Sunday, March 4, 2018

पेट, कमर और वजन घटाने के लिए सरल उपचार क्रम

पेट, कमर और वजन घटाने के लिए सरल उपचार क्रम 
by Sri  Vijay Singhal: 
*उपचार*
* प्रातः काल 6 बजे उठते ही एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू का रस और एक चम्मच शहद घोलकर पियें। फिर 5 मिनट बाद शौच जायें।
* शौच के बाद 5 मिनट तक पेडू पर खूब ठंडे पानी से पोंछा लगायें या कटिस्नान लें, फिर टहलने जायें। सामान्य या तेज़ चाल से दो-ढाई किमी टहलें।
* टहलने के बाद कहीं पार्क में या घर पर नीचे दी गयी क्रियाएं करें-
- पवन मुक्तासन 1-2 मिनट
- भुजंगासन 1-2 मिनट
- रीढ़ के व्यायाम : क्वीन और किंग एक्सरसाइज़ (वीडियो से समझकर करें।)
- सूर्य नमस्कार (कम से कम 7 प्रतिदिन) 
- भस्त्रिका प्राणायाम प्रतिदिन 5 चक्र 
- कपालभाति प्राणायाम 300 बार
- अनुलोम विलोम प्राणायाम 5 मिनट 
- अग्निसार क्रिया 3 बार 
- भ्रामरी 3 बार
- उद्गीत (ओंकार ध्वनि) 3 बार 
- तितली व्यायाम एक मिनट 
* व्यायाम के बाद खाली पेट लहसुन की तीन-चार कली छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े करके सादा पानी से निगल लें या चबायें। 
* सायंकाल लगभग 6 बजे 5 मिनट तक पेडू पर खूब ठंडे पानी से पोंछा लगायें, फिर टहलने जायें। तेज़ चाल से कम से कम दो किमी टहलें।
* रात्रि 10-10.30 बजे सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण आधा गिलास गुनगुने पानी के साथ लें।

*भोजन*
* नाश्ता प्रातः 8 बजे - अंकुरित अन्न या दलिया या एक पाव मौसमी फल और एक कप गाय का बिना मक्खन का दूध या छाछ।
* दोपहर भोजन 1.30 बजे- रोटी, हरी सब्जी, सलाद, दही (दाल चावल कभी-कभी कम मात्रा में)
* दोपहर बाद 4 बजे - किसी मौसमी फल का एक गिलास जूस या नीबू-पानी-शहद 
* रात्रि भोजन 7.30 बजे - केवल 100 ग्राम फल, 100 ग्राम सलाद और एक प्याली उबली सब्ज़ी। 
* *परहेज-* चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, चाकलेट, आइसक्रीम, मैदा, तली हुई चीज़ें, मिठाई, फास्ट फूड, अंडा, मांस, मछली, शराब, सिगरेट, तम्बाकू बिल्कुल नहीं। 
* फ्रिज का पानी न पियें। सादा या गुनगुना पानी पियें। 
* मिर्च-मसाले, खटाई तथा नमक कम से कम लें। केवल सेंधा नमक का ही उपयोग करें। 
* दिन भर में कम से कम चार लीटर सादा पानी पियें अर्थात् हर एक़ घंटे पर एक गिलास। जितनी बार पानी पीयेंगे उतनी बार पेशाब आयेगा। उसे रोकना नहीं है। पानी पीने के ४५ मिनट या एक घंटे बाद पेशाब करने जायें। पेशाब करते समय बिल्कुल ज़ोर न लगायें। अपने आप निकलने दें। 
* भोजन के बाद पानी न पियें। केवल कुल्ला कर लें। उसके एक घंटे बाद एक गिलास सादा पानी पियें।
* अगर चाय न छोड़ सकें तो उसकी जगह ग्रीन टी लें। पर उसमें चीनी न डालें।
* सभी तरह की ठंडी चीज़ों से बचें। 

*विशेष*
* सभी तरह की दवायें बिल्कुल बंद रहेंगी।
* नहाने के साबुन का प्रयोग बंद कर दें। गीली तौलिया या हाथ से रगड़कर नहायें।
* हर एक माह बाद अपना हाल बतायें।
[
 *पवनमुक्तासन*

(1) पीठ के बल सीधे लेट जाइए। बायाँ घुटना उठाकर दोनों हाथों से बाँध लीजिए। अब साँस खींचकर पेट में हवा भर लीजिए और घुटने से बलपूर्वक पेट को दबाइए। साथ ही सिर को उठाकर नाक को घुटने से लगाने का प्रयास कीजिए। जब साँस अधिक न रोकी जा सके, तो छोड़ दीजिए। (2) यही क्रिया दूसरे पैर से भी कीजिए। (3) यही क्रिया दोनों घुटनों को एक साथ मिलाकर कीजिए।
इस आसन से पेट की गैस निकल जाती है और पाचन शक्ति में सुधार होता है। पेट की चरबी कम होती है और स्मरणशक्ति बढ़ती है। शरीर फूल जैसा हल्का हो जाता है।

: *भुजंगासन*

पेट के बल लेट जाइए। दोनों पैर मिले हुए रहें। हाथों को मोड़कर हथेलियों को कंधों के बराबर में रख लीजिए। अब सिर को उठाइए और हाथों को तानते हुए सिर को अधिक से अधिक पीछे ले जाइए और आकाश की ओर देखने का प्रयास कीजिए। पैरों के पंजे उल्टे होकर जमीन पर टिके रहेंगे। इससे फन उठाये हुए सर्प जैसी आकृति बन जाएगी। इस स्थिति में कुछ देर रुकिए, फिर धीरे-धीरे पूर्वस्थिति में आ जाइए। यह आसन 20 सेकण्ड से प्रारम्भ करके प्रति सप्ताह 20 सेकण्ड बढ़ाते हुए 2 मिनट तक करना चाहिए।

इस आसन से गर्दन, पीठ और पेट का अच्छा व्यायाम होता है और रीढ़ की हड्डी लचीली होती है। मोटापा घटाने में भी सहायता मिलती है और जठराग्नि प्रदीप्त होती है।

*रीढ़ के व्यायाम*

(1) चित लेट जाइये। हाथों को कंधों की सीध में दोनों ओर फैला लीजिए। पैरों को सिकोड़कर घुटने ऊपर उठाकर मिला लीजिए। पंजे जाँघ से सटे रहेंगे। अब दोनों घुटनों को एक साथ बायीं ओर ले जाकर जमीन से लगाइए और सिर को दायीं ओर घुमाकर ठोड़ी को कंधे से लगाइए। एक-दो सेकण्ड इस स्थिति में रुककर घुटनों को घुमाते हुए दायीं ओर जमीन से लगाइए और सिर को घुमाते हुए ठोड़ी को बायें कंधे से लगाइए। इस प्रकार बारी-बारी से दोनों तरफ 20-20 बार कीजिए। यह मर्कटासन की प्रथम स्थिति है। इसे *क्वीन एक्सरसाइज* भी कहा जाता है।

(2) चित लेट जाइये। हाथों को कंधों की सीध में दोनों ओर फैला लीजिए। पैरों को सिकोड़कर घुटने ऊपर उठा लीजिए और पैरों में एक-डेढ़ फीट का अन्तर दीजिए। अब दोनों पैरों को एक साथ बायीं ओर ले जाकर जमीन से लगाइए और सिर को दायीं ओर घुमाकर ठोड़ी को कंधे से लगाइए। इस स्थिति में दायें पैर का घुटना बायें पैर की एड़ी को छूते रहना चाहिए। एक-दो सेकण्ड इस स्थिति में रुककर घुटनों को उठाकर घुमाते हुए दायीं ओर जमीन से लगाइए और सिर को घुमाते हुए ठोड़ी को बायें कंधे से लगाइए। इस स्थिति में बायें पैर का घुटना दायें पैर की एड़ी को छूना चाहिए। इस प्रकार बारी-बारी से दोनों ओर 20-20 बार कीजिए। यह मर्कटासन की द्वितीय स्थिति है। इसे *किंग एक्सरसाइज* भी कहा जाता है।

ये दोनों व्यायाम स्वामी देवमूर्ति जी महाराज द्वारा आविष्कृत हैं। इनको नियमित करने से रीढ़ बहुत लचीली हो जाती है, जिससे रीढ़ की सभी समस्याओं जैसे दर्द, गैप आदि में भारी लाभ होता है। अन्य सभी रोगों से मुक्ति पाने में भी बहुत सहायता मिलती है। इनकी विशेषता यह है कि इन व्यायामों को रोगी व्यक्ति भी अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे कर सकता है और पर्याप्त लाभ उठा सकता है।

*भस्त्रिका प्राणायाम*

भस्त्रिका का अर्थ है धोंकनी। इसमें साँस किसी लोहार की धोंकनी की तरह चलती है, इसलिए इसे भस्त्रिका प्राणायाम कहा जाता हैं। सामान्यतया हम जो साँस लेते हैं, उसमें हमारे फेंफड़ों का बहुत कम भाग क्रियाशील रहता है। अधिकांश भाग में से हवा पूरी तरह नहीं निकलती और इसीलिए उनमें ताजी हवा नहीं भरती। इस कारण फेंफड़े अपना कार्य पूरी तरह नहीं कर पाते। फेंफड़ों के निष्क्रिय भागों में रोगों के कीटाणु पलते रहते हैं, जो समय आने पर अपना हानिकारक प्रभाव अवश्य करते हैं। भस्त्रिका प्राणायाम का उद्देश्य है फेंफड़ों को पूरी तरह खाली करना और पूरी तरह भरना। इसके लिए लगातार गहरी साँस ली और छोड़ी जाती है।

उचित आसन में बैठकर पहले साँस पूरी तरह निकाल दीजिए। साँस छोड़ते हुए पेट पिचकना चाहिए। अब गहरी साँस बलपूर्वक खींचिए, इतनी कि फेंफड़ों में अच्छी तरह हवा भर जाये। अब बिना रोके तत्काल ही साँस बलपूर्वक पूरी तरह निकाल दीजिए। इस प्रकार तीन बार साँस छोड़ने और भरने से एक चक्र पूरा होता है। प्रत्येक चक्र के बाद दो-तीन साँसें साधारण तरीके से लेकर विश्राम कर लेना चाहिए। प्रारम्भ में ऐसे केवल तीन चक्र कीजिए। इसके बाद प्रत्येक सप्ताह एक चक्र बढ़ाते हुए अपनी शक्ति के अनुसार 7 से 11 चक्रों तक पहुँचना चाहिए। इसके बाद उतने ही चक्र रोज करते रहना चाहिए।
इस प्राणायाम से बहुत लाभ होता है। सबसे बड़ा लाभ यह है कि खून बहुत जल्दी शुद्ध होता है और सभी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ यदि निष्क्रिय या कमजोर हों तो अति सबल और सक्रिय हो जाती हैं। इस प्राणायाम का लाभ लगभग 1 माह बाद दृष्टिगोचर होता है। इसलिए धैर्यपूर्वक करते रहना चाहिए। इसमें मनमानी नहीं करनी चाहिए।

*कपालभाति*

इसमें मुख्य जोर केवल साँस छोड़ने पर दिया जाता है, खींचने पर नहीं। इसमें साँस को छोटे-छोटे झटके देकर निकाला जाता है। किसी सुविधाजनक आसन में सीधे बैठकर साँस को झटके दे-देकर निकालिए। साँस खींचने का बिल्कुल प्रयास मत कीजिए। झटकों की गति प्रारम्भ में एक सेकंड में एक रखी जा सकती है, जो धीरे-धीरे बढ़ाकर एक सेकण्ड में दो की जा सकती है।

दो झटकों के बीच में जो समय होता है, उतने में साँस अपने आप अन्दर जाती है, परन्तु उसे खींचने का प्रयास बिल्कुल नहीं करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि साँस छोड़ते समय पेट पिचककर झटके के साथ ही पीठ की ओर जाना चाहिए। यह क्रिया करते समय शरीर को ज्यादा हिलाना नहीं चाहिए और मुख की मुद्रा भी नहीं बिगड़नी चाहिए। यह क्रिया अपनी सुविधा और सामर्थ्य के अनुसार 5 मिनट से 15 मिनट तक सरलता से की जा सकती है।

कपालभाति से भी वे सभी लाभ प्राप्त होते हैं, जो भस्त्रिका से होते हैं। इससे बुद्धि तीक्ष्ण होती है और गले से ऊपर के सभी अंगों, गुर्दा और पेट के रोगों में भी भारी लाभ होता है।

 *अनुलोम-विलोम प्राणायाम*

अपनी सुविधानुसार सिद्धासन, सुखासन या वज्रासन में बैठ जाइए। धड़ और सिर सीधे रखिए। दायें हाथ की तर्जनी उँगली को मोड़कर हथेली से चिपका लीजिए। इसके एक ओर अँगूठा रहेगा और दूसरी ओर शेष तीन उँगलियाँ होंगी। अँगूठे से दायें नथुने को हल्के से दबाया जाता है और उँगलियों से बायें नथुने को। हाथ कोहनी तक धड़ से सटा रहेगा, ताकि उठे रहने के कारण उसमें दर्द न हो। दूसरा हाथ बायें पैर पर ज्ञान मुद्रा में (तर्जनी और अँगूठे की पोरें मिली हुईं, शेष उँगलियाँ सीधी) रखा रहेगा।

अब दायाँ नथुना बन्द करके बायें नथुने से धीरे-धीरे साँस भरिये। पूरी साँस भर जाने पर तुरन्त ही बायाँ नथुना बन्द करके दायें नथुने से धीेरे-धीरे साँस निकालिए। फिर दायें नथुने से साँस भरिये और बायें से निकालिए। यह एक चक्र हुआ। प्रतिदिन इसी तरह आवश्यक संख्या में कई चक्र किये जाते हैं।

इसमें साँस खींचना और छोड़ना लयपूर्वक होना चाहिए। साँस छोड़ने में खींचने से अधिक समय लगना चाहिए। समय को कंट्रोल करने की सरल विधि यह है कि आप साँस खींचने और छोड़ने के लिए गिनती तय कर लें और मन ही मन में गिनती बोलते जायें। उदाहरण के लिए, आप 5 से 6 तक की गिनती में साँस भर सकते हैं और 8 से 10 तक की गिनती में साँस छोड़ सकते हैं। बाद में अभ्यास हो जाने पर गिनती बढ़ाई भी जा सकती है। प्रारम्भ में तीन चक्रों से अभ्यास शुरू करना चाहिए और फिर प्रत्येक सप्ताह एक चक्र बढ़ाते हुए अपनी सुविधानुसार 21 चक्रों तक पहुँचना चाहिए।

यह प्राणायाम सभी प्राणायामों का मूल है। इसका अभ्यास करने से श्वास-प्रश्वास की गति नियमित होती है और रक्त का शोधन होता है, जिससे सभी रोगों में लाभ होता है और दीर्घायु प्राप्त होती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे किसी हानि की कोई संभावना नहीं है। इसमें अधिकतम समय की भी कोई सीमा नहीं है।

*अग्निसार क्रिया*

वज्रासन या सुखासन में बैठकर अथवा खड़े होकर पहले श्वास को मुँह से या नाक से पूरी तरह बाहर निकालकर बाहर ही रोक दीजिए। फिर जब तक श्वास बाहर रोक सकें तब तक पेट को अन्दर-बाहर कीजिए। ऐसा 25 से 30 बार तक कर सकते हैं। कंधों को नहीं हिलाना चाहिए। ऐसा करके श्वास को फिर से भर लीजिए। यह क्रिया 3 या 4 बार करना पर्याप्त है।

इस क्रिया से पाचन शक्ति बढ़ जाती है और कब्ज, डकारें, गैस आदि पेट सम्बंधी तमाम बीमारियाँ और शिकायतें दूर हो जाती हैं। भूख बढ़ जाती है। इससे मोटापा कम होता है तथा मधुमेह और बहुमूत्र रोग भी ठीक हो जाता है। इस क्रिया से नौली क्रिया का अधिकांश लाभ प्राप्त हो जाता है।

*भ्रामरी प्राणायाम*

इस प्राणायाम में भ्रमर (भौंरे) की तरह गुंजन किया जाता है। इसलिए इसका नाम भ्रामरी है। इसे करने के लिए किसी ध्यानात्मक आसन में बैठकर अँगूठों से दोनों कानों को बन्द किया जाता है, तर्जनी उँगलियों को भाल पर रखा जाता है और दो-दो उँगलियों से आँखों को बन्द करके दोनों ओर से थोड़ा दबाया जाता है। फिर गहरी साँस भरकर होंठ बन्द करके देर तक ऊँ-ऊँ की ध्वनि गुँजाई जाती है। इस प्रकार कम से कम 3 बार करना चाहिए। अधिक से अधिक कितनी भी बार किया जा सकता है।

इस प्राणायाम को करने से मस्तिष्क को बहुत बल मिलता है। मन की चंचलता, तनाव, उत्तेजना और बेचैनी दूर होती है। रक्तचाप और हृदय रोगों में बहुत लाभप्रद है। इसका अच्छा अभ्यास हो जाने पर ध्यान लगना प्रारम्भ हो जाता है।

*उद्गीत (ओंकार ध्वनि)*

सभी प्राणायामों को करने के बाद उद्गीत अर्थात् ओंकार ध्वनि करनी चाहिए। इसके लिए सीधे बैठकर दोनों हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रख लें। अब गहरी साँस भरकर ‘ओऽऽऽ’ का उच्चारण करें। आधी साँस निकल जाने पर ‘म्....’ का उच्चारण पूरी साँस निकलने तक करें। ऐसा कम से कम 3 बार करना चाहिए। इससे अधिक जितना करना चाहें कर सकते हैं।

उद्गीत के अभ्यास से मन एकाग्र होने लगता है। शरीर में ऊँ ध्वनि गूँजने से सभी नस-नाड़ियों और हृदय को भी बल मिलता है।

*तितली व्यायाम*

यह व्यायाम सभी आसनों या व्यायामों को कर लेने के बाद अन्त में किया जाता है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है इसमें घुटनों को तितली के पंखों की तरह हिलाया जाता है। इसके लिए सीधे बैठ जाइए और दोनों पैरों के तलुवों को एक साथ मिलाकर पंजों को दोनों हाथों की उँगलियाँ फँसाकर कसकर पकड़ लीजिए। अब दोनों घुटनों को तितली के पंखों की तरह चलाइए। ऐसा कम से कम आधा मिनट और अधिक से अधिक एक मिनट तक कीजिए। इस व्यायाम को करने से पैरों में खून का दौरा तेज होता है। कूल्हों और नितम्बों की चर्बी घटती है।

 *कटिस्नान की सरल विधि*

1. एक बाल्टी में खूब ठंडा पानी भर लीजिए। आवश्यक होने पर बर्फ़ मिला लीजिए।
2. अब बाथरूम में जांघिया उतारकर दीवाल के सहारे बैठ जाइए, घुटने उठा लीजिए और बाल्टी को घुटनों के बीच में रख लीजिए। 
3. अब एक मग या लोटे से पानी भर भरकर पेडू (पेट का नाभि से नीचे का आधा भाग) पर दायें से बायें और बायें से दायें धार बनाकर डालिए। 
4. इस तरह पूरी बाल्टी खाली कर दीजिये। 
5. अंत में पेडू को पोंछकर उठ जाइये और कपड़े पहन लीजिए।

Compiled and presented by Sri Vijay Singhal

*पीठ का दर्द : कारण और निवारण*

पीठ का दर्द हद से ज़्यादा परेशान करने वाला दर्द है। एक अध्ययन के अनुसार ८०% लोग अपने जीवन में कभी न कभी इस दर्द से पीड़ित रहते हैं। विशेष रूप से अधेड़ावस्था के व्यक्तियों को यह दर्द बहुत परेशान करता है।

यह दर्द रीढ़ की हड्डी में जकड़न आ जाने के कारण होता है। इस जकड़न के कई कारण हो सकते हैं, जैसे- बैठने और सोने का गलत तरीक़ा, व्यायाम की कमी, बढ़ता हुआ वजन, खाँसी और दमा जैसा कोई असाध्य रोग, खून की कमी आदि। इसके अलावा कभी कभी गलत ऑपरेशन करने से भी यह शिकायत हो जाती है।

आप जानते हैं कि रीढ़ हमारे शरीर का आधार है अर्थात् सारा शरीर इसी पर टिका हुआ है। यह हमारे गुदा मूल से प्रारम्भ होकर ग्रीवा मूल तक जाती है। यह कोई हड्डी नहीं है बल्कि अनेक छोटी-छोटी हड्डियों का व्यवस्थित समूह है, जो किसी माला की तरह आपस में गुँथी होती हैं। इनके बीच का भाग छेददार होता है, जिससे ये सब मिलकर एक नली सी बनाती हैं।

रीढ़ की इस नली में होकर हज़ारों नाड़ियाँ जाती हैं, जिनमें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना मुख्य हैं। जब रीढ़ में कोई जकड़न होती है या उसकी दो छोटी हड्डियों के बीच गैप हो जाता है या अन्य किसी कारण से ये नसें दब जाती हैं, तो पीठ में दर्द होने लगता है। इस दर्द के कारण पीड़ित व्यक्ति न तो ठीक से बैठ पाता है, न चल पाता है और न आगे-पीछे या गायें बायें झुक पाता है।

ऐलोपैथी सहित अन्य चिकित्सा पद्धतियों में इस दर्द का कोई स्थायी समाधान नहीं है। वे केवल एक मोटा का पट्टा कमर और पीठ पर बाँध देते हैं, जिससे रीढ़ को थोड़ा सहारा मिल जाता है। यह पट्टा उनको हमेशा बाँधे रहना पड़ता है। कोई तेल या मालिश या सिकाई इस रोग में काम नहीं करती।

इसका इलाज है ऐसे व्यायाम करना जिनसे रीढ़ की हड्डी दायें-बायें उचित रूप में घूमती हो। ऐसे दो व्यायाम हैं- कटिचक्रासन और मर्कटासन का व्यायामात्मक रूप। यहाँ मैं इन दोनों की विधि बता रहा हूँ।

*कटिचक्रासन*

पैरों में एक-डेढ़ फीट का अन्तर देकर सीधे खड़े हो जाइए और हाथों को कंधों की सीध में तान लीजिए। अब पैरों को जमाए रखकर बायीं ओर धीरे-धीरे अधिक से अधिक घूमिये, इतना कि पीठ से पीछे का सारा दृश्य दिखाई देने लगे। इस स्थिति में कुछ सेकण्ड रुकिए और फिर घूमते हुए पूर्व स्थिति में आ जाइए। अब इसी तरह दायीं ओर घूमिए। यह क्रिया दोनों ओर बारी-बारी से 10-10 बार कीजिए। इस क्रिया को कटिचक्रासन कहते हैं। इसमें रीढ़ पूरे 360 अंश घूम जाती है।

*मर्कटासन के व्यायाम*

(1) चित लेट जाइये। हाथों को कंधों की सीध में दोनों ओर फैला लीजिए। पैरों को सिकोड़कर घुटने ऊपर उठाकर मिला लीजिए। पंजे जाँघ से सटे रहेंगे। अब दोनों घुटनों को एक साथ बायीं ओर ले जाकर जमीन से लगाइए और सिर को दायीं ओर घुमाकर ठोड़ी को कंधे से लगाइए। एक-दो सेकण्ड इस स्थिति में रुककर घुटनों को घुमाते हुए दायीं ओर जमीन से लगाइए और सिर को घुमाते हुए ठोड़ी को बायें कंधे से लगाइए। इस प्रकार बारी-बारी से दोनों तरफ 20-20 बार कीजिए। यह मर्कटासन की प्रथम स्थिति है। इसे *क्वीन एक्सरसाइज* भी कहा जाता है।

(2) चित लेट जाइये। हाथों को कंधों की सीध में दोनों ओर फैला लीजिए। पैरों को सिकोड़कर घुटने ऊपर उठा लीजिए और पैरों में एक-डेढ़ फीट का अन्तर दीजिए। अब दोनों पैरों को एक साथ बायीं ओर ले जाकर जमीन से लगाइए और सिर को दायीं ओर घुमाकर ठोड़ी को कंधे से लगाइए। इस स्थिति में दायें पैर का घुटना बायें पैर की एड़ी को छूते रहना चाहिए। एक-दो सेकण्ड इस स्थिति में रुककर घुटनों को उठाकर घुमाते हुए दायीं ओर जमीन से लगाइए और सिर को घुमाते हुए ठोड़ी को बायें कंधे से लगाइए। इस स्थिति में बायें पैर का घुटना दायें पैर की एड़ी को छूना चाहिए। इस प्रकार बारी-बारी से दोनों ओर 20-20 बार कीजिए। यह मर्कटासन की द्वितीय स्थिति है। इसे *किंग एक्सरसाइज* भी कहा जाता है।

ये व्यायाम अपने अन्य व्यायामों के साथ नित्य करने चाहिए। इनको नियमित करने से रीढ़ बहुत लचीली हो जाती है, जिससे रीढ़ की सभी समस्याओं जैसे पीठ दर्द, गैप आदि में भारी लाभ होता है। अन्य सभी रोगों से मुक्ति पाने में भी बहुत सहायता मिलती है।

मर्कटासन के दोनों व्यायामों का वीडियो भी उपलब्ध है, जिसे यहाँ दे रहा हूँ।

अधिक कष्ट होने पर ये व्यायाम सुबह और शाम दोनों समय करने चाहिए। यदि रीढ़ में किसी विशेष स्थान पर दर्द हो तो वहाँ गर्म ठंडी सिकाई भी की जा सकती है। इससे आराम मिलता है और स्थायी लाभ होने में सहायता मिलती है।

— *विजय कुमार सिंघल*
चैत्र कृ ४, सं २०७४ वि (५ मार्च २०१८)

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