Saturday, March 24, 2018

*हकलाने का सरल उपचार*

*हकलाने का सरल उपचार*

अटक-अटककर बोलना हकलाना कहा जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति कुछ विशेष शब्दों या अक्षरों को बोलने में अटक जाते हैं। कभी-कभी वे किसी शब्द के पहले अक्षर को ही कई बार दोहराकर वह शब्द बोल पाते हैं, जैसे- ब ब ब... बलभद्र !

कुछ बच्चे २-३ साल की उम्र में ही हकलाने लगते हैं। हालाँकि यह शिकायत बड़ी उम्र के व्यक्तियों में भी पायी जाती है। पीड़ित की उम्र चाहे कुछ भी हो, इसका पता चलते ही उसका उपचार प्रारम्भ कर देना चाहिए।

हकलाना कोई शारीरिक बीमारी नहीं है, बल्कि आत्मविश्वास की कमी के कारण होती है, अर्थात् यह एक प्रकार का मानसिक रोग है। इसलिए पीड़ित का आत्मविश्वास बढ़ाकर इसका सफल उपचार किया जा सकता है।

वैसे तो कई डॉक्टर और क्लीनिक भी हकलाने वाले व्यक्तियों को स्पीच थेरापी देते हैं, परन्तु सबसे अच्छा उपचार पीड़ित के माता-पिता या घर वाले ही दे सकते हैं। इसके कुछ उपाय यहाँ बताये जा रहे हैं।

सबसे पहले यह पता लगाइए कि वह व्यक्ति किन शब्दों को बोलने में हकलाता है। ऐसे शब्दों को दो या तीन टुकडों में तोड़कर बोलने का अभ्यास कराना चाहिए। जैसे यदि कोई व्यक्ति “बलभद्र” बोलने में हकलाता है, तो उससे “बल” और “भद्र” को अलग-अलग बुलवाना चाहिए। इसके अलावा उससे मिलते-जुलते शब्दों को बोलने का अभ्यास भी कराना चाहिए, जैसे- बलराम, बलदाऊ, बल्ब, वीरभद्र आदि।

सामान्य अभ्यास के लिए पीड़ित से अखबार या कोई किताब थोड़ी ज़ोर से बोलकर पढ़ने के लिए कहना चाहिए। इससे उसका आत्मविश्वास निश्चित रूप से बढेगा। ॐकार ध्वनि और भ्रामरी का प्रतिदिन पाँच-पाँच मिनट नियमित अभ्यास भी इसमें बहुत सहायक होगा। धैर्यपूर्वक कई सप्ताहों तक अभ्यास करने पर ही इसमें लाभ होगा।

कभी भी हकलाने वाले व्यक्ति का मज़ाक़ नहीं बनाना चाहिए। जो बच्चे उसका मज़ाक़ उड़ाते हैं उनको मना करें और डाँटें। अपने बच्चे को ऐसे बच्चों के साथ नहीं खेलने देना चाहिए, क्योंकि वे पीड़ित के आत्मविश्वास को घटाने अर्थात् रोग को बढ़ाने का काम करते हैं।

— *विजय कुमार सिंघल*
चैत्र शु ५, सं २०७५ वि (२२ मार्च २०१८)

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