगों के लिए बेस्ट है।


--- वेट लॉस, अपच, कब्ज या भूख न लगने की समस्या को दूर करती है। 


--- पसीना न निकलने की समस्या और कमजोर नजर वाले लोगों के लिए फायदेमंद।


*कब करें?* :::---


किसी भी समय।

*वरुण मुद्रा* (Varun Mudra)




  ::: --- *उद्देश्य*  :::---


 नमी के लिए


_अन्य नाम_  : जल वर्धक मुद्रा


*हस्त स्थिति एवम उँगलियों की मुद्रा* :::-- 


कनिष्ठिका को अंगूठे के पहले पोर से स्पर्श करवाएं। *शरीर से ज्यादा पसीना निकलने की समस्या वाले लोग इस मुद्रा का अभ्यास न करें।*


*वरुण मुद्रा के लाभ* (Benefits Of Varun Mudra) :


--- शरीर में जल तत्व को बढ़ावा देने में मदद करती है।


--- जोड़ों में दर्द, आर्थराइटिस, शरीर से दुर्गंध निकलना और स्वाद​ न आने की समस्या में मदद करती है।


---  हार्मोन की कमी होने या डिहाइड्रेशन की समस्या होने पर राहत देती है।


--- ड्राई स्किन, बाल, आंखें, एग्जिमा, पाचन तंत्र की सभी समस्याओं को दूर करती है।


*कब करें?* -- :::-- 


किसी भी समय।



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