फल कितने खायें और कैसे?
यह बात तो सभी मानते हैं कि फल हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। फलों के सेवन से न केवल हमें लंबी आयु मिलती है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य और सुन्दरता को भी बनाये रखते हैं। फलों का सेवन करने से हमारे शरीर में सभी आवश्यक खनिजों और विटामिनों की पूर्ति होती है, जो हमारे शरीर को भली प्रकार काम करने के लिए अनिवार्य होते हैं। फाइबर से भरपूर फल हमारी पाचन शक्ति को भी बढ़ाते हैं और उनसे हमें बहुत ऊर्जा भी मिलती है।
इसके अलावा फल हमें अनेक बीमारियों जैसे निम्न व उच्च रक्तचाप, कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह आदि से लडने की क्षमता भी प्रदान करते हैं। यद्यपि सभी फलो में पोषक तत्व पाए जाते हैं, लेकिन अलग-अलग फलों में अलग-अलग पोषक तत्व मिलते हैं। उनके अनुसार ही फलों का स्वास्थ्य पर अलग-अलग प्रभाव होता है। लेकिन कुछ फल ऐसे हैं जो लगभग सभी लोगों स्वस्थ और अस्वस्थ के लिए बहुत लाभदायक हैं। उनमें प्रमुख हैं- जामुन, संतरा, पपीता, खजूर, तरबूज, खरबूजा, अंगूर, सेव, आडू, नाशपाती, अमरूद, अनन्नास आदि। पौष्टिक फलों में केला, आम, और अंजीर की भी गणना की जाती है।
फलों का पूरा लाभ उठाने के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। इनको हम संक्षेप में नीचे लिख रहे हैं-
1. फलों को प्रातःकाल खाली पेट खाना सबसे अच्छा रहता है। कुछ लोग कहते हैं कि खट्टे फलों को खाली पेट नहीं खाना चाहिए, क्योंकि उनसे एसिडिटी की समस्या हो सकती है। लेकिन यह धारणा पूरी तरह गलत है। प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धान्तों के अनुसार खट्ठे फल क्षारीय होते हैं जो अम्लता को कम करते हैं। इसलिए आप खट्ठे फल जैसे संतरा, मुसम्मी, जामुन, सेव, नाशपाती, अनन्नास आदि बेखटके खाली पेट खा सकते हैं।
2. कई लोग फलों के साथ दूध या दही का सेवन न करने की सलाह देते हैं। हालांकि यह सलाह पूरी तरह सही नहीं है, क्योंकि फल और दूध मिलकर सम्पूर्ण भोजन बनाते हैं। इसलिए सबसे अच्छा यह है कि पहले आप फल खायें, फिर थोड़ी देर बाद दूध पी लें। लेकिन अधिक खट्ठे फलों के साथ दूध नहीं लेना चाहिए।
3. पूरा लाभ उठाने के लिए फलों को उचित मात्रा में ही खाना चाहिए। जैसे ही पेट भरा-भरा सा लगे, तुरन्त रुक जाना चाहिए। आवश्यकता से अधिक फल खाने से गैस की समस्या हो सकती है।
4. फलों के बाद प्रायः पानी पीने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि फलों में ही बड़ा अंश जल का होता है। फिर भी यदि आपको बहुत प्यास लगी है तो थोड़ा पानी पी सकते हैं। फल खाने के एक घंटे बाद सामान्य मात्रा में पानी पिया जा सकता है।
5. एक साथ कई तरह के फल खाना भी उचित नहीं है। एक बार में एक या दो तरह के उसी मौसम के फल खाना सबसे अच्छा है। वैसे तीन-चार तरह के फलों को मिलाकर बनायी गयी फ्रूट चाट भी स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है। पर बेल फल को हमेशा अकेले ही खाना चाहिए। मौसमी फलों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
वैसे तो फल खाना पाचन शक्ति के लिए अच्छा होता है, लेकिन केवल फलों पर ही निर्भर रहने से पाचन शक्ति निर्बल भी हो सकती है और मलनिष्कासन तंत्र शिथिल हो सकता है, जिससे कब्ज रहने लगता है। इसलिए फलों के साथ साथ हमें अपने भोजन में अन्न की भी पर्याप्त मात्रा रखनी चाहिए। भोजन के साथ या भोजन के तुरन्त बाद फल खाना भी उचित नहीं है। दोनों के बीच दो-ढाई घंटे का अन्तर रखना उचित होता है। वैसे नाश्ते में फलों के साथ अंकुरित अन्न बेखटके खाये जा सकते हैं।
फलों को उनके प्राकृतिक स्वरूप में ही खाना चाहिए। डाल के पके हुए फल खाना सबसे अच्छा रहता है। ऐसा फल यदि थोड़ा कच्चा भी हो तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता, बल्कि लाभदायक ही होता है। इसलिए कच्चे अमरूद, सेव, नाशपाती, आड़ू आदि खाये जा सकते हैं।
फलों के साथ नमक नहीं लेना चाहिए। सबसे अच्छा तो यह है कि आप उनको सीधे ही खायें। यदि बिना नमक के खाना सम्भव न हो, तो मामूली सा सेंधा नमक डाला जा सकता है। फ्रूट चाट में थोड़ा नीबू भी डाला जा सकता है। वैसे जामुन, तरबूज और अमरूद को काला नमक या सेंधा नमक के साथ खाना अधिक लाभदायक होता है।
यों तो विभिन्न रोगों के लिए विभिन्न फल अधिक लाभकारी होते हैं और कुछ का निषेध भी हो सकता है, फिर भी सामान्यतया सभी फल सभी रोगों में खाये जा सकते हैं। केवल मधुमेह में आम, अंजीर, केला आदि का परहेज करना चाहिए। मधुमेह के रोगी मीठे फल भी उचित मात्रा में निस्संकोच खा सकते हैं, क्योंकि फलों की शर्करा शरीर के लिए बहुत लाभदायक होती है और मधुमेह नहीं बढ़ाती।
अन्त में, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे लिए मौसम में मिलने वाले और स्थानीय रूप से पैदा होने वाले फल ही सबसे अधिक लाभदायक होते हैं। महँगे और विदेशी फलों से आपकी जीभ को भले ही संतुष्टि मिल जाती हो, लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से उनका अधिक महत्व नहीं है।
*-- डाॅ विजय कुमार सिंघल*
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
मो. 9919997596
7 अगस्त, 2020
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,आहार क्या और क्यों?
आयुर्वेद के अनुसार - मुख मार्ग द्वारा जो हम अन्न ग्रहण करते है उसे आहार कहते हैं।
प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत के अनुसार मनुष्य जो पदार्थ खाता है, उससे, पहले द्रव स्वरूप एक सूक्ष्म सार बनता है, जो रस कहलाता है। इसका स्थान ह्वदय कहा गया है। यहाँ से यह धमनियों द्वारा सारे शरीर में फैलता है। यही रस तेज के साथ मिलकर पहले रक्त का रूप धारण करता है और तब उससे मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र आदि शेष धातुएँ बनती है। और ये शरीर को स्वस्थ रखती है, शरीर को शक्तिप्रदान करती है और शरीर को जीवित रखती है।
सुश्रुत संहिता में आहार का वर्णन इस प्रकार से किया गया है:
*आहारः प्रीणनः सद्यो बलकृत देहधारकः।* *आयुस्तेजः समुत्साहस्मृत्योजोऽग्निविवर्धनः।।*
*आहार - शरीर को पुष्ट करने वाला, बलकारक, देह को धारण करने वाला, आयु, तेज, उत्साह, स्मृति, ओज और अग्नि को बढाने वाला होता है।*
प्रत्येक प्राणी के जीवन के लिए आहार आवश्यक है। अत्यंत सूक्ष्म जीवाणु से लेकर बृहत्काय जंतुओं, मनुष्यों, वृक्षों तथा अन्य वनस्पतियों को आहार ग्रहण करना पड़ता है।
आहार या भोजन के तीन उद्देश्य हैं : (1) शरीर को अथवा उसके प्रत्येक अंग को क्रिया करने की शक्ति देना, (2) दैनिक क्रियाओं में ऊतकों के टूटने फूटने से नष्ट होनेवाली कोशिकाओं का पुनर्निर्माण और (3) शरीर को रोगों से अपनी रक्षा करने की शक्ति देना।
*अतएव स्वास्थ्य के लिए वही आहार उपयुक्त है जो इन तीनों उद्देश्यों को पूरा करे।*
आहारविद्या बताती है कि मनुष्य का आहार क्या होना चाहिए और आहार के भिन्न-भिन्न तत्वों को किस अवस्था में तथा किस मात्रा में खाया जाय, जिसमें शारीरिक और मानिसक पोषण उत्तम हो। बाल्यकाल से लेकर 18 वर्ष तक की अवस्था वृद्धि की है। युवावस्था और प्रौढ़ावस्था में शारीरिक वृद्धि नहीं होती जबकि इस अवस्था में शरीर सुदृढ़ और परिपक्व होता है। वहीं वर्द्धावस्था में शरीर का ह्रास आरंभ होता है।
यह सदा ध्यान में रखना चाहिए कि शरीर में आने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ हमारी पोषण सम्बंधी आवश्यकताएँ भी बदलती हैं, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ शरीर को ऊर्जा की आवश्यकता कम और पोषण की आवश्यकता अधिक होती है। अतः अपनी अवस्था के अनुसार ही हम अपने आहार/भोजन का चुनाव करें।
पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञान के अनुसार ऐसा कोइ भी पदार्थ जो शर्करा (कार्बोहाइड्रेट), वसा, जल तथा/अथवा प्रोटीन से बना हो और जीव जगत द्वारा ग्रहण किया जा सके, उसे आहार/भोजन कहते हैं।
*भोजन करना मनुष्य की सबसे अधिक मौलिक आवश्यकताओं में से एक है।* सक्रिय जीवनशैली के साथ स्वस्थ आहार लेना स्वस्थ जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ दवा है। शरीर की रोगप्रतिरोधक तंत्र (immunity) को पोषक आहार से हम स्वस्थ बनाये रख सकते हैं। प्रत्येक आयु में बहुत से रोग अनुचित आहार के कारण होते हैं।
वृद्धावस्था में विशेषतया भोजन बहुत अहम भूमिका निभाता है। लेकिन उन्हीं दिनों प्रौढ़ों के सामने ये चुनौतियाँ भी होती हैं- भूख कम लगना, वजन कम होना, चबाने और निगलने में समस्यायें, पुरानी चर्बी, चीनी और नमक को कम करने की आवश्यकता तथा सबसे बढ़कर अवसाद। बच्चों को भी कुपोषण की समस्या अनेक रोगों का कारण बनती है।
यदि *"क्या, कब और कैसे खायें"* इस बारे में हम अपने निवास स्थान की प्राकृतिक, भौगोलिक और आर्थिक परिस्थितियों तथा अपने पूर्वजों के अनुभवों के अनुसार निर्णय लें, तो हमारे स्वस्थ होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
हमारे देश में लोगों को स्वस्थ बनाये रखने में रसोईघर की भूमिका अद्वितीय, उल्लेखनीय और कालप्रमाणित है। भारतीय रसोई को स्वास्थ्य की प्रयोगशाला माना जा सकता है। यही कारण है कि कोई बीमारी होने पर हम सबसे पहले रसोईघर की ओर देखते हैं क्योंकि वहाँ सभी तरह की दवायें होती हैं। भारतीय रसोई में उपयोग की जाने वाली प्रत्येक वस्तु जैसे मसाला, दाल, अचार आदि आयुर्वेद/यूनानी/भारतीय चिकित्सा पद्धति के अनुसार कोई न कोई दवा भी होती है।
हम इन सब बातों पर चर्चा करेंगे और इस लेखमाला की आगे की कड़ियों में निम्न प्रकार परामर्श देंगे- *कब खायें, कैसे खायें, क्या खायें, क्या न खायें, और क्या अवश्य खायें।*
---- *जग मोहन गौतम*
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