आयुर्वेद सम्मत मॉनव शरीर को निरोग रखने के ---- जग मोहन गौतम
जल कैसे,कब,कोनसा एवं कितना पीयें
हमने इस धारावाहिक श्रंखला के भाग १७ में लिखा था कि “खाने को पीओ एवम जल को खाओ”। जल पीने की विधि, समय, गुणवत्ता एवम मात्रा, किसी भी व्यक्ति का जीवन बहुत कुछ बदल सकती है। *हमारे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में जल को औषिधि के रूप में लिया गया है,* इसके पीने की विधि को भी बहुत गम्भीरता से लिया गया है, इसलिए हम "जल कैसे पियें" की महत्वपूर्ण बातों को क्रम संख्या डालकर प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे भारतीय परिस्थितियों में जल पीने के निम्न नियमों का पालन करते हुए हम स्वस्थ जीवन व्यतीत करते रहें। साथ मैं हम जल के उपयोग से सम्बंधित अन्य नियमों को भी सूचिबद्ध कर रहे है।
1. जब भी आपको जल पीना हो तब जिस तरह आप भोजन के लिए बैठते हैं, उसी तरह जल पीने के लिए सबसे पहले बैठ जाइए। ध्यान रखे कि खड़े होकर जल न पीयें।
2. पूरे गिलास के जल को एक बार में गट गट करके न पीयें अपितु छोटे छोटे घूँट में सिप करते हुए पीजिए। एक घूँट पीने के बाद साँस लेने के लिए रुकिए।
3. दिन भर इसी तरह थोड़े थोड़े अंतराल पर प्यास के अनुसार जल पीते रहें। यदि आप एक साथ ढेर सारा जल गटक लेंगे, तो आपका शरीर उसे पूरी तरह हजम नहीं कर पाएगा।
4. कमरे के तापमान वाला जल पीजिए। गुनगुना जल और भी अच्छा है। लेकिन ठंडा, फ्रिज और बर्फ़ का जल पीना उचित नहीं, क्योंकि यह जठराग्नि को मंद कर देता है। अधिक गर्मियों में आप मटके का जल पी सकते हैं।
5. भोजन के साथ बहुत कम मात्रा में जल पीजिए। वह भी भोजन करते समय गला साफ करने के लिए या अन्न बदलने के लिए। उदाहरण के लिए, जब आप रोटी खाने के बाद चावल खाने जा रहे हैं, तब एक दो घूंट जल पी सकते हैं या कोर के अटकने पर। यदि आप भोजन के साथ बहुत अधिक जल पियेंगे, तो आपके पेट में पाचन क्रिया सही रूप में चलाने के लिए जगह नहीं बचेगी। *यह नियम हमेशा याद रखिए- अपने पेट को आधा खाने से भरिये, चौथाई पानी से और शेष चौथाई को पाचक रसों और पाचन प्रक्रिया के लिए छोड दीजिए।*
6. भोजन से पहले या बाद में अधिक जल मत पीजिए। लेकिन भोजन से ४५ मिनट पहले और ४५ मिनट बाद जल अवश्य पीजिए। ध्यान रखें एक बार आदत में आने पर स्वतः जल पीने की आवश्यकता अनुभव होगी।
7. प्यास लगने पर जल अवश्य पीजिए। प्यास एक प्राकृतिक संकेत है, जिसका सम्मान आपको करना चाहिए। इसका अर्थ होता है कि आपके शरीर को जल की आवश्यकता है।
8. आपका मूत्र भी संकेत देता है कि आप पर्याप्त जल पी रहे हैं या नहीं। आपके मूत्र का रंग साफ और हल्का पीला होना चाहिए। यदि इसका रंग गहरा पीला है तो आपको अधिक जल पीने की आवश्यकता है।
9. आपके होंठ एक अन्य संकेतक हैं। यदि वे सूखे हैं तो आपके शरीर में जल की कमी हो सकती है।
10. पिछले दो दशकों में वातानुकूलन के व्यापक उपयोग के कारण पानी पीने की आदत में उल्लेखनीय बदलाव आया है। आजकल लोग २०-३० वर्ष पहले की अपेक्षा कम जल पीते या उपभोग करते हैं, जिससे रोगों में वृद्धि हुई है। हमारी सलाह है कि वातानुकूलन की समस्या होने पर कुछ शारीरिक व्यायाम अवश्य करने चाहिए, जिससे प्यास अधिक लगेगी। यदि आप एयरकंडीशन्ड कमरे में अधिक समय गुज़ारते हैं, तो आपको पर्याप्त जल पीने के बारे में जागरूक रहना चाहिए एवं थोड़े-थोड़े समय पश्चात् जल अवश्य पीते रहना चाहिए। हालांकि आयुर्वेद के अनुसार जबरदस्ती जल पीना भी खतरा उतपन्न कर सकता है अतः इस और विशेष रूप से सचेत रहे।
11. आयुर्वेद में जल को पांच महाभूतों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है। यदि एक और ठंडे पानी का सेवन, पित्त की अधिकता, जलन, उल्टी होना एवं थकावट के लिए अमृत समान है तो वहीं यह जुकाम, दमा, खांसी, हिचकी एवम घी, तेल से बने पदार्थो के उपयोग के पश्चात विपरीत स्थितियां पैदा करता है। गर्म जल हल्का होने के कारण पाचन सम्बन्धी रोगों को दूर करता हैं।
12. रोजाना सुबह खाली पेट पानी पीना सेहत के लिए बहुत लाभकारी है। इससे शरीर की झुर्रियाँ, सफेद बाल, गला बैठना, बिगड़ा जुकाम, दमा, कब्ज तथा सूजन जैसे रोगों में आराम मिलता है, यही वह समय है तब एक बार में अधिक जल पीया जा सकता है।
13. निरन्तर प्रदूषण बढ़ने के कारण प्रत्येक प्रकार का जल यथा बरसात, कुएं, हैंड पाइप, नदी, झील, तालाब एवम सरकारी सप्लाई के जल भी स्वास्थ के लिए हानिप्रद हो रहे हैं। अतः *हमारी सलाह है कि आर ओ का जल उपयोग में लाएं लेकिन साथ में ताजी सब्जियों का रस अवश्य लें* जिससे आर ओ से हो रही खनिजों की कमी की आपूर्ति हो सके।
14. *जल के संग्रह के पात्र पर विशेष ध्यान दें। लोटा एवम मटका इसके सुपात्र हैं।* जब कि ग्लास व जग कुपात्र। क्योंकि गोल पात्र में रखे जल का पृष्ठ तनाव (Surface Tension) कम होता है जिससे जल अपने औषिधि गुणों का उपयोग करते हुए छोटी व बड़ी आंत का डेटॉक्सिफिकेशन सुगमता से कर सकता है।
15. *जल का एक गुण है कि वह जिसमें मिलता है उसके गुणों को ग्रहण कर लेता है।* अतः ग्रीष्म ऋतु में मिट्टी के मटके में रखे जल का, बरसात में तांबे के मटके (कलश) में रखे जल का एवम जाड़ों में सोने के गोल पात्र में संग्रहित जल का उपयोग करना लाभकारी है। (सोने का मूल्य अधिक होने के कारण पीतल के जल भरे पात्र मैं सोने का कोई आभूषण डाला जा सकता है।)
क्योंकि भोजन को दवा माना जाता है, इसलिए हमें आशा है कि आप सदा इस बारे में जागरूक रहेंगे। अगले भाग में हम इसकी चर्चा करेंगे कि क्या खाया जाये। इसके पूर्व हम आपके प्रश्नों का उत्तर अथवा और स्पष्टीकरण देने का वैज्ञानिक आधार पर प्रयास
करेंगे। आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी।
-- *जगमोहन गौतम*
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