Friday, April 12, 2019

मन की शांति---सदैव प्रसन्न रहिये जो प्राप्त है-पर्याप्त है

 रात्री कहानी
  *मन की शांति*

 एक राजा था जिसे पेटिंग्स से बहुत प्यार था। एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी उसे एक ऐसी पेंटिंग बना कर देगा जो शांति को दर्शाती हो तो वह उसे मुंह माँगा इनाम देगा।

फैसले के दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार इनाम जीतने की लालच में अपनी-अपनी पेंटिंग्स लेकर राजा के महल पहुंचे।

राजा ने एक-एक करके सभी पेंटिंग्स देखीं और उनमें से दो को अलग रखवा दिया।अब इन्ही दोनों में से एक को इनाम के लिए चुना जाना था।

पहली पेंटिंग एक अति सुन्दर शांत झील की थी। उस झील का पानी इतना साफ़ था कि उसके अन्दर की सतह तक नज़र आ रही थी और उसके आस-पास मौजूद हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे।

जो कोई भी इस पेटिंग को देखता उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छी पेंटिंग हो ही नहीं सकती।

दूसरी पेंटिंग में भी पहाड़ थे, पर वे बिलकुल रूखे, बेजान , वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे जिनमे बिजलियाँ चमक रही थीं…घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी… तेज हवाओं से पेड़ हिल रहे थे… और पहाड़ी के एक ओर स्थित झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था।

जो कोई भी इस पेटिंग को देखता यही सोचता कि भला इसका “शांति” से क्या लेना देना… इसमें तो बस अशांति ही अशांति है।

सभी आश्वस्त थे कि पहली पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार को ही इनाम मिलेगा। तभी राजा अपने सिंहासन से उठे और ऐलान किया कि दूसरी पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार को वह मुंह माँगा इनाम देंगे।

हर कोई आश्चर्य में था। 😨

पहले चित्रकार से रहा नहीं गया, वह बोला, “लेकिन महाराज उस पेटिंग में ऐसा क्या है जो आपने उसे इनाम देने का फैसला लिया… जबकि हर कोई यही कह रहा है कि मेरी पेंटिंग ही शांति को दर्शाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है?

“आओ मेरे साथ!”, राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिए कहा।

दूसरी पेंटिंग के समक्ष पहुँच कर राजा बोले, “झरने के बायीं ओर हवा से एक तरह झुके इस वृक्ष को देखो…देखो इसकी डाली पर बने इस घोसले को देखो… देखो कैसे एक चिड़िया इतनी कोमलता से, इतने शांत भाव व प्रेम से पूर्ण होकर अपने बच्चों को भोजन करा रही है…”

फिर राजा ने वहां उपस्थित सभी लोगों को समझाया- शांत होने का मतलब ये नही है कि आप ऐसे स्थिति में हों जहाँ कोई शोर नहीं हो…कोई समस्या नहीं हो… जहाँ कड़ी मेहनत नहीं हो… जहाँ आपकी परीक्षा नहीं हो… शांत होने का सही अर्थ है कि आप हर तरह की अव्यवस्था, अशांति, अराजकता के बीच हों और फिर भी आप शांत रहें, अपने काम पर केन्द्रित रहें… अपने लक्ष्य की ओर अग्रसरित रहें।

अब सभी समझ चुके थे कि दूसरी पेंटिंग को राजा ने क्यों चुना है।

हर कोई अपनी जिंदगी में शांति चाहता है। पर अक्सर हम “शांति” को कोई बाहरी वस्तु समझ लेते हैं, और उसे बाहरी दुनिया में, पहाड़ों, झीलों में ढूंढते हैं। जबकि शांति पूरी तरह से हमारे अन्दर की चीज है, और हकीकत यही है कि तमाम दुःख-दर्दों, तकलीफों और दिक्कतों के बीच भी शांत रहना ही असल में शांत होना है l

 सदैव प्रसन्न रहिये
 जो प्राप्त है-पर्याप्त है l

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*आधुनिक सभ्यता का अभिशाप : अवसाद*

अवसाद (Depression) एक मानसिक स्थिति है जिसमें मनुष्य किसी वास्तविक या काल्पनिक संकट या समस्या के बारे में चिंता करता रहता है। जब यह स्थिति लम्बे समय तक बनी रहती है, तो इसका कुप्रभाव शरीर पर पड़ना अनिवार्य हो जाता है। अवसाद से घिरा हुआ व्यक्ति धीरे-धीरे रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, अपच, कब्ज, दुर्बलता, रक्ताल्पता, लीवर रोग, गुर्दा रोग, कैंसर और पागलपन तक का रोगी बन जाता है और कई बार इसी मन:स्थिति में आत्मघात जैसा जघन्य पाप कर बैठता है।

अवसाद तथाकथित आधुनिक सभ्यता का ही अभिशाप है। आजकल तो बड़े-बड़े सफल व्यक्ति भी अवसाद में घिरकर अपना घर-परिवार और जीवन तक नष्ट कर लेते हैं। हमारे प्राचीन साहित्य और इतिहास में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलता कि किसी सफल व्यक्ति ने अवसाद की स्थिति में अपने प्राण ले लिये हों। जबकि विगत एक माह की अवधि में ही तीन ऐसे उदाहरण हमारे सामने आ चुके हैं।

इनमें से दो अत्यन्त सफल सरकारी अधिकारी थे तो एक अति सम्मानित सन्त थे। इनमें से एक अधिकारी ने असाध्य बीमारी के कारण अवसाद में घिरकर और एक ने पारिवारिक कलह के कारण आत्मघात किया है। उधर सन्त जी ने अकेलेपन के कारण अपना जीवन समाप्त कर लिया।

समझना कठिन है कि धन-सम्पत्ति, परिवार, प्रतिष्ठा आदि सब कुछ प्राप्त होते हुए भी कोई सफल व्यक्ति अवसाद में कैसे घिर जाता है। हज़ारों प्रशंसकों से घिरे रहने पर भी कोई व्यक्ति अकेलेपन का अनुभव क्यों करता है, यह एक अबूझ पहेली है।

समस्यायें हमारे जीवन का अनिवार्य अंग हैं। सभी लोग किसी न किसी समस्या से घिरे रहते हैं। लेकिन उनकी चिन्ता करना कोई समाधान नहीं है। इसके बजाय हमें उनका समाधान खोजने के लिए चिंतन करना चाहिए। केवल चिन्ता करना अपने आप में एक अलग समस्या है जिससे अनेक नई समस्यायें पैदा होती हैं, जिनके कारण स्थिति अधिक जटिल हो जाती है। इसी का परिणाम आत्मघात जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में होता है।

ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिसका समाधान न हो सके। समस्याओं से निपटने के बारे में मैं पहले भी लिख चुका हूँ और आगे भी लिखता रहूँगा। यदि आप किसी जटिल समस्या से पीड़ित हैं, तो उसका सर्वश्रेष्ठ समाधान खोजने में मेरी सहायता ले सकते हैं।

— *विजय कुमार सिंघल*
ज्येष्ठ द्वितीय कृ १३, सं २०७५ वि (१४ जून २०१८)


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